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Anand Dadhich
तेरा दौर आयेगा.. निकल भ्रम, भय, संशय से, जाग, उठ, दौड़, निश्चय से, तेरा दौर आयेगा.. हर काम को कर तन्मय से। ना डर अपूर्ण परिचय से, गा राग, जय विजय लय से, तेरा दौर आयेगा.. हर डर को भगा विनय से। ना घिर जग में विस्मय से, तोड़ कुंठा भाव, निर्भय से, तेरा दौर आयेगा.. जा भीड़ जा हर प्रलय से। स्नेह साथी रख हृदय से, प्रेम रख प्रकृति संचय से, तेरा दौर आयेगा.. तू जीवन जी ध्येय से। डॉ. आनंद दाधीच 'दधीचि' ©Anand Dadhich #तेरा_दौर_आयेगा #Motivational #Inspiration #kaviananddadhich #poetananddadhich #Hindi #kavitayen
Abhishek Jaiswal
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Anand Dadhich
'प्रेम अनुबंध' पर एक गंभीर रचना फूल देकर दिल मांगते है जो, दिल को खिलौना मानते है जो, जो तोड़दे फूलों की पंखुड़ियाँ, प्रेम बंधन कहाँ जानते है वो! बहकी नज़रों से झांकते है जो, सनकी नयनों से ताकते है जो, जो रख ना पाये वश में अखियाँ, प्रीत अनुबंध कहाँ जानते है वो! जिस्म की बारीकियाँ जांचते है जो, जोखिम भरा ख्वाब पालते है जो, जो रौंददे रूह की नादानियाँ, प्रेम प्रसंग कहाँ जानते है वो! वादों वफाओं से कांपते है जो, नज़राना देकर मापते है जो, जो धोखा देकर करे शैतानियां, प्रेम बंधन कहाँ जानते है वो! डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' ©Anand Dadhich #Prem #Anubandh #kaviananddadhich #poetananddadhich #Hindi #kavitayen #Love
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read moreAlam Aftab
कई मर्तबा बिला वज़ह मन इस कदर उदास हो जाता है की ज़ी करता है जिस ज़ानिब जा रहा हूं उसके मुख़ालिफ़ चलना शुरू कर दूं कई मर्तबा... ©Alam Aftab उदासी #शायरी #कविता #hindi kavitayen #प्रेम #जीवन #mask
Poetry Art
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read moreAbhishek Jaiswal
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Asmita Singh
बस कुछ इस तरह कविता हम में बस रही है, जैसे जिंदगी अपनी रफ़्तार से गुज़र रही है, बरसों से ये कविता ही है जो संग चल रही है, बसती मेरे शहर की यहाँ अपना रंग बदल रही है, और कलम मेरी बस बेबाक चल रही है, दबा हुआ हुनर कहो, या कह दो हकीकत ऐ जिंदगी, जो कविता के जरिये दिल से निकल रही है, हाँ इसी तरह कविता हमें रच रही है!! ©Asmita Singh #Kavitaye #basti
Sandeep singh
आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख, पर अन्धेरा देख तू आकाश के तारे न देख । एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ, आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख । अब यकीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह, यह हक़ीक़त देख लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख । वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे, कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख । ये धुन्धलका है नज़र का तू महज़ मायूस है, रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख । राख़ कितनी राख़ है, चारों तरफ बिख़री हुई, राख़ में चिनगारियाँ ही देख अंगारे न देख । ©Sandeep singh #kavita #kavitawriting #Kavitaye #WatchingSunset
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