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Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 5 विभीषण के महल का वर्णन – श्रीराम के चिन्ह और तुलसी के पौधे रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ। नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरष कपिराई ॥5॥ वह महल श्री राम के आयुध (धनुष-बाण) के चिह्नों से अंकित था, उसकी शोभा वर्णन नहीं की जा सकती॥वहाँ नवीन-नवीन तुलसी के वृक्ष-समूहों को देखकर कपिराज हनुमान हर्षित हुए॥ 5॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम हनुमानजी और विभीषण का संवाद राक्षसों की नगरी में, सत-पुरुष को देखकर, हनुमानजी को आश्चर्य हुआ लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥ मन महुँ तरक करैं कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा॥1॥ और उन्हीने सोचा की यह लंका नगरी तो राक्षसोंके कुलकी निवासभूमी है, राक्षसो के समूह का निवास स्थान है। यहाँ सत्पुरुषो के रहने का क्या काम॥ इस तरह हनुमानजी मन ही मन में विचार करने लगे।इतने में विभीषण की आँख खुली॥ हनुमानजी, विभीषण को, राम नाम का जप करते देखते है राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा॥ एहि सन सठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होइ न कारज हानी॥2॥ और जागते ही उन्होंने – राम! राम! – ऐसा स्मरण किया,तो हनुमानजीने जाना की यह कोई सत्पुरुष है।इस बात से हनुमानजीको बड़ा आनंद हुआ॥ सत्पुरुषों से क्यों पहचान करनी चाहिये? हनुमानजीने विचार किया कि इनसे जरूर पहचान करनी चहिये, क्योंकि सत्पुरुषोके हाथ कभी कार्यकी हानि नहीं होती,बल्कि लाभ ही होता है॥ हनुमानजी ब्राह्मण का रूप धारण करते है बिप्र रूप धरि बचन सुनाए। सुनत बिभीषन उठि तहँ आए॥ करि प्रनाम पूँछी कुसलाई। बिप्र कहहु निज कथा बुझाई॥3॥ फिर हनुमानजीने ब्राम्हणका रूप धरकर वचन सुनाया,तो वह वचन सुनतेही विभीषण उठकर उनके पास आया॥और प्रणाम करके कुशल पूँछा कि, हे ब्राह्मणदेव!, जो आपकी बात हो सो हमें समझाकर कहो(अपनी कथा समझाकर कहिए)॥ विभीषण हनुमानजी से उनके बारे में पूछते है की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई। मोरें हृदय प्रीति अति होई॥ की तुम्ह रामु दीन अनुरागी। आयहु मोहि करन बड़भागी॥4॥ विभीषणने कहा कि, क्या आप हरिभक्तो मे से कोई है?क्योंकि मेरे मनमें आपकी ओर बहुत प्रीती बढती जाती है,आपको देखकर मेरे हृदय मे अत्यंत प्रेम उमड़ रहा है॥अथवा मुझको बडभागी करने के वास्ते, भक्तोपर अनुराग रखनेवाले आप साक्षात दिनबन्धु ही तो नहीं पधार गए हो॥(अथवा क्या आप दीनो से प्रेम करने वाले स्वयं श्री राम जी ही है,जो मुझे बड़भागी बनाने, घर-बैठे दर्शन देकर कृतार्थ करने आए है?) विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम)आज 210 से 220 नाम 210 गुरुतमः ब्रह्मा आदिको भी ब्रह्मविद्या प्रदान करने वाले 211 धाम परम ज्योति 212 सत्यः सत्य-भाषणरूप, धर्मस्वरूप 213 सत्यपराक्रमः जिनका पराक्रम सत्य अर्थात अमोघ है 214 निमिषः जिनके नेत्र योगनिद्रा में मूंदे हुए हैं 215 अनिमिषः मत्स्यरूप या आत्मारूप 216 स्रग्वी वैजयंती माला धारण करने वाले 217 वाचस्पतिः-उदारधीः विद्या के पति,सर्व पदार्थों को प्रत्यक्ष करने वाले 218 अग्रणीः मुमुक्षुओं को उत्तम पद पर ले जाने वाले 219 ग्रामणीः भूतग्राम का नेतृत्व करने वाले 220 श्रीमान् जिनकी श्री अर्थात कांति सबसे बढ़ी चढ़ी है 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 5 विभीषण के महल का वर्णन – श्रीराम के चिन्ह और तुलसी के पौधे रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ। नव तुलसिका बृंद तहँ देख
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 5 विभीषण के महल का वर्णन – श्रीराम के चिन्ह और तुलसी के पौधे रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ। नव तुलसिका बृंद तहँ देख
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