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GoluBabu
किस संत के प्रयत्न से हो रहा एक बार पुनः सनातनी पूजा का पुनरुत्थान? जानने के लिए देखिए "सनातनी पूजा के पतन की कहानी, संत रामपाल जी महाराज क
read moreHardik Mahajan
_स्वयंयुग पब्लिकेशन से प्रकाशित हार्दिक महाजन की पहली पुस्तक *'कमेंट्स में कोट्स'* आउट ऑफ स्टॉक हो चुकी है। अब हम दूसरे संस्करण पर कार्य कर
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True Guru Sant Rampal Ji Maharaj जो संत शास्त्रों के अनुसार भक्ति साधना बताता है, वही पूर्ण संत होता है। इसके विषय में गीता अध्याय 4 श्लोक
read moreसंस्कृतलेखिकातरुणाशर्मा-तरु
पहला संस्कृत संस्करण हमारी पहली पुस्तक विचारों का आशियाना अर्थात विचाराणाम् गृहम् हमरुह पब्लिकेशन के सौजन्य से संस्कृत लेखिका तरुणा शर्मा
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एक झलक सतलोक आश्रम की ओर 🍁अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक *"ज्ञान गंगा"* संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित ये पुस्तक फ्री में प्राप्
read moreSaket Ranjan Shukla
एक साधारण लेखक के तौर पर अत्याधिक प्रसन्नता और बड़े ही गर्व के साथ मैं पेश करता हूँ “काव्य Saga (बोलती कविताओं का संग्रह)" जो कि मेरे द्वारा
read moreVikas Sahni
White आज कविता जुल्मत-ए-सुबह से जग रही है पर सुंदर नहीं लग रही है न नहाने-खाने के कारण स्वतंत्रता के पुराने गाने गाने के कारण चिढ भी रही है वह। होकर नाराज़ नभ देख रही है और मैं उसकी आँखों में देखते-देखते दस बजे सजे पुस्तक-पन्नों के शब्दाें को फेसबुक; व्हाट्सएप; इंस्टाग्रामादि पर सजा रहा हूँ, "प्रसन्न बच्चों की आवाज़ें सर्वत्र गूँज रही हैं; सभी के लिए यह दिवा मेहमान है, पतंगों से सजा आसमान है, जिसकी ओर कविता का भी ध्यान है और उसकी ओर मेरा ध्यान है। लाल-पीली; हरी-नीली-पतंगें युद्ध-खेल खेल रही हैं अनंत आसमानी पानी और बादलों के बगीचे में मैंने देखा उन्हें कविता की आँखों से भरी पड़ी प्रत्येक छत है, प्रत्येक पतंग प्रतिस्पर्धा में रत है, कई किन्हीं इशारों पर नाच रही हैं, कई मुक्ति पाने-जाने के लिए छटपटा रहीं हैं, पिन्नी वाली फटी फटफटा रही हैं, कई मुक्त हुए जा रही हैं पश्चिम से पूर्व की ओर मस्ती में ठुमका लगाते हुए जा रही हैं अपने लक्ष्य की ओर तो कई कैदी बने रो रही हैं पक्के धागे के पिंजरे में, जिस प्रकार पक्षी (पतंग) अपने अंग-अंग को पटकते हैं पिजरे में बड़ी बेरहमी से फिर कविता की आँखों की नमी से पूछा मैंने कि क्या हुआ इससे आगे, क्या टूट गये वे सारे धागे? कविता ने कहा, "टूट ही जायेंगे कभी-न-कभी पतंगों के धागे, टूट ही जायेंगे कभी-न-कभी भिन्न-भिन्न रंगों के धागे। है आवश्यक अभी कि काश टूट जाते बुराई के धागे!!" . ...✍️विकास साहनी ©Vikas Sahni #पतंगों_के_प्रति आज कविता जुल्मत-ए-सुबह से जग रही है पर सुंदर नहीं लग रही है न नहाने-खाने के कारण स्वतंत्रता के पुराने गाने गाने के कारण चिढ
#पतंगों_के_प्रति आज कविता जुल्मत-ए-सुबह से जग रही है पर सुंदर नहीं लग रही है न नहाने-खाने के कारण स्वतंत्रता के पुराने गाने गाने के कारण चिढ
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