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जयश्री_RAM
White तू मेरी रवानी है तू मेरी कहानी है इस दिल में रहती तू मेरी रानी है। मैं सोच रहा तुझको इठलाती हस्ती में मेरे दिन और रात कुछ ऐसी मस्ती में तुझे हो अगर फुरसत आ जा एक पल को-२ धड़कन में बसती तू दिलबर जानी है। ©जयश्री_RAM #गीत
अज्ञात
अंग अंग है अभ्र सी आभा कंठ सुराहीदार.. चन्द्रमुखी क्या रूप तुम्हारा मोह लियो संसार.. श्यामल श्यामल केश तुम्हारे पवन रही लिपटाय जैसे जनम जनम की प्यासी बिरहन राग लगाय मस्त मस्त दो नयनकमल उनमे कजरे की धार तरस रहे हैं कब मिल जाये एक झलक दीदार.. चन्द्रमुखी क्या रूप तुम्हारा मोह लियो संसार.. रंग गुलाबी लिये अधर जब तनक भरें मुस्कान सम्मोहन की कला दिखाकर घायल करे जहान जिस पथ को बढ़ जाओ तुम हो लाखों दिल कुर्बान बाम गाल में इसीलिए तिल नज़र करे न वार.. चन्द्रमुखी क्या रूप तुम्हारा मोह लियो संसार.. बिन सोलह श्रृंगार तुम्हारा कंचन बदन कमाल नखशिख ऐसी शोभा तेरी नज़र पड़े वो निहाल एक तुम्हीं हो रुप की रानी बाकी सब कंगाल जिसको नज़र उठाकर देखो जीवन जाये हार.. चंद्रमुखी क्या रूप तुम्हारा मोह लियो संसार.. ©अज्ञात #गीत
अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'
सावन डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द) सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर । लख कर जलधर , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर । परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर। सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर। ©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन' #रक्षाबंधन #सावन #शिवजी
Bindu Sharma
White गुज़रो किसी भी गली से, गुज़रो किसी भी गली से बस हरियाली और जल ही नज़र आता है .... हर हर महादेव की है गूंज हर जगह यह सावन का महीना है मेरे भोलेनाथ जी को बहुत भाता है ©Bindu Sharma #सावन #सावन_का_महीना #भोलेनाथ
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- बीता मौसम हज़ार सावन का आप बिन क्या शुमार सावन का तुझको धानी चुनर में जब देखा मैं हुआ हूँ शिकार सावन का बात बनती नज़र नही आती है अधूरा जो प्यार सावन का इक नज़र देख लूँ अगर तुमको । तब ही आये करार सावन का वो न आयेगा पास में मेरे क्यों करूँ इंतज़ार सावन का दिल में जबसे बसे हो तुम दिलबर रोज़ होता दीदार सावन का आप आये हो मेरी महफ़िल में चढ़ रहा है खुमार सावन का आस ये आखिरी मेरे दिल की करके आओ शृंगार सावन का आप क्यों अब चले नही आते कुछ तो होगा उधार सावन का बिन सजन मान लो प्रखर तुम भी खो ही जाता करार सावन का महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- बीता मौसम हज़ार सावन का आप बिन क्या शुमार सावन का तुझको धानी चुनर में जब देखा मैं हुआ हूँ शिकार सावन का बात बनती नज़र नही आती है अधूरा
ग़ज़ल :- बीता मौसम हज़ार सावन का आप बिन क्या शुमार सावन का तुझको धानी चुनर में जब देखा मैं हुआ हूँ शिकार सावन का बात बनती नज़र नही आती है अधूरा
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