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Stories related to बिंदल गद्दा

Pooja Udeshi

#Comedy गद्दा #POOJAUDESHI

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Diamond city

आज कल के लोग खोली. गद्दा. तकिया जैसे हों गए है. जैसे खोली, गद्दा, तकिया, के बाहरी बाला भाग सुन्दर कलरफुल होता है वैसे उसी तरह व्यक्ति का ब

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 आज कल के लोग 
खोली. गद्दा. तकिया जैसे हों गए है. 
जैसे खोली, गद्दा, तकिया, के बाहरी बाला भाग सुन्दर कलरफुल होता है वैसे उसी तरह व्यक्ति का ब

Diamond city

आज कल के लोग..... जैसे आपने खोली. गद्दा. तकिया के ऊपरी बाला भाग बहुत ही सुन्दर मय और कलर फूल होता है उसी तरह आज के समय के लोग होते है ll उ

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 आज कल के लोग..... 
जैसे आपने खोली. गद्दा. तकिया के ऊपरी बाला भाग बहुत ही सुन्दर मय और कलर फूल होता है उसी तरह आज के समय के  लोग होते है ll उ

Vedantika

डियर पिम्पल तुम कहाँ चले गए मेरे चेहरे का मुलायम गद्दा छोड़कर? मेरी ज़िंदगी में तुम अपनी एहमियत जानते भी हो या नहीं। लोगों ने तुम्हारी वजह से

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शिकायती पत्र
पिम्पल के लिए डियर पिम्पल

तुम कहाँ चले गए मेरे चेहरे का मुलायम गद्दा छोड़कर? मेरी ज़िंदगी में तुम अपनी एहमियत जानते भी हो या नहीं। लोगों ने तुम्हारी वजह से

पत्रकार रमेश सोनी Soni

द न्यूज उत्तर प्रदेश दुल्लहपुर गाजीपुर।क्षेत्र के सिखड़ी पंडित मदन मोहन मालवीय इंटर कालेज में रविवार की रात्रि 10 बजे बसों में भरकर गैर प्रां

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Manjeet

ये सूखे नैन झूठे है, मुझे घर याद आता है, कुछ बहानो से ही बरसने दो नैनो को, यूँ अल्फ़ाज़ मुकर जाते है, हाल ए दिल कहने से, नम आंखों को कहने दो,

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कुछ लम्हें ज़िन्दगी के

बिन फेरे हम तेरे -3 "बिन फेरे हम तेरे -3" कल टटोला जब खुद को सैकड़ों गड्डों में सैकड़ों वीरानियाँ मिली,,,,,,,,, ठंड से ख़

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"बिन फेरे हम तेरे -3"

कल टटोला जब खुद को सैकड़ों गड्डों में सैकड़ों वीरानियाँ मिली,,,,,,,,,
ठंड  से ख़ुश्क पड़ गए है गड्डों में ख्वाहिशें मुझे खोदी जा रही थीं ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,   

           आज इन गड्ढों में फुरसत से बैठ के ख़्वाहिशों की खोदी हुई मिट्टी और खुशफैमियों का लेप बनाके भरना शुरू किया,,,,,,,,,,,,

      इक गड्ढे में था इक दोस्त पुराना जिसे अब उसके सच्चे दोस्त मिल गए थे ,,,,,,,,,भर डाला उसे के उसकी तलाश ख़त्म ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

इक गड्ढे में रख्खी थी ख्वाहिश गले लगने की टूट के रोना था और ये कहना था कि अब मैं हूँ ........ पर अब पापा नहीं हैं ............................,,,,,,,,,,,,,,

कुछ गड्डों में ख़्वाहिश थी दुनिया घूमने की मैंनें गूगल मेप पे इनको दुनिया दिखा दी ,,,,,,,,,,,,,,

कुछ गद्दों में मिली बचपनें की ख्वाहिशें जिनको कभी सेना में जाना था , ,,,,,,,,,,,,,,,,,,
                               तो कभी तारों के पीछे जा के देखना था कि ये कौन सी रस्सी से लटकते रहते हैं ,,,,,,,,,,,,,,
 
 इक गद्दा था जिसमें से पानी भी रिस रहा था पास जाके देखा तो इक ख़्वाहिश रो रही थी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,
   
   ,,,,,,,कि चलो देर से सही तुमने अपने बदन पे पड़ चुके गड्डों के लिए वक़्त तो निकाला वो पानी नहीं खुशी के आँसू थे उसके पगली के ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

सुनो तुम भी हो इन गड्डों में, कई परतें हटानी पड़ी मुझको इस ख़्वाहिशों वाली मिट्टी की ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

 तब जा के तुम तक पहुँच सका इसको मैंनें उन तमाम लम्हों से भर डाला शायद थे हमारे या न मेरे न तेरे बिन फेरे हम तेरे बिन फेरे हम तेरे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

©️✍️ सतिन्दर 
15.01.19 #NojotoQuote बिन फेरे हम तेरे -3
                    "बिन फेरे हम तेरे -3"

कल टटोला जब खुद को सैकड़ों गड्डों में सैकड़ों वीरानियाँ मिली,,,,,,,,,
ठंड  से ख़

Anamika Nautiyal

तो देवियों और सज्जनों बिना किसी देरी के शुरुआत करते हैं आज की चर्चा। 🙏 (हाँ यदि आपको एक भी बात उचित लगे तो प्रोत्साहन के लिए तालियाँ भी बजा

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आलस है जीवन में ज़रूरी
आलस के बिन जिंदगी अधूरी 
आलस है जिंदगी का अंग 
आलस के बिन जिंदगी में नहीं रंग



(अधिक जानकारी के लिए कैप्शन में पढ़ें) तो देवियों और सज्जनों बिना किसी देरी के शुरुआत करते हैं आज की चर्चा। 🙏
(हाँ यदि आपको एक भी बात उचित लगे तो प्रोत्साहन के लिए तालियाँ भी बजा

kavi manish mann

//नन्हीं परी// १७/०५/२०२१, की सुबह यकायक योजना बनी,आज मेरे फुफेरे भाई का तिलकोत्सव था। मेरी जाने की कोई योजना नहीं थी, किंतु दादीजी की प्रब

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//संस्मरण:नन्हीं परी//

शीर्षक में पढ़ें.....!! //नन्हीं परी//

१७/०५/२०२१, की सुबह यकायक योजना बनी,आज मेरे फुफेरे भाई का तिलकोत्सव था।
मेरी जाने की कोई योजना नहीं थी, किंतु दादीजी की प्रब

इकराश़

बात बहुत बड़ी थी। लेकिन उसके लिए वो इतनी बड़ी वजह भी नहीं बन सकती थी कि, वो अपनी जान को छोड़ दे। उसने अपनी जान से कहा कि वो चिंता ना करे, वो उस

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एक नामुकम्मल दास्तां

(भाग: तृतीय (द्वितिय))

अनुशीर्षक में पढ़ें

**ये भाग ज़रा लम्बा है। इत्मिनान से पढ़ियेगा। बात बहुत बड़ी थी। लेकिन उसके लिए वो इतनी बड़ी वजह भी नहीं बन सकती थी कि, वो अपनी जान को छोड़ दे। उसने अपनी जान से कहा कि वो चिंता ना करे, वो उस
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