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vishnu prabhakar singh
प्रवास समाज का अभिन्न व्यवहारिक अंग बन चुका है।इसका विकास मजदूर ढूंढ रहा है।अकुशल मजदूर की विशेष मांग है। अर्थात, अकुशल मजदूर का स्वर्ण युग! सुदूर गांव से मजदूर पैसे के आशा में प्रवास करते हुए जब निकट राजधानी पहुंचता है, तब वो थोड़ा ठहर के अपने ग्रामीण मजदूर भाई से पूछता है, अपना गांव राजधानी कब बनेगा? उत्तर पाता है, जब विकास होगा। एकाकी अवस्था में विश्वस्त हो वो फिर इतना ही बोल पाता है कि, फिर तो बहुत देर लगेगा? उत्तर पाता है, हाँ!हमलोग नहीं देख पाएंगे। उत्तर पा कर मजदूर का दर्शन शीघ्र दैनिक हो जाता है। वो कहता है, मेरी बला से! कुछ पैसे का दरकार हैं।इस बार कमा कर जायेंगे तो वापस नहीं आयेंगे।वहीं पर कुछ करेंगे। पुनःउत्तर ही पाता है, हाँ! मेरा भी मन अब यहां नहीं लगता, इतनी दूर अब नहीं आयेंगे।पर क्या करें, लाचारी में हमलोग अकुशल रह गये। प्रवास समाज का अभिन्न व्यवहारिक अंग बन चुका है।इसका विकास मजदूर ढूंढ रहा है।अकुशल मजदूर की विशेष मांग है। अर्थात, अकुशल मजदूर का स्वर्ण युग
प्रवास समाज का अभिन्न व्यवहारिक अंग बन चुका है।इसका विकास मजदूर ढूंढ रहा है।अकुशल मजदूर की विशेष मांग है। अर्थात, अकुशल मजदूर का स्वर्ण युग
read more🇮🇳always_smile11_15
कई दिनों से उन्हें नहीं हैं सुकून दिन भी लगे उन्हें रोशनी से हीन जिंदगी का मतलब 2 वक्त की रोटी उनके लिए तो वो ही हैं बहुत उनपे ही हर मेहनत का अस्तित्व मानती क्यूंकि उनके बिना सब कुछ है विहीन उनकी किसी से तुलना नहीं करती उनका ना हैं कोई अपना ख्वाब अरमान पर हां सच्चाई हैं उनके भीतर कर्म करे तब वो खाना खाते उनसे ज्यादा यहां कोई नही हैं महान अनुभव उनका बिना पढ़े पृथ्वी का भूगोल जानता गर्मी सर्दी और बारिश को भी पहचानता। always🌸smile ©🇮🇳always_smile11_15 #मजदूर
Jitender Nath
मेरी प्यास को दरिया का पता बता दिया मेरी दुश्वारियों को मेरी खता बता दिया मैं मरूं अपने गाँव में ये ख्वाहिश थी मेरी तुमने मुझे एक सड़क का पता बता दिया मैं हर रोज मर रहा हूँ ये सबको मालूम है जिंदा है कितने लोग गिनकर बता दिया पाँव के छाले मेरे जब सफर में थक गए मरहम का कागजों में खर्चा बता दिया मैं मजदूर हूँ ये तो मेरे माथे पे लिखा था जरूरत मुझे हुई तो भिखारी बता दिया मौत आ ही जाएगी, ट्रॅक में या रेल में हाकिम हैं संगदिल मैंने मरकर बता दिया © जितेन्द्रनाथ मजदूर
मजदूर
read moreJitender Nath
मेरी प्यास देख मुझे दरिया दिखा दिया मेरी दुश्वारियों को मेरी खता बता दिया मैं मरूं अपने गाँव में ये ख्वाहिश थी मेरी तुमने मुझे एक सड़क का पता बता दिया मैं हर रोज मर रहा हूँ ये सबको मालूम है जिंदा है कितने लोग गिनकर बता दिया पाँव के छाले मेरे जब सफर में थक गए मरहम का कागजों में खर्चा बता दिया मैं मजदूर हूँ ये तो मेरे माथे पे लिखा था जरूरत मुझे हुई तो भिखारी बता दिया मौत आ ही जाएगी, ट्रॅक में या रेल में हाकिम हैं संगदिल मैंने मरकर बता दिया मजदूर
मजदूर
read moreਚੰਦਰ ਬਾਬੂ ਸ਼ਿਵਮ(Jassi)
_💕मजदूर💕_ महंगी घड़ी पहने हुए, जिस्म पर कीमती कपड़ा लटकाए हुए, लंबी गाड़ियों से उतरने वाला, वह सबसे अमीर आदमी, वह अपने ऐसो आराम का मजदूर है। #मजदूर
Dinesh kumar
मजदूर ही मजबूर है, पैदल ही घर की ओर चल रहा है, सरकारी कागजो में मौसम है बड़ा ही गुलाबी , हकीकत बयान करती तस्वीरों से मुंह मोड़कर क्या होगा, हर एक रास्ता हर एक मोड़, दर्द उनका बयान कर रहा है। भारत के हो गए हैं दो हिस्से, एक वो जो सड़को पर कराह रहा है, एक वो जो हवाई जहाज में उड़ान भर रहा है। दिनेश #मजदूर