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Lata Sharma सखी
जिंदगी गुजरती है कई सारे स्टेशनों से, कुछ में हम ठहरते हैं कुछ हममें ठहर जाते हैं, सुनो! तुम मेरा ऐसा ही कोई स्टेशन हो, जिसमें मैं जरा ठहरी तो वो मुझमें ठहर गया। ©सखी ©Lata Sharma सखी #स्टेशन
Nidhi Pant
लंबे अरसे से घर में रहते हुए जब अचानक बाहर निकलो तो लगता है दुनिया कितनी आगे निकल चुकी है। और हम वहीं के वहीं हैं। पर सच तो ये है कि जो दुनिया हम देख रहे हैं वो भी घर के अंदर जाने का ही इंतज़ार कर रही होती है।अंदर होते हैं तो बाहर जाने के बारे में सोचकर बाहर निकल आते हैं और बाहर से अंदर जाने की राह देखते रहते हैं। घर को हम सबने एक स्टेशन मान लिया है, जो आने और जाने के बीच एक सुस्ताने भर की जगह है। कभी अगर शहर बदल लिया तो स्टेशन भी बदल जाता है।दूसरी जगह जाकर भी वो घर नहीं बन पाता।उसी तरह दुनिया वहीं की वहीं है बस चेहरे नए हैं। हम भी वहीं हैं और दुनिया भी।😊 #स्टेशन
Neelam bhola
बचपन,जवानी,बुढ़ापा जैसे स्टेशन हो कोई, रेलवे स्टेशन!! या रेलवे स्टेशन में सिमट आये हो ये दौर जिंदगी के, सुबह का स्टेशन मानो नन्हा बच्चा हो कोई, कभी शांत,कभी चाय चाय की किलकारी सा गूंजता, सौंधी सी खुशबु लिये, बच्चे कि हँसी सा, कभी खिलखिलाता,कभी चुपचाप स्टेशन, बचपन का सा स्टेशन,हल्के से आँख मूँदता-खोलता सा दिखता है, न आने-जाने की होड़ कहीं, आदमी ना भागता सा,ज़रा रुका सा दिखता है, दोपहर होते होते स्टेशन पे भीड़ बढ़ती जाती है, जवानी की ही तरह जिम्मेदारी हर तरफ नज़र आती है, कहीं कूली,कहीं चाय,कहीं लोगों का सामान, जवानी का पहर है, ये है मुश्किल,है नही आसान, चारों तरफ रिश्तों और जिम्मेदारियों की तरह लोग नज़र आते है, ना जाने कहाँ जाते है,कहाँ से लौट के आते हैं, कुछ न आने के लिये वापिस, कुछ न जाने के लिये आते है, जवानी भी कुछ इसी तरह के पहलुओं को समेटें है, कहीं खड़े हैं लोग,कहीं बेबस से लैटे हैं, बुढ़ापे की तरह ही ढलती है हर एक शाम स्टेशन पर, कुछ लोगों के लिये खास, कुछ लोगों के लिये आम स्टेशन पर, बुढ़ापे की तन्हाई की तरह, स्टेशन की शाम भी तन्हा होती जाती है, स्टेशन पे अब गाड़ी भी कुछ कम ही आती हैं, न कूली,न चाय न साजो-सामान होता है, बुढ़ापे की ही तरह तन्हा स्टेशन, हर रोज़ आम होता है।।।। ©Neelam bhola स्टेशन
स्टेशन
read moreRoshan Sagar
दिसल्यास ती मन होतं भाऊक स्परळ.. जातो विसरून त्या वाटेवरचे ते वळण... जाण्यास निघालो आयुष्याच्या स्वप्नांकडे .. भेटलीस ती कधी तर स्वप्नांनाही विसर पडे.... फिरत्या वाटेवरुनी हेवा वाटावा मज तो श्रीमंतांचा.. भेटलीस ति वाटेत हेवा फक्त तिचाच का करावा.... ती अभ्यासू ती जिज्ञासू ती पुस्तकी किडा.. पुस्तक हाती नजर वाकडी मी तुझ्याचसाठी वेडा.... जाता तू संध्याकाळी त्या देवाच्या मंदिरी.. तेव्हाचं देवाच्या नावाखाली नास्तिकही देव देव करी.... अशी ती देवापेक्षाही सुंदर परी.. त्याच्यानेच आयुष्याचे माझे स्वप्न हि मि तिला दान करी.... त्या देवाच्या दानपेटीत जसा टाकावा रुपया.. त्याचे भोग म्हणून आता हातात वाटकं अन् दे दोन रुपया.... डेंजरस रोड
डेंजरस रोड
read moreParasram Arora
प्रेम के जिस अथाह सागर से मुझे बेदखल किया गया था. आज उस प्रेम सागर की उतंग लहरों क़ो देख कर मै अपनी मंज़िल क़ा रोड मैप पा गया हूँ ©Parasram Arora रोड मैप
रोड मैप
read moreDr Wasim Raja
रेलवे प्लेटफार्म पर यात्रियों का लगातार आना-जाना है। रेलगाड़ी का काम मानव को गंतव्य स्थान पर पहुंचना है।। रेलवे विभागीय कर्मचारियों द्वारा यात्रा सुगम बनाना है। यात्रीगण कृपया ध्यान दें ,गाड़ी की स्थिति समझाना है।। आइए कुछ क्षण गाड़ियों के इंतजार में सुस्ताना है। गाड़ी आते ही तत्परता पूर्वक होशियारी दिखाना है।। पुछ ताछ केन्द्र का काम पल पल गाड़ी के बारे बताना है। यहां हर गाड़ी का अपना अलग-अलग होता ठिकाना है।। यहां कोई नहीं होता है अपना सब बना रहता बेगाना है। लगातार शोर गुल होता है सबको आपस में बतियाना है।। सही गाड़ी पर चढ़े अन्यथा कहीं और पहुंच जाना है। बड़े-बड़े रेलवे स्टेशनों का बस यही तो अफसाना है।। सजग रहें, सावधान रहें! यही रेलवे का ताना-बाना है। जान है तो जहान है सुरक्षित यात्रा हो,नहीं हड़बड़ाना है।। ©Dr Wasim Raja रेलवे स्टेशन
रेलवे स्टेशन
read moreParasram Arora
अंततः जिंदगी की रेल वक़्त क़े खामोश प्लेटफार्म पर से गुजरते गुजरते एक दिन तो मुक़्क़मल मंजिल पर जा पहुंची जहाँ लिखा था "आगे अब और कोई स्टेशन नहीं.... सिर्फ अँधेरी गहरी खाई हैँ..... यही उतरो अंतिम छलांग लगाकर जिन्दगी को अलविदा कह डालो.. " आखरी स्टेशन.......
आखरी स्टेशन.......
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