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Anjali Singhal
"यादें हैं थकी हुईं और एहसास पड़ा निढाल है, टूट रहा मुझमें कुछ आज दिल उदास है। साँसों का बिखरना लाज़िमी और दर्द का रुकना मुहाल है, दिल के इ
read moreIG @kavi_neetesh
White “ निशीथ का दिया “ तुम जलो , जलना तुम्हें है तुम चलो , चलना तुम्हें है पथ तुम्हें दुर्गम मिलेंगे मन तुम्हारा वह छलेंगे हारकर रुकना नहीं है टूटकर झुकना नहीं है जय विजय का प्रण लिए निर्भीक पग चलना तुम्हें है तुम जलो, जलना तुम्हें है।। दिव्यता का दीप तुम हो सजग प्रहरी वीर तुम हो चिर निरंतर जल रहा जो धर हृदय वह धीर तुम हो सृष्टि के कल्याण परहित कठिन पथ चलना तुम्हें है तुम जलो, जलना तुम्हें है।। रोशनी के तुम शिखर हो तिमिर के शत्रु प्रखर हो हो रहा जो रण अटल उस सभ्यता का दीप तुम हो घोर गहवर इन तमों से लड़ना सदा डटकर तुम्हें है तुम जलो , जलना तुम्हें है ।। ©IG @kavi_neetesh #GoodMorning प्रेम कविता देशभक्ति कविताएँ कविताएं कविता कोश हिंदी कविता “ निशीथ का दिया “ तुम जलो , जलना तुम्हें है तुम चलो , चलना तुम्ह
#GoodMorning प्रेम कविता देशभक्ति कविताएँ कविताएं कविता कोश हिंदी कविता “ निशीथ का दिया “ तुम जलो , जलना तुम्हें है तुम चलो , चलना तुम्ह
read moreDr. uvsays
रुकना मत-टूटना मत #Faith #viral Poetry #Hindi #beunstoppable #Be life love #nevergiveup #uvsays
read moreChandrawati Murlidhar Gaur Sharma
White आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे साझा कर दूं, क्योंकि हो सकता है कि आपने भी ऐसा किया हो। जब हम बचपन में अंधेरे से डरते थे, और हमें रात को किसी काम से बाहर भेजा जाता था, या फिर किसी पड़ोसी के घर पर खेलते-खेलते देर हो जाती थी और अंधेरा छा जाने के कारण डर लगने लगता था, लेकिन घर भी तो जाना था। तो हम अपने ताऊजी, मां, काकी, या दादी से कहते थे कि "घर छोड़ कर आ जाओ।" और वे कहते, "हां, चलो छोड़ आते हैं।" जब घर का मोड़ आता तो वे कहते, "अब चल जा," लेकिन डर तो लग रहा होता था। तो हम कहते, "आप यहीं रुकना," और वे बोलते, "मैं यहीं हूँ, तेरा नाम बोलते रहूंगा।" जब तक वे हमारा नाम लेते रहते थे और जब तक हम घर नहीं पहुंच जाते थे, हमें यह विश्वास होता था कि वे हमारे साथ ही हैं, भले ही वे घर लौट चुके होते। लेकिन जब तक हमारा दरवाजा नहीं खुलता था, तब तक डर लगता था कि कोई हमें पीछे से पकड़ न ले। और जैसे ही दरवाज़ा खुलता, हम फटाफट घर के अंदर भाग जाते थे। फिर, जब घर के अंधेरे में चबूतरे से पानी लाने के लिए कहा जाता था, तो हम बच्चों में डर के कारण यह कहते, "नहीं, पहले तू जा, पहले तू जा।" एक-दूसरे को "डरपोक" भी कहते थे, लेकिन सभी डरते थे। पर जाना तो उसी को होता था, जिसे मम्मी-पापा कहते थे। वह डर के मारे कहता, "आप चलो मेरे साथ," और वे कहते, "नहीं, तुम जाओ, तुम तो मेरे बहादुर बच्चे हो। मैं तुम्हारा नाम पुकारूंगा।" और फिर जब वह पानी लेकर आता, तो वे कहते, "देखो, डर नहीं लगा न?" लेकिन सच कहूं तो डर जरूर लगता था। पर यही ट्रिक हम दूसरे पर आजमाते थे। आज देखो, हम और हमारे बच्चे क्या डरेंगे, वे तो डर को ही डरा देंगे! 😂 बातें बहुत ज्यादा हो गई हैं, कुछ को फालतू भी लग सकती हैं, लेकिन हमारे बचपन में हर घर में हर बच्चे के साथ यही होता था। अब आपकी प्रतिक्रिया देने की बारी है। क्या आपके साथ भी यही हुआ ChatGPT can make ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma कैप्शन में पढ़े 🤳 आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे
कैप्शन में पढ़े 🤳 आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे
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