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Stories related to सभ्यताएं

Er.Shivampandit

प्रेम जैसे एक नन्हा खरगोश जो एक छलांग में चांद नापता है यदि भरता है छलांगे दो तो सूर्य के रश्मिरथ को भी पीछे छोड़ देता है इसकी तीन निरंतर छल

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प्रेम जैसे एक नन्हा खरगोश
जो एक छलांग में
चांद नापता है
यदि भरता है छलांगे दो
तो सूर्य के रश्मिरथ को भी
पीछे छोड़ देता है
इसकी तीन निरंतर छलांगे लांघ जाती हैं अक्सर
विश्व की सारी सभ्यताएं
किन्तु प्रिय,
ये आज भी लांघ नहीं पाता
दो टूटे हृदय हमारे..!

.......✍️✍️ प्रेम जैसे एक नन्हा खरगोश
जो एक छलांग में
चांद नापता है
यदि भरता है छलांगे दो
तो सूर्य के रश्मिरथ को भी
पीछे छोड़ देता है
इसकी तीन निरंतर छल

The solo pen

तथाकथित जीवन का बिगड़ता परिद्रश्य हमारे समाज में चर्चा का विषय रहा है। हमसे पहले कई सभ्यताएं आई और खत्म हो गई।(हालांकि ये असत्य भी हो सकता

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तथाकथित जीवन का बिगड़ता परिद्रश्य हमारे समाज में चर्चा का विषय रहा है। 

हमसे पहले कई सभ्यताएं आई और खत्म हो गई।(हालांकि ये असत्य भी हो सकता है जबकि पूर्ण सत्य न पता हो) 
जीवन की प्रकृति में ही है परिवर्तन होना। हालांकि प्रकृति
में परिवर्तन से विनाश हो सकता है। 

असल में इंसान जब दूसरी सभ्यताओं को अपनाने लगता है या दूसरी सभ्यताओं का आयात होने लगता है तो जो आयातक सभ्यता होती है वहाँ का वातावरण मिश्रित हो जाता है और समस्या शुरू हो जाती है और ये समस्याएं तब तक चलती हैं जब तक पूर्ण परिवर्तन न हो जाए।  तथाकथित जीवन का बिगड़ता परिद्रश्य हमारे समाज में चर्चा का विषय रहा है। 

हमसे पहले कई सभ्यताएं आई और खत्म हो गई।(हालांकि ये असत्य भी हो सकता

Piyush Shukla

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आईये हम सब मिलकर भगवान श्री कृष्ण का आह्वाहन करते हैं - लौट आओ कृष्ण फिर से इस धरा पर बिन तुम्हारे प

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लौट आओ कृष्ण फिर से इस धरा पर
बिन तुम्हारे पाप हमको हैं डराते ।

द्रोपदी के चीर पर संकट बड़े हैं
बिन किसी भी राह के अर्जुन खड़े हैं
गालियाँ देते हुए शिशुपाल कितने
रोज़ ही शासन की गद्दी पर चढ़े हैं

कंस लेता धार चोला साधुओं का
धूर्त के सब जाप हमको हैं डराते ।

खो रही हैं प्रेम की सब सभ्यताएं
अब नही कोई यहाँ बंशी बजाएं
राह तकती राधिका अब तक खड़ी है
गोपियों ने नीर से रच दी प्रथाएं

प्रेम का फिर स्वर सजा दो इस धरा पर
चीखते संताप हमको हैं डराते । श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आईये हम सब मिलकर भगवान श्री कृष्ण का आह्वाहन करते हैं - 

लौट आओ कृष्ण फिर से इस धरा पर
बिन तुम्हारे प

Arunima Thakur

धर्म. . . ??? प्रकृति को विजय करने का दम भरने वालों,

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"धर्म"


धर्म वास्तव में क्या हैं ?

( धर्म के बारे में मेरे विचार अनुशीर्षक में पढ़े) 
और अपने विचार रखे 



धर्म. . . ???

प्रकृति को विजय करने का दम भरने वालों,

अशेष_शून्य

जैसे सहेजते हैं किनारे धाराओं को, उठती गिरती नदी की व्याकुलता को। ठीक वैसे ही समेटती हैं कविताएं, उठती गिरती कवि की व्याकुलता को!! कविताऐं

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~©Anjali Rai जैसे सहेजते हैं किनारे धाराओं को,
उठती गिरती नदी की व्याकुलता को।
ठीक वैसे ही समेटती हैं कविताएं,
उठती गिरती कवि की व्याकुलता को!!

कविताऐं

AK__Alfaaz..

#पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #प्रेम_ग्रंथ था उसका घर, उसके प्रेम के, हृदय की उत्तर दिशा मे, उसकी हथेलियों की रेखाओं से,

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था उसका घर,
उसके प्रेम के,
हृदय की उत्तर दिशा मे,
उसकी हथेलियों की रेखाओं से,
चार कोस दूर,
पलकों की मेड़ से सटे,
जहाँ उसके एक किनारे,
अश्रु सरोवर मे,
खिलते हैं.. उसके,
वियोग के नीलकमल,
पूष की रात मे,
जिन पर गिरी ओस की बूँदें,
टिमटिमाती हैं,
किसी.. टूटे तारे की भाँति, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे 

#प्रेम_ग्रंथ

था उसका घर,
उसके प्रेम के,
हृदय की उत्तर दिशा मे,
उसकी हथेलियों की रेखाओं से,
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