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Stories related to अश्रु - ग्रंथि

Kavi Himanshu Pandey

अश्रु, नफ़रत #beingoriginal Hindi #Poetry

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DASHARATH RANKAWAT SHAKTI

#meradil छुप छुप अश्रु बहाने वालों Kumar Shaurya pinky masrani Praveen Jain "पल्लव" काव्य महारथी निर्भय चौहान

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Bhanu Priya

जब नाम उन पन्नों पर तुम्हारा आया , मुस्कुराऊं -चिल्लाऊं , झुमू या गाउं , फिर किनारे बैठ गई हज़ार बार पंक्ति को पढ़ती रहीं , कभी अश्रु , कभी

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जब नाम उन पन्नों पर तुम्हारा आया ,
मुस्कुराऊं -चिल्लाऊं , झुमू या गाउं ,
फिर किनारे बैठ गई 
हज़ार बार पंक्ति को पढ़ती रहीं ,
कभी अश्रु ,
कभी मुस्कान 
मैं तुमको याद करती रही ,
मैं तुमको याद करती रही ।

©Bhanu Priya जब नाम उन पन्नों पर तुम्हारा आया ,
मुस्कुराऊं -चिल्लाऊं , झुमू या गाउं ,
फिर किनारे बैठ गई 
हज़ार बार पंक्ति को पढ़ती रहीं ,
कभी अश्रु ,
कभी

Rakesh frnds4ever

#हंसते हंसते #रो पड़ते हैं जो आंखे पोछू तो #अश्रु फिर उमड़ पड़ते हैं #किसी और को क्या कहें किसी #अपने ने ही आंख #रुलाई है हमारी ऐसी

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अदनासा-

व्हिडियो सौजन्य आणि हार्दिक आभार💐🌹🙏😊🇮🇳🇮🇳https://www.instagram.com/reel/C_pbgMjSofm/?igsh=OXB0Zmx4eGpjY2tw #भारतीय #मराठी #हिंदी #सिनेसृष्ट #

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Ajay Chaurasiya

White जो बह ना सके, सुख गए,
नयनों के अश्रु, अधर मौन कर गए,
हृदय की पीढ़ा देख, अधर मुस्कुरा दिए,
शब्द अधर के, नयन ने बया किए...

©Ajay Chaurasiya #अश्रु

Prakash writer05

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद ना आएंगे...l छोड़ो मेहंदी खड़ग संभालो खुद ही अपना चीर बचा लो द्यूत बिछाए बैठे शकुनि, मस्तक सब बिक जा

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White सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, 
अब गोविंद ना आएंगे...l

छोड़ो मेहंदी खड़ग संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाए बैठे शकुनि,
मस्तक सब बिक जाएंगे

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, 
अब गोविंद ना आएंगे...|

कब तक आस लगाओगी तुम, 
बिक़े हुए अखबारों से,

कैसी रक्षा मांग रही हो दुशासन दरबारों से
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं

वे क्या लाज बचाएंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंग...l

कल तक केवल अंधा राजा, अब गूंगा-बहरा भी है
होंठ सिल दिए हैं जनता के, कानों पर पहरा भी है

तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,
किसको क्या समझाएँगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आएंगे...l

©Prakash writer05 सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, 
अब गोविंद ना आएंगे...l

छोड़ो मेहंदी खड़ग संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाए बैठे शकुनि,
मस्तक सब बिक जा

Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma

बार कोई त्यौहार आता है, पर तू नज़र नहीं आता है। इस बार भी राखी का त्यौहार आया है, पर यादों को कोई मिटा नहीं पाया है। पूजा की थाली सजाती हूँ

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Raghunath Mhetre

अश्रु आठवणींचे

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