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Shashi Bhushan Mishra

#अपना चाहा कब होता है#

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हंसती आंखें दिल रोता है,
अपना चाहा कब होता है,

गाने  वाला  रो दे अक़्सर,
पाने  वाला  ही   खोता है,

राम नाम  रटने  वाला भी,
फंसा जाल में ज्युं तोता है,

रोज़ नहाये  गंगा  जल से,
मन का मैल नहीं धोता है,

पछताने से क्या होगा जब,
बीज दुखों का ख़ुद बोता है,

रात में  करता है  रखवाली,
श्वान दिवस में ही  सोता है,

ज्ञान बिना दुनिया में गुंजन,
भंवर  बीच  खाता गोता है,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'

©Shashi Bhushan Mishra #अपना चाहा कब होता है#

s गोल्डी

गाँवे के लोग कहे लइका तहार नमूने ह बड़का तनी भोला-भला छोटका अफलातुने ह......

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गाँवे के लोग पापा जी से कहे 
लइका तहार नमूने ह
बड़का तनी भोला-भला 

छोटका अफलातुने ह......

©s गोल्डी गाँवे के लोग कहे
लइका तहार नमूने ह
बड़का तनी भोला-भला 
छोटका अफलातुने ह......

Rakesh frnds4ever

#कहना_सुनना आखिर कब तक #सहना सहना आखिर कब तक,,,,,, #क्रूरताओं और #अत्याचारों के बीच में चीखती मेरी #खामोशियाँ आखिर कब तक, प्रताड़नाओं

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Shashi Bhushan Mishra

#ख़्वाहिश कब लेती मंजूरी#

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ख़्वाहिश कब लेती मंज़ूरी,
रहती मन की बात अधूरी,

भाग्य साथ देता तो होती,
मनोकामनाएं  सब   पूरी,

दीदावर मिल जाए सच्चा,
नर्गिस कभी न हो  बेनूरी,

लोग  मुकर जाते वादे से,
रहती होगी कुछ मज़बूरी,

मनचाहा मिल जाए कैसे,
क़िस्मत के हाथों में छूरी,

हरपा हुआ नहीं फल देता,
छल प्रपंच से  रखना दूरी,

जीवन सफ़ल बना देता है,
'गुंजन' श्रद्धा  और  सबूरी,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #ख़्वाहिश कब लेती मंजूरी#

Parasram Arora

कब आएगी वो घड़ी

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White इस दुनिया का हर
 देश और प्रत्येक  
आदमी आश्वत है कि 
जल्द आयेगी वो
घडी 
ज़ब दूनिया मे एक 
क्रन्तिकारी परिवर्तन 
होता हुआ दिखेगा 


 इस घड़ी की 
प्रतीक्षा हर युग मे 
की गई  लेकिन कुछ 
भी बदलता हुआ 
हमें दिखा नही है 
आज तक

©Parasram Arora कब आएगी वो घड़ी

Heer

तुम्हे प्यार है मुझसे,पर कब तक! जब तक......!!

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unique writer

सब कब पराये बन गए।

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Urvashi Kapoor

#ना जाने कब.....

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F M POETRY

#कब मिलेगी मुझे मेरी मंज़िल

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Shashi Bhushan Mishra

#कब तलक मेला चलेगा#

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कब तलक मेला चलेगा, 
फिर अकेलापन खलेगा,

दिवस का अवसान होगा, 
सूर्य   अस्ताचल   ढ़लेगा,

ख़त्म होंगे  बाग से फल, 
वृक्ष भी कबतक फलेगा,

बढ़ेगा उत्ताप जिस दिन, 
बर्फ  पर्वत  पर  गलेगा,

मोह में जिसके पड़े तुम, 
वही आकर फिर छलेगा,

फूँक कर तुम छाछ पीना, 
तप्त हो यदि  मुँह जलेगा,

लाख करलो कोशिशें तुम, 
लिखा विधि का ना टलेगा,

चूकना  अवसर न 'गुंजन',
हाथ फिर कबतक मलेगा,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      समस्तीपुर बिहार

©Shashi Bhushan Mishra #कब तलक मेला चलेगा#
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