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Amit Rawat
उसकी याद में खयाली पुलाव बनाते जा रहा हूँ, शायरी के लफ्ज कविता में लिखते जा रहा हूँ । स्वाद में इसके डूब कर मैं खोते ही जा रहा हूँ, दूर से ही उस की बाहों में घिरते जा रहा हूँ ।। ©Amit Rawat #उसकी #याद #खयाली #पुलाव #कविता #शायरी #लफ्ज़ #गीत #Nojoto #Instagram
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खयाली पुलाव पकाने में कुछ भी नहीं रखा है, जिसने की मेहनत उसी ने मीठा फल चखा है। बातें बनाने से ही सब कुछ नहीं मिल जाता है, जिसे हो लक्ष्य पाने का जुनून वही तर जाता है। 🖤 #sipicprompt802 Sublime Inscriptions 🤗 Day 3 of "SI_COUPTRAIN WRITING" Task 02 (मुहावरा "खयाली पुलाव पकाना") ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ #sicoll
🖤 #sipicprompt802 Sublime Inscriptions 🤗 Day 3 of "SI_COUPTRAIN WRITING" Task 02 (मुहावरा "खयाली पुलाव पकाना") ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ sicoll
read moreVedantika
उनकी मोहब्बत में मेरा दिल यूँ कुर्बान हैं वो हमारी मोहब्बत से अब तक अंजान हैं ख़याली पुलाव पका कर हम थक गए उनके प्यार की मिठास किसी और के नाम है 🖤 #SIpicprompt802 is out for collab by Sublime Inscriptions 🤗 A part of "SI_COUPTRAIN WRITING" Day 03,Task 02 ◆ Hindi : मुहावरा
🖤 SIpicprompt802 is out for collab by Sublime Inscriptions 🤗 A part of "SI_COUPTRAIN WRITING" Day 03,Task 02 ◆ Hindi : मुहावरा
read morePoonam Ritu Sen
"अनभिज्ञता का आवरण लिए अब और चुप नहीं बैठ सकते हम" I performed this poetry on Raipur's 2nd OPEN MIC, Read full poetry in caption ( सभी प्रकार के सामजिक बुराइयों और कुरीतियों को एक ही कविता में पिरो कर एक तरह की खिचड़ी लिखने की कोशिश मैंने की है ) लिप्त हैं आज हमारे समाज मे हजारो बुराइयाँ लाखों में कुरीतियां उनमें से- कुछ छपती है अखबारों में कुछ दिख जाती है आम बाजारों में कुछ बिकती है
लिप्त हैं आज हमारे समाज मे हजारो बुराइयाँ लाखों में कुरीतियां उनमें से- कुछ छपती है अखबारों में कुछ दिख जाती है आम बाजारों में कुछ बिकती है
read more" शमी सतीश " (Satish Girotiya)
"Short Story" "First & Last Ride Together" "फर्स्ट एन्ड लास्ट राईड टूगेदर" ........................................................... शिवम कालेज पार्किंग से अपनी बाइक निकाल ही रहा थ
"फर्स्ट एन्ड लास्ट राईड टूगेदर" ........................................................... शिवम कालेज पार्किंग से अपनी बाइक निकाल ही रहा थ
read moreJay Trivedi
इस रात की तन्हाई में नजाने क्यों ये मायूसी सी छायी हैं, पलके जुकाये में सोया हूँ पर कम्बख्त ये नींद नही आयी हैं। गुनगुनाती रहती हैं यूँ तो हज़ारो पंक्तिया इस चंचल मन में, पर ज़ेहन में जो बात हैं वो फिरभी कलम तक नहीं आयी हैं। लगता हैं कुछ स्पर्धा सी चल रही हो ये मेरे दिमाग में, मगर आज भी ये नींद मेरे खयालो से जीत नही पायी हैं। हर मेरी करवट के साथ एक नया सा खयाल आ जाता हैं, जैसे मेरे इस मन पर अनजान खयालो ने कुंडली जमाई हैं। मुख़्तसर सी हो गयी हो इन दिनों रातो की ये नींद मेरी और पूरी रात जैसे "रुद्र" मेरी बेखयाली में खयाली हैं। - जय त्रिवेदी ("रुद्र") #खयाली