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Gurudeen Verma
White शीर्षक - सोचते हो ऐसा क्या तुम भी --------------------------------------------------------------------------- जैसा कि सोचते हैं हम। सोचते हो ऐसा क्या तुम भी।। चाहता है दिल तुम्हें जैसा। चाहते हो हमें क्या तुम भी।। जैसा कि सोचते हैं -----------------।। तारीफ हम तुम्हारी, कितनी करते हैं। और से प्यार इतना, नहीं करते हैं।। देखते हैं खूबी, जैसी तुझमें। देखते हो खूबी हममें, क्या तुम भी।। जैसा कि सोचते हैं-------------------।। करता है हमको दीवाना, हँसना यह तेरा। कितना सुंदर दिलकश है, रूप यह तेरा।। आते हैं जैसे ख्वाब, तुम्हारे हमको।। देखते हो हमारे ख्वाब, क्या तुम भी।। जैसा कि सोचते हैं----------------------।। मानते हैं तुमको हम, बहारे- खुशी। करीब पाकर दिल भी, होता है हसीं।। लिखते हैं खत जैसे, तुमको हम। लिखते हो हमको खत, क्या तुम भी जैसा कि सोचते हैं-------------------।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #साहित्यकार
Gurudeen Verma
शीर्षक- नकाबे चेहरा वाली, पेश जो थी हमको सूरत ------------------------------------------------------------------- नकाबे चेहरा वाली, पेश जो की थी हमको सूरत। हमको तो शक था पहले, नहीं है असली यह सूरत।। नकाबे चेहरा वाली ----------------------------------।। कैसे तुमने समझ लिया, हमको तुमसे कम विद्वान। हमने पढ़ाये है तेरे जैसे, चेहरे यहाँ कल को बहुत।। नकाबे चेहरा वाली ----------------------------------।। देखकर तेरी पेशगी, लगी तू हमको बहुत बेदर्द। नहीं तू प्यार के काबिल, नहीं तू प्यार की सूरत।। नकाबे चेहरा वाली ----------------------------------।। हमने तो सोचा नहीं था, होगी तू इतनी अहमी। नहीं तुझमें तहजीब, नहीं है तेरी हमको जरूरत।। नकाबे चेहरा वाली ----------------------------------।। तू ही करेगी हमारी गुलामी, मैं नहीं करता गुलामी। मुझमें नहीं है कोई कमी, बदल लें तू अपनी सूरत।। नकाबे चेहरा वाली ----------------------------------।। लूटना तू चाहती है हमको, अपने पर्दे की ओट से। बतायेंगे तेरी हकीकत तो, तब क्या होगी तेरी सूरत।। नकाबे चेहरा वाली ----------------------------------।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #साहित्यकार
Nilam Agarwalla
White नाम गंवाते मंच का,ये साहित्यिक चोर। शर्म हया सब बेच दी, भ्रष्ट हुए घनघोर।। ये साहित्यिक चोर हैं, नहिं कोई परवाह। भूखें है शोहरत के, और न कोई चाह।। -निलम ©Nilam Agarwalla #साहित्यकार
Gurudeen Verma
White शीर्षक - चमन यह अपना, वतन यह अपना ------------------------------------------------------------------ चमन यह अपना, वतन यह अपना। आबाद रहे कल भी, घर यह अपना।। अपनी ये खुशियां, अपनी ये मौजें। रोशन रहे कल भी, जीवन यह अपना।। चमन यह अपना----------------------।। तुमको क्या मिलेगा, ऐसे लड़ने से। दुश्मनी ही बढ़ेगी, ऐसे लड़ने से।। छोड़ो हठ यह तुम, भूलों दुश्मनी तुम। जिन्दा रहे कल भी, याराना यह अपना।। चमन यह अपना--------------------।। गंगा- यमुना की यह, पवित्र जलधारा। प्रहरी वतन का, यह हिमालय हमारा।। सीखें हम सब भी, इनसे सरफरोशी। सलामत रहे कल भी, वजूद यह अपना।। चमन यह अपना--------------------।। नेक मंजिल हो, अपने मकसद की। सही सोहब्बत हो, अपने जीवन की।। अमन यह अपना, ख्वाब हर अपना। मुकम्मल रहे कल भी, गौरव यह अपना।। चमन यह अपना--------------------।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #साहित्यकार
