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Stories related to रेणुका शुगर शेयर प्राइस

Naresh Kumar

जय मां रेणुका।

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Dr. Pradeep Kumar

शुगर ।

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Mohammad Gulfam

इलाज शुगर

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sanskar jain

शुगर फ्री

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आदत थी रिश्तों मे- शक्कर कि तरह धुल मिल जाने का ,,😄😄 

याद ही न रहा कि जमाना तो शुगर फ्री हो गया है ,,😳😳

©sanskar jain शुगर फ्री

सुनील मिश्रा

शुगर

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Renuka Priyadarshini

कविता !!!होड़!!!रेणुका प्रियदर्शिनी

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होड़

आज के इस दौड़ में
सबसे आगे निकल जाने की होड़ में
लोग भाग रहे हैं
यह सोचे बिना क्या साथ लिया
 क्या पीछे  रह गया
अपनी संस्कृति, अपना सभ्यता
अपना इतिहास, अपनी परंपरा
अपना गौरव , अपना ज्ञान 
अपनी मर्यादा और अपना आत्मसम्मान
सब हमसे छूटते जा रहे हैं
ये जो हम आगे आगे का 
भ्रम पाल रहे हैं
ज़रा पीछे मुड़कर देखें 
तो पता चले
 हम विपरीत दिशा में जा रहें हैं
हम विदेशी संस्कृति को देख-देख
बड़ा लुभाते हैं
अपना खान पान, पहनावा , दिनचर्या
सब उनकी तरह अपनाते हैं
अपने शौर्य, पुरुषार्थ,आत्मनिर्भरता
को हम इस तरह खोते जा रहे हैं
हमें पता भी नहीं हम किस तरह
गुलाम होते जा रहें हैं
अभी भी वक्त है
वापस घर अपने लौट आये
फिर से वेद पुराणों, परसम्पराओं
और संसकृति की सरण में जाये
भावी पीढ़ी सम्मान करे हमारा
हमारे आदर्शों का
इसलिए चलो एक बार फिर 
भारतीयता अपनाये
चलो एक बार फिर 
भारतीयता अपनाये

 रेणुका प्रियदर्शिनी #कविता !!!होड़!!!रेणुका प्रियदर्शिनी

gaurav sachdeva

शुगर फ्री....

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आदत थी रिश्तों में 
दूध-शक्कर की तरह घुल मिल जाने की,
पर याद ही नहीं रहा कि ज़माना तो
*शुगर फ़्री* हो गया है! शुगर फ्री....

deshraj ranawat

#शुगर फ्री इंडिया

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Shashank Rastogi

तुम्हारे इश्क़ ने
इतना मीठा घोल दिया है हमारे शरीर में
डर लगने लग गया है
कहीं शुगर ना बढ़ जाए
और ये इश्क़ किसी दिन
ज़हर मै ना बदल जाए #शुगर #मीठा #इश्क़ #ज़हर

Renuka Priyadarshini

#कविता!!!शब्दों के ख़जाने!!!रेणुका प्रियदर्शिनी

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शब्दों के खजाने

ज़रा संभल के खर्च करें इनको
ये शब्दों के खजाने हैं

कुछ शब्द विष से होते हैं
कुछ अमृत बन कर बहते हैं 
जीते जी नरक दिखाते कुछ
कुछ स्वर्ग द्वार ले जाते हैं

ज़रा संभल के ख़र्च करे इनको 
ये शब्दों के ख़जाने है

ये शब्द रूप है ब्रह्मा का
माँ सरस्वती का आधार भी ये
लक्ष्मी भी आती शब्दों से
इसमें बसते देव सारे हैं

ज़रा संभल के खर्च कर इनको
ये शब्दों के खजाने हैं

कुछ शब्द है भरते जख्मों को
कुछ सीना छलनी कर जाते हैं
जीने की वजह थमाते कुछ
कुछ घड़ी घड़ी तड़पाते हैं

ज़रा संभल के खर्च करें इनको
ये शब्दों के ख़जाने हैं

ये शब्दबाण ही अस्त्र है वो
जो चुभते है सालों-सालों
कुछ पत्थर बन बरसते तो
कुछ कोमलता बरसाते हैं

जरा संभल के खर्च करे इनको
ये शब्दों के ख़जाने हैं

कुछ शब्द भेदते आकाश सा मन
बिजली बन फिर कड़कते हैं
नयनों से फूटतीं धाराएं
और दिल बंजर कर जाते हैं

जरा संभल के खर्च करे इनको
ये शब्दों के खजाने हैं

आज शब्द की शक्ति माप ले हम
जो शब्दों में नहीं आते
कभी छीन लेते सारे रिश्ते
कभी सारा जग थमाते हैं

ज़रा संभल के ख़र्च करे इनको
ये शब्दों के ख़जाने हैं
               रेणुका प्रियदर्शिनी #कविता!!!शब्दों के ख़जाने!!!रेणुका प्रियदर्शिनी
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