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Aatam
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read moreVaibhav Chaturvedi
ये एकतरफा कहते हैं मुझे तेरे इश्क़ में, मैं नजरंदाज करता हूं, नाम पूछते हैं जब तेरा, मैं बस एक राज़ कहता हूं। मैं आज भी पसंद तुझको ही करता हूं, मैं आज भी राह तेरी निहारता हूं, लोग खूबसूरती को पसंद करते हैं तेरी, मुझे तो तेरी आवाज़ से भी प्यार है, माप नहीं सकता इसको कोई, ये इश्क बेशुमार है। सपनों में ही सही मगर मिल तो कहीं, मैं बदल दूं खुदको तू हां कर तो सही। देख लेता हूं तस्वीर तेरी, मुझसे रहा नहीं जाता, मैं बेइंतहा मोहब्बत करता हूं तुझसे, ये कहा नहीं जाता। मैं बोल नहीं पाता अपनी लिखी बातों को, मगर इससे तो समझ मेरे दबे जज्बातों को। इंतज़ार है तेरा तू आकर मिलना जरूर, पता लगेगा तुझे तो आकर हां कहना जरूर, ©Vaibhav Chaturvedi Pratham kavita poetry in hindi
Pratham kavita poetry in hindi
read moreShayra
White मृगतृष्णा की माया में, मन तृषित भ्रमित सा भागे। रेत के जल में डूबे प्यास, सच का कोई निशान न पाए। आस की इस अनंत डोर, अधूरी चाहतें सुलगाए। हर कदम पर छलावे हैं, सपनों के साए गहराए। प्यास भी बुझती नहीं, और सच भी कभी हाथ न आए। ©Shayra #Sad_Status #Hindi #poem #kavita #nojotohindi
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read moreSaba Rasheed
बेसबब...बेवजह... हर नक़्श तूने मिटा दिया जो अक्स था भरा-भरा हर अक्स तूने मिटा दिया बेख़तर हो ऑंधियों ने था जिन्हें पनाह दिया आज फिर ऐ बेख़बर! मुझे तूने उनसे भिगा दिया क्या ख़ता थी अपनी जो तूने ये सिला दिया अंग-अंग मोतियों से तूने मुझको सजा दिया ठहर ज़रा अब सोच मत कि तूने है ये क्या किया भला किया.. बुरा किया बता मुझे... है ख़रा किया? ©Saba Rasheed #Thinking #poem #kavita #Hindi #urdu #nazm #Nojoto #nojotohindi #nojotourdu #SAD poetry urdu poetry hindi poetry
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read morePrakash Vidyarthi
White "कपटी मानव अबला नारी" :::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: ए मूर्ख मानव तेरा कितना हैं बल। क्या सीखा हैं तूने बस करना छल।। जानवर से भीं बद्तर हैं तेरी अकल। बनकर दुशासन करता हैं जुल्म कतल।। ये क्या हों गया है दुनियां को आजकल। चेहरे पे अमृत का मुखौटा मन में भरा गरल।। लुटते हों मासूमों की इज़्ज़त आबरू ज़ालिम। बेरहम कातिल दुष्ट निर्लज कैसी है तेरी तालीम।। समझते हों स्त्री को तुम सिर्फ खिलौना। उसकी मासूमियत को असहाय बौना।। कैसे मसल दिया तू एक खिलती कली फूल को। कैसे कुचल दिया तूने मानवता के सिद्धांत रूल को।। तनिक लज्जा नहीं आई तुझे उसकी चीख पर। पाव नहीं डगमाए तेरे उस अबला के भीख पर।। कहते हैं लोग की जमाना गया हैं बदल।। हैं आजाद हिंद स्वतंत्र भारत देश सफल।। फिर कैसा हैं ये राक्षसो का कपटी शकल। कहां करते हैं ये नियत के खोट नकल।। कैसे पहचानें कोई किसी दुरात्मा पापी को। मुख मे राम बगल में छूरी वाले अपराधी को।। बिनकसूर तड़पकर दम तोड़ी होंगी। अख़बार की सुर्खियां शर्मसार हो गई।। मां की दुलारी पापा की प्यारी परी। बेरहम हैवानियत की शिकार हों गईं।। कहते हैं डॉक्टर होता हैं भगवान का रूप। फिर कैसे कोई लिया अपने भगवान को ही लूट।। अरे ओ दानव पुरूष कहां गईं तेरी पुरुषार्थ। निरर्थक साबित हैं तेरी भ्रष्ट बुद्धि पार्थ कृतार्थ।। काश बनकर स्त्री कभी स्त्री का दुःख दर्द तुम भी तन मन में महसूस करते। तो ऐसी घिनौनी दुसाहस हरकत कभी तुम दुष्ट प्रवृत्ति मनहूस मनुष्य न करते।। सदियों से बहु बहन बेटियां रही हैं सीधी चुप। अरे अब तो देखने दो उसे जुल्मी जग कुरूप।। लेने दो उसे खुली सांसे सूरज की उर्जवान धूप। यहीं तो हैं सृष्टि प्रकृति ब्रह्मांड सुंदरी स्वरूप।। स्वरचित:- प्रकाश विद्यार्थी भोजपुर बिहार ©Prakash Vidyarthi #happy_independence_day #poem #kavita
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