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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- आती होंगी राधिका , सुनकर वंशी तान । मुरलीधर अब छोड़ दो , अधरो की मुस्कान ।। अधरो की मुस्कान , बढ़ाये शोभा न्यारी । मुख मण्ड़ल के

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कुण्डलिया :-

आती होंगी राधिका , सुनकर वंशी तान ।
मुरलीधर अब छोड़ दो , अधरो की मुस्कान ।।
अधरो की मुस्कान , बढ़ाये शोभा न्यारी ।
मