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sanskar jain
आदत थी रिश्तों मे- शक्कर कि तरह धुल मिल जाने का ,,😄😄 याद ही न रहा कि जमाना तो शुगर फ्री हो गया है ,,😳😳 ©sanskar jain शुगर फ्री
शुगर फ्री
read moreसुनील मिश्रा
जी भर के मीठा बोलिए जनाब, रिश्तो में शुगर की बीमारी नहीं होती।। सुनील मिश्रा ©sunil mahraj शुगर
शुगर
read moreRenuka Priyadarshini
होड़ आज के इस दौड़ में सबसे आगे निकल जाने की होड़ में लोग भाग रहे हैं यह सोचे बिना क्या साथ लिया क्या पीछे रह गया अपनी संस्कृति, अपना सभ्यता अपना इतिहास, अपनी परंपरा अपना गौरव , अपना ज्ञान अपनी मर्यादा और अपना आत्मसम्मान सब हमसे छूटते जा रहे हैं ये जो हम आगे आगे का भ्रम पाल रहे हैं ज़रा पीछे मुड़कर देखें तो पता चले हम विपरीत दिशा में जा रहें हैं हम विदेशी संस्कृति को देख-देख बड़ा लुभाते हैं अपना खान पान, पहनावा , दिनचर्या सब उनकी तरह अपनाते हैं अपने शौर्य, पुरुषार्थ,आत्मनिर्भरता को हम इस तरह खोते जा रहे हैं हमें पता भी नहीं हम किस तरह गुलाम होते जा रहें हैं अभी भी वक्त है वापस घर अपने लौट आये फिर से वेद पुराणों, परसम्पराओं और संसकृति की सरण में जाये भावी पीढ़ी सम्मान करे हमारा हमारे आदर्शों का इसलिए चलो एक बार फिर भारतीयता अपनाये चलो एक बार फिर भारतीयता अपनाये रेणुका प्रियदर्शिनी #कविता !!!होड़!!!रेणुका प्रियदर्शिनी
कविता !!!होड़!!!रेणुका प्रियदर्शिनी
read moregaurav sachdeva
आदत थी रिश्तों में दूध-शक्कर की तरह घुल मिल जाने की, पर याद ही नहीं रहा कि ज़माना तो *शुगर फ़्री* हो गया है! शुगर फ्री....
शुगर फ्री....
read moreShashank Rastogi
तुम्हारे इश्क़ ने इतना मीठा घोल दिया है हमारे शरीर में डर लगने लग गया है कहीं शुगर ना बढ़ जाए और ये इश्क़ किसी दिन ज़हर मै ना बदल जाए #शुगर #मीठा #इश्क़ #ज़हर
Renuka Priyadarshini
शब्दों के खजाने ज़रा संभल के खर्च करें इनको ये शब्दों के खजाने हैं कुछ शब्द विष से होते हैं कुछ अमृत बन कर बहते हैं जीते जी नरक दिखाते कुछ कुछ स्वर्ग द्वार ले जाते हैं ज़रा संभल के ख़र्च करे इनको ये शब्दों के ख़जाने है ये शब्द रूप है ब्रह्मा का माँ सरस्वती का आधार भी ये लक्ष्मी भी आती शब्दों से इसमें बसते देव सारे हैं ज़रा संभल के खर्च कर इनको ये शब्दों के खजाने हैं कुछ शब्द है भरते जख्मों को कुछ सीना छलनी कर जाते हैं जीने की वजह थमाते कुछ कुछ घड़ी घड़ी तड़पाते हैं ज़रा संभल के खर्च करें इनको ये शब्दों के ख़जाने हैं ये शब्दबाण ही अस्त्र है वो जो चुभते है सालों-सालों कुछ पत्थर बन बरसते तो कुछ कोमलता बरसाते हैं जरा संभल के खर्च करे इनको ये शब्दों के ख़जाने हैं कुछ शब्द भेदते आकाश सा मन बिजली बन फिर कड़कते हैं नयनों से फूटतीं धाराएं और दिल बंजर कर जाते हैं जरा संभल के खर्च करे इनको ये शब्दों के खजाने हैं आज शब्द की शक्ति माप ले हम जो शब्दों में नहीं आते कभी छीन लेते सारे रिश्ते कभी सारा जग थमाते हैं ज़रा संभल के ख़र्च करे इनको ये शब्दों के ख़जाने हैं रेणुका प्रियदर्शिनी #कविता!!!शब्दों के ख़जाने!!!रेणुका प्रियदर्शिनी
#कविता!!!शब्दों के ख़जाने!!!रेणुका प्रियदर्शिनी
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