Gurudeen Verma
White शीर्षक - इसकी वजह हो तुम, खता मेरी नहीं ---------------------------------------------------------------------- (शेर)- यह एक ऐसी कहानी है, जो खत्म कभी नहीं हो सकती। यह पहेली है कुछ ऐसी, जो बुझ कभी नहीं सकती।। तुम भूल सकते हो वो पल, वो दिन अपनी मुलाकात के। मगर यह नजीर उस वक़्त की, कभी मिट नहीं सकती।। ------------------------------------------------------------------------- इसकी वजह हो तुम, खता मेरी नहीं। यह कहानी ऐसी, यार बनती नहीं।। अब इसका अंत, कोई नहीं। कोई नहीं।। इसकी वजह हो तुम--------------------।। इतने नाराज हमसे, तुम क्यों हुए। अपने होकर भी दूर, तुम क्यों हुए।। यकीन था हमें तो, तुम पर बहुत। हमपे यकीन तुमको, था कुछ नहीं। था कुछ नहीं।। इसकी वजह तुम हो-------------------।। तेरी बुराई जो, करते थे बहुत। उनसे तुम प्यार, करते थे बहुत।। बदनामी तुम्हारी, किसने की है। हमने तो फजीहत, की थी नहीं। की थी नहीं।। इसकी वजह हो तुम-------------------।। हम तो दुश्मन बने, तुम्हारे लिए ही। लहू हमने बहाया, तुम्हारे लिए ही।। फिर भी हमको बदनाम, तुमने किया। यह जख्म दिल पे, मिट सकता नहीं। मिट सकता नहीं।। इसकी वजह हो तुम---------------------।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #साहित्यकार
Gurudeen Verma
White शीर्षक- तुम ऐसे उम्मीद किसी से, कभी नहीं किया करो -------------------------------------------------------------------------- तुम ऐसे उम्मीद किसी से, कभी नहीं किया करो। ऐसे एतबार तुम किसी पर, कभी नहीं किया करो।। तुम ऐसे उम्मीद किसी से--------------------------।। जिसको चाहते हो इतना, मानकर उसको तुम अपना। यकीन है तुमको जिसपे, क्या उसको है प्यार इतना।। लेकिन दिल को ऐसे कुर्बान, कभी नहीं किया करो। तुम ऐसे उम्मीद किसी से----------------------।। खूबसूरत ये चेहरें कभी, होते नहीं है इतने वफ़ा। इनका नहीं है कोई ईमान, ये नहीं हैं दिल से सफ़ा।। तुम ऐसे इजहार दिल का, कभी नहीं किया करो। तुम ऐसे उम्मीद किसी से---------------------।। सभी के सपनें मुकम्मल, कभी भी होते नहीं हैं। मतलबी है लोग बहुत, सगे जो कभी होते नहीं है।। तुम ऐसे दोस्ती सभी से, कभी नहीं किया करो। तुम ऐसे उम्मीद किसी से---------------------।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #साहित्यकार
Gurudeen Verma
शीर्षक - अमीरों की गलियों में ----------------------------------------------------------- क्योंकि रहा हूँ मैं उनके मकानों में, रोशनी से नहाते हुए झरोखों में, बैठा हूँ हमेशा उनकी महफ़िलों में, और उनके साथ बैठकर, कभी उड़ाई है दावत भी ll हाँ, हमेशा मेरी आदत रही है, दिखाना खुद को इज्जतदार, खाते पीते घर का चिराग, और मुझको पसंद नहीं रहा कभी, मलिन और टूटे - फूटे घरों में रहना, अनपढ़ और मुफलिसों से दोस्ती करना ll इसलिए रहा हूँ मैं हमेशा ही, शूट- बूट पहनकर, और देखा है उनको नजदीक से, उनके घर में रहते हुए भी, उनके दरवाज़े पर लगा हुआ ताला, और उनकी स्त्रियों को ताले में बंद ll अय्याशी और दो नंबर के उनके काम, इंसानों से ज्यादा कुत्तों को महत्व देकर, उनके द्वारा कुत्तों को दूध पिलाते हुए, कुत्तों को अपने सीने से लगाते हुए, उनके द्वारा उनकी सुरक्षा के लिए, ताकि गुजर नहीं सके कोई अजनबी, उन अमीरों की गलियों से कभी भी ll शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी. आज़ाद तहसील एवं जिला - बारां (राजस्थान ) ©Gurudeen Verma #साहित्यकार
