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Aditya kumar prasad
"मैं पंछी हूँ मेरे पंख रहने दीजिये ll मेरे हिस्से के अंक रहने दीजिये ll तितलियों के जैसे नाजुक तो हूँ फिर भी, भंवरों के जैसे नुकीले डंक रहने दीजिये ll जिस पर टिकी है सारी दुनिया, वह आधार स्तंभ रहने दीजिये ll मुझे अपनी पसंद में मत बांधिए, मेरे सपने मनपसंद रहने दीजिये ll हवा के साथ बहुत दूर तक बहना है मुझे, भारी होसलों में हल्की सुगंध रहने दीजिये ll" ©Aditya kumar prasad मेरे अनकहे अल्फाज़
मेरे अनकहे अल्फाज़
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67ygfdjoiygg8hffygg ©Aditya kumar prasad मेरे अनकहे अल्फाज़
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"एक झूठ लाखों भरोसे को खत्म कर देता है ll बिन छुरी, बिन तलवार के जख्म कर देता है ll सच दोनों हाथ से भरोसे का आशिर्वाद देता है, झूठ भरोसे के आशीर्वाद को भस्म कर देता है ll रौशनी तो दिखाई देती है, पर रास्ता दिखाई नहीं देता, झूठ चकाचौंध आंखों के सामने ऐसा छद्म कर देता है ll दिल और दिमाग दोनों मेरे अपने हैं मगर, झूठ इन दोनों के दर्मियां रज्म कर देता है ll लालच चतुराई और नफरत से नाता जोडकर झूठ अपनी मोजूदगी की पूरी रस्म कर लेता है ll" ©Aditya kumar prasad मेरे अनकहे अल्फाज़
मेरे अनकहे अल्फाज़
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आशंका ये है की शायद ईश्वर ने हमें ब्लॉक कर रखा है शायद भेजे गए सारे संदेश किसी ब्लॉक नंबर पर गए । या शायद स्वार्थी मन से हमने प्रार्थना की थी । शायद पिछले सारे पाप धुले नही हैं शायद कठोती में गंगा तो है पर शायद मन चंगा नही या शायद ईश्वर जैसा कुछ भी नही शायद सब भ्रम हो क्या करोगे ये भ्रम सच हुआ तो ? या क्या करोगे तब जिसके पीछे भाग रहे हो और मिल जाए तो ? क्या होगा जब पता चलेगा जिसे तुम सुकून समझते थे वो सुकून नहीं ? इस मायाजाल में कुछ भी सच नहीं । ©Aditya kumar prasad मेरे अनकहे अल्फाज़
मेरे अनकहे अल्फाज़
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"जब भी हम कोई शायरी लिखते हैं ll शब्दों से आपकी बराबरी लिखते हैं ll आप होतीं तो साथ अंताक्षरी खेलते, आप नहीं हैं तो अंताक्षरी लिखते हैं ll प्रेम दया अंत:मन की शुद्ध रचनाएँ हैं नफरत निर्दयता को बाहरी लिखते हैं ll कोई कवि लेखक या शायर नही हैं हम, इंसान हैं, इंसानियत बिरादरी लिखते हैं ll आज की रचना लिखने के बाद हम आज की हाजरी लिखते हैं ll" ©Aditya kumar prasad मेरे अनकहे अल्फाज़
मेरे अनकहे अल्फाज़
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"पलकों की दहलीज पर आ गए ll आंसू अपनी ही जीत पर आ गए ll बाहर से मुस्कुराते हुए लोग, भीतर से चीख कर आ गए ll भीड़ में भी जब खुदबखुद बहने लगे आंसु, हम छिपते-छिपाते आंखें मींच कर आ गए ll आंसुओं के साथ सारे ख्वाब, थोडे़-थोड़े पसीज कर आ गए ll आंखें मूंदी तो बिछड़े लोग मिले, हम उनसे बातचीत कर आ गये ll" ©Aditya kumar prasad मेरे अनकहे अल्फाज़
मेरे अनकहे अल्फाज़
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"तन्हाई के इलाकों में यादों की चलती है ll सरकार यादों की लेकिन रोज बदलती है ll मुक्तभोगी भी यादें, भुक्तभोगी भी यादें, बिना किसी इल्म के यादों की गलती है ll सिर्फ मैं मतदाता, अनेक यादें उम्मीदवार, निर्णय के वक्त बेबस सोच हाथ मलती है ll झूठे वादों की झड़ी लगा रही हैं यादें, सच में मुझे तुम्हारी कमी खलती है ll यादों की रैलियों का यही उपयुक्त समय है, जब दिन ढलता है या जब रात निकलती है ll" ©Aditya kumar prasad मेरे अनकहे अल्फाज़
मेरे अनकहे अल्फाज़
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Autumn मन की उलझन हो या उखड़ी सांसे मैं संभाल लेता था लोगों का चले जाना हो या मेरा बचे रह जाना मैं सह लेता था जो असहनीय होता था मैं उसे सहनशील बनाता था फिर भी एक हिस्सा खाली रहा मेरा जो नहीं होता था सब वहीं होता था उसके होने को कभी नही रोक पाया मैं। ©Aditya kumar prasad मेरे अनकहे अल्फाज़
मेरे अनकहे अल्फाज़
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