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Anupama Sharma
मुरादों का रंग कभी हल्का नही पड़ता.. जहां सपने हो, वहा अरबों इंद्रधनुष निकल आते है... ©Anupama Sharma #मुरादें
rahul rahil
तम्मानाओं के इस शहर में, अक्सर कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते है।। जिन ख्वाहिशों की खातिर मुरादें की जाती हैं, कभी कभीहजार दुआएं भी, उन्हें पूरा नहीं कर पाती हैं।। ©rahul rahil #मुरादें
Deepa Didi Prajapati
हे खुदा इतना क्यों सताता है? सुना है तेरे दर पर पुकार सुनी जाती है। तभी तो हर शख्स मुरादें मांगने आता है। ©Deepa Didi Prajapati #खुदा#मुरादें
Rocking BBD
टूट चुके थे जो आसमान में उनसे मुरादें मांगी जा रही थी बिछड़ चुके थे जो अपनों से सपनों की फर्यादे मांगी जा रही थी वो क्या जाने अपनों से बिछड़ने गम भला दर्द कितना होता है इस बिछड़ने के क्रम में तारे रात भर ना सोता है | #sad#आसमा #तारे #मुरादें #notohindi#rockingbbd#love#nojoto
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read moreAshokKumar
दिल की मुरादें अक्सर अधूरी ही रहा करती हैं। #तन्हादिल
दिल की मुरादें अक्सर अधूरी ही रहा करती हैं। #तन्हादिल
read moreDalip Kumar 'Deep'
Shayer tera ©Dalip Kumar Deep ✍🏿ताबीज़ों से कहाँ मुरादें पुरी होतीं हैं😔🍁🍁🍁🥀🥀
✍🏿ताबीज़ों से कहाँ मुरादें पुरी होतीं हैं😔🍁🍁🍁🥀🥀
read moreKumar.vikash18
( "चंचल" ) मन भंवर मन मोर , मन चंचल चितचोर ! मन गोरा मन काला , मन हंस मतवाला ! मन पवन मन हिलोर , मन उङता चहुँ ओर ! मन चंदन मन निर्मल , मन अमृत का प्याला ! मन मुरली मन तान , मन राधा का श्याम ! चंचल ( "चंचल" ) मन भंवर मन मोर , मन चंचल चितचोर ! मन गोरा मन काला , मन हंस मतवाला ! मन पवन मन हिलोर , मन उङता चहुँ ओर !
चंचल ( "चंचल" ) मन भंवर मन मोर , मन चंचल चितचोर ! मन गोरा मन काला , मन हंस मतवाला ! मन पवन मन हिलोर , मन उङता चहुँ ओर !
read moreRajesh Khanna
मेरे दिल को तेरे चहरे के सिबाये कोई और चहेरा नजर नहीं आता अब ले लो दिल की बात भाले ही तुम मेरे पास नहीं हो पर दिल मन ही मन बातें कर लेता है ©Rajesh Khanna मन ही मन
मन ही मन
read moreAnupam Mishra
किसी पिंजरे में कैद पंछी की तरह जैसे हमारा मन भी कैद हो गया है, सामने खुली चांदनी नजर आती है पर चार दिवारियों के बाहर नहीं निकल पाती, कुछ रस्मों की दीवारें हैं कुछ मर्यादाओं की रेखाएं हैं और कुछ ऊसूलों की सलाखें हैं जिनको तोड़कर जाने की उम्मीद नहीं बस देखकर सुकून मिले अब वही सही, ऐसा नहीं कि भीतर जोश या हिम्मत नहीं पर यह सोचकर हूं मन को बांध लेती कि जब इस पंछी का अंत निश्चित है ही फिर क्यूं इसे खुले में छोड़ना कभी, येे बावला तो देख लेता है कभी भी कुछ भी और चाहता है कि सब मिल जाए उसे यहीं, बेहतर है कि ये पिंजरे में बंद रहे यूं ही पता नहीं फट पड़े कब कौन सी ज्वालामुखी। ©अनुपम मिश्र #मन #बावला मन