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अदनासा-
Ashraf Fani
इब्ने-बतूता दांत भी टूटा मार जो खाई धोबी पछाड़ पहन के कुरता भागा वो घूरता हो गया ग़ायब तुम्बू उखाड़ ©Ashraf Fani इब्ने-बतूता दांत भी टूटा मार जो खाई धोबी पछाड़ पहन के कुरता भागा वो घूरता हो गया ग़ायब तुम्बू उखाड़
इब्ने-बतूता दांत भी टूटा मार जो खाई धोबी पछाड़ पहन के कुरता भागा वो घूरता हो गया ग़ायब तुम्बू उखाड़
read moreMiMi Flix
"चतुर बंदर और गहनों का चोर – बंदर और शेर, हिंदी बच्चों की नैतिक शिक्षा कहानी" - एक घने जंगल में, चतुर बंदर बंटी की एक गलती से अजीब परिवर्तन
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"जंगल का जादुई झरना – साहस और एकता की कहानी" - एक घने जंगल में रहने वाले जानवर एक रहस्यमय पानी की कमी से परेशान हैं। क्या बुद्धिमान हाथी, शर
read moreDevesh Dixit
मंत्री जी मंत्री जी ओ मंत्री जी मुंह उठा कर कहां चले धोती कुर्ता पहन के टोपी धूल उड़ा कर कहां चले अत्याचारों से लिपटी धरती सब तुम्हारी करनी है आतंकवाद की बढ़ती दरिंदगी सब तुम्हारी निशानी है पाप कर्म और मक्कारी का दिया जलाया तुमने है खून बहा के निर्दोषों का धन कमाया तुमने है मुद्दा बनाके जाति - पांति का आपस में लड़वाया तुमने है उसी से भड़कती है हिंसा उसी से रोटी सेंकी है और कौन से कुकर्म हैं बाकी जो तुमने आगे करने हैं धरती माता पर और लहू की बारिश करनी तुमने है मंत्री जी ओ मंत्री जी मुंह उठा कर कहां चले धोती कुर्ता पहन के टोपी धूल झोंक कर कहां चले ……………………………. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #मंत्री_जी #nojotohindi #nojotohindipoetry मंत्री जी मंत्री जी ओ मंत्री जी मुंह उठा कर कहां चले धोती कुर्ता पहन के टोपी धूल उड़ा कर कहां च
#मंत्री_जी #nojotohindi #nojotohindipoetry मंत्री जी मंत्री जी ओ मंत्री जी मुंह उठा कर कहां चले धोती कुर्ता पहन के टोपी धूल उड़ा कर कहां च
read moreAnuradha T Gautam 6280
अपने #कपड़े_और_जूते खास मौके के लिए रखना बंद कर दो जब भी मौका मिले पहन लो क्योंकि आजकल #जिंदा_रहना_ही_सबसे_बड़ा_मौका_है..🖊️
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार । निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।। बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार । तुम जननी हो इस जग की .... कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार । चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।। मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार । तुम जननी हो इस जग की ..... छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार । बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।। बन चंडी अब पहन गले में , इनको मुंडों का तू हार । तुम जननी हो इस जग की .... बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार । ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।। जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार । तुम जननी हो इस जग की .... सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार । खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।। मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार । तुम जननी हो इस जग की .... तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
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