Gurudeen Verma
White शीर्षक- हे वतन तेरे लिए ------------------------------------------------------ हे वतन तेरे लिए, हे वतन तेरे लिए। अर्पण है जीवन हमारा, यह किसके लिए।। हे वतन तेरे लिए---------------------।। नहीं हमारा स्वार्थ कुछ, नहीं कोई और ख्वाब है। तू रहे आबाद हमेशा, यही हमारा ख्वाब है।। वीरों ने दी कुर्बानी, लेकिन वह किसके लिए। हे वतन तेरे लिए--------------------।। तू ही मालिक है हमारा, तू ही रहबर हमारा। तू ही पूजा है हमारी, तू ही मंदिर हमारा।। माँगते हैं हम दुहायें, रब से किसके लिए। हे वतन तेरे लिए----------------------।। नहीं किसी से प्यार इतना, जितना चाहते हैं तुम्हें। सबसे प्यारा तू है हमें, यकीन हो हम पर तुम्हें।। रोशन ये चिराग किये हैं, हमने मगर किसके लिए। हे वतन तेरे लिए---------------------।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आजाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #साहित्यकार
Gurudeen Verma
White शीर्षक- जलजला, जलजला, जलजला आयेगा ----------------------------------------------------------------------- (शेर)- दे रही है संकेत हवा भी अब, शायद तूफ़ान आयेगा। होगा हर तरफ तबाही का मंजर, ऐसा भूचाल आयेगा।। शायद ही जिन्दा रहे मोहब्बत, जमीं पर किसी इंसान में। नफरत- दुश्मनी,हिंसा का कलयुग, अब जमीं पर आयेगा।। ------------------------------------------------------------------------ तप रही है जैसे धरती,आज इतनी आग से। आ रही है यही ,अब हर राग से।। आने वाला वक़्त कैसा काल लायेगा। जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।-- (2) तप रही है जैसे धरती---------------------।। बेशर्म और लापरवाह, जब घर का मुखिया होगा। भूख- प्यास से तड़पता, हर कोई घर में होगा।। ऐसा ही मंजर नजर जब, देश में आयेगा। जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।-- (2) तप रही है जैसे धरती---------------------।। कर लेंगे बन्द, आँख- कान- मुँह लोग जब। यकीन दुराचारियों पर, करने लगेंगे लोग जब।। भ्रष्टाचारी- पापियों का जब, राज हो जायेगा। जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।-- (2) तप रही है जैसे धरती---------------------।। सरेराह होंगे चिरहरण, मूकदर्शक शासक होगा। थानों- अदालतों पर जब, हैवानों का कब्जा होगा।। अन्याय- रावण राज पर, नीरो जब बंशी बजायेगा।। जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।-- (2) तप रही है जैसे धरती---------------------।। पाने को शौहरत- दौलत, कलमकार बिकने लगेंगे। गरीबी- बेरोजगारी पर जब, लिखने से डरने लगेंगे।। असत्य का गुणगान जब,मीडिया भी गाने लगेगा। जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।। तप रही है जैसे धरती------------------।। जाति- धर्म- क्षेत्र के जब, बलवें होने लगेंगे। नफरत- दुश्मनी के जब, बीज बोने लगेंगे।। रक्तबीजों- नरपिशाचों से, कैसा कलयुग आयेगा। जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।-- (2) तप रही है जैसे धरती----------------।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #साहित्यकार