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PRAVEEN YADAV
इतिहास भाग 2 प्राचीन इतिहास प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के मुख्य रूप से 4 स्रोत हैं 1 धर्म ग्रंथ 2 ऐतिहासिक ग्रंथ 3 विदेशियों का विवरण 4 पुरातत्व संबंधी साक्ष्य 1 धर्मग्रंथ से मिलने वाली महत्वपूर्ण जानकारी भारत का सर्वप्राचीन धर्मग्रंथ वेद है, जिसके संकलन कर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है| वेद 4 हैं - 1 ऋग्वेद 2 यजुर्वेद 3 सामवेद 4 अथर्ववेद ऋग्वेद ऋचाओं के क्रम बद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है|इसमें 10 मंडल,1028 सूक्त तथा 10462 रिचाए हैं|इन ऋचाओं को पढ़ने वाले को होतृ कहा जाता है| इस वेद से आर्य समाज के राजनीतिक प्रणाली और इतिहास के बारे में पता चलता है| ©PRAVEEN YADAV ऋग्वेद
ऋग्वेद
read moreसुरेश चौधरी
ऋग्वेद 8.49.4 समानी व आकूति: समाना ह्रदयानि व:। समानमस्तु वो मनो यथा व: सुसहासति॥ गीतिका छंद : एक हो उद्देश्य संगत सी हमारी भावना हो विचारों की हमारी एकता प्रस्तावना विश्व जैसे आज एकत्रित यहां है एकता सब असमता दूर हो जागो यहां प्रभु देखता ऋग्वेद 8,49,4
ऋग्वेद 8,49,4
read moreवेदों की दिशा
।।ॐ।। स्वादो पितो मधो पितो वयं त्वा ववृमहे। अस्माकमविता भव॥ पद पाठ स्वादो॒ इति॑। पितो॒ इति॑। मधो॒ इति॑। पि॒तो॒ इति॑। व॒यम्। त्वा॒। व॒वृ॒म॒हे॒। अ॒स्माक॑म्। अ॒वि॒ता। भ॒व॒ ॥ हे परमेश्वर! आपने स्वादिष्ट अन्नों और मधुर पेयों की हमारे लिए रचना की है। आप हमारी रक्षा करें और यह अन्न और पेय हमारे जीवन की सुरक्षा और पोषण के लिए सदैव हमें प्राप्त होते रहें। Oh God! You have created delicious foods and honeysweet drinks for us. You protect us and we may always keep receiving such food and drink for the protection and nutrition of our lives. (Rig Veda 1–187–2) (ऋग्वेद » मण्डल:१» सूक्त:१८७» मन्त्र:२ | अष्टक:२» अध्याय:५» वर्ग:६» मन्त्र:२ | मण्डल:१» अनुवाक:२४» मन्त्र:२) #Beauty #ऋग्वेद #वेद
"Vibharshi" Ranjesh Singh
जब ना सत था , ना असत था जब ना कोई रज था, ना व्योम जब ना थी कोई ध्वनि, ना ॐ। फिर किस तत्व ने श्रृष्टि बनाई ? और उस तत्व को बनाया कौन? उसकी जननी कौन, जनक कौन ? जब ना मृत्यु थी, ना उसका अभाव जब ना था रात और दिन का प्रभाव था कुछ जो अनादि था, स्वयंभू था स्वध्या ही होना था उसका स्वभाव जब अंधकार सा था पर था उससे गहरा जिसका हर जगह लगा हुआ था पहरा था शून्य सा शायद,हमारे समझ से परे जो था सब था उस तत्व के इर्द गिर्द पड़े फिर उसी तत्व से जन्म हुआ महत का जिससे बाद में जन्म हुआ सत,असत का जैसे हमारे मन के अंदर है इच्छाएं वर्तमान उसी प्रकार महत में इच्छाएं उत्पन्न हुई फिर इच्छाओं से कालांतर में हुआ सबका निर्माण एक विस्फोट हुआ फिर रश्मियां फैली चारो ओर कुछ ऊपर गई, कुछ नीचे गई, पहुंच गई हर छोर इच्छाएं बंधने लगी फिर आपस में,जिससे कण बने पदार्थ बना, अंतरिक्ष बना ,गुरुत्व बना और क्षण बने तारे बने, सितारे बने, ग्रह बने, वायु बना और जीवन बने पर वह तत्व कैसे बना जो था शुरू से विद्धमान कौन जानता है शुरू से की कैसे हुई श्रृष्टि निर्माण कौन है जो प्रवचन दे इस पर ,किसपे है इतना ज्ञान देवता भी बता ना पाएंगे, शुरू से थे नही वो भी वर्तमान देवता हो या ऋषिगण,वो बस लगा पाएंगे केवल अनुमान ©"Vibharshi" Ranjesh Singh #watchtower #ऋग्वेद #Nasadiyasukta
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read moreवेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। त्रिर्नो॑ अश्विना दि॒व्यानि॑ भेष॒जा त्रिः पार्थि॑वानि॒ त्रिरु॑ दत्तम॒द्भ्यः । ओ॒मानं॑ शं॒योर्मम॑काय सू॒नवे॑ त्रि॒धातु॒ शर्म॑ वहतं शुभस्पती ॥ पद पाठ त्रिः । नः॒ । अ॒श्वि॒ना॒ । दि॒व्यानि॑ । भे॒ष॒जा । त्रिः । पार्थि॑वान् । त्रिः । ऊँ॒ इति॑ । द॒त्त॒म् । अ॒त्भ्यः । ओ॒मान॑म् । श॒म्योः । मम॑काय । सू॒नवे॑ । त्रि॒धातु॑ । शर्म॑ । व॒ह॒त॒म् । शु॒भः॒ । प॒ती॒ इति॑॥ मनुष्यों को चाहिये कि जो जल और पृथिवी में उत्पन्न हुई रोग नष्ट करनेवाली औषधी हैं उनका एक दिन में तीन बार भोजन किया करें और अनेक धातुओं से युक्त काष्ठमय घर के समान यान को बना उसमें उत्तम-२ जव आदि औषधी स्थापन अग्नि के घर में अग्नि को काष्ठों से प्रज्वलित जल के घर में जलों को स्थापन भाफ के बल से यानों को चला व्यवहार के लिये देशदेशान्तरों को जा और वहां से आकर जल्दी अपने देश को प्राप्त हों इस प्रकार करने से बड़े-२ सुख प्राप्त होते हैं ॥ Humans should eat food that is a disease-destroying drug produced in water and earth three times in a day and make a vehicle like a wooden house with many metals, making the best medicine in it, setting fire in the house of fire. Place the waters in the house of water ignited by wood, go abroad to the countries for the practice of running the vehicles with the help of force, and come from there and get to your country quickly, in this way, you get great happiness. ( ऋग्वेद १.३४.६ ) #ऋग्वेद #वेद #मंत्र
वेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। आ ति॑ष्ठ॒ रथं॒ वृष॑णं॒ वृषा॑ ते सु॒तः सोम॒: परि॑षिक्ता॒ मधू॑नि। यु॒क्त्वा वृष॑भ्यां वृषभ क्षिती॒नां हरि॑भ्यां याहि प्र॒वतोप॑ म॒द्रिक् ॥ पद पाठ आ। ति॒ष्ठ॒। रथ॑म्। वृष॑णम्। वृषा॑। ते॒। सु॒तः। सोमः॑। परि॑ऽसिक्ता। मधू॑नि। यु॒क्त्वा। वृष॑ऽभ्याम्। वृ॒ष॒भ॒। क्षि॒ती॒नाम्। हरि॑ऽभ्याम्। या॒हि॒। प्र॒ऽवता॑। उप॑। म॒द्रिक् ॥ जो आहार-विहार से सोमादि ओषधियों के रस के सेवनेवाले, दीर्घ ब्रह्मचर्य्य, किये हुए शरीर और आत्मा के बल से युक्त राजजन बिजुली आदि पदार्थों के वेग से युक्त यानों को सिद्ध कर दण्ड से दुष्टों को निवारण कर न्याय से राज्य की रक्षा कराया करें, वे ही सुखी होते हैं ॥ Those who serve the juices of Somadi medicines, long brahmacharya, Rajjan Bijuli with the strength of the body and soul, with the speed of food, prove the evil of the wicked, and protect the state from justice, They are happy ( ऋग्वेद १.१७७.३ ) #ऋग्वेद #वेद #मंत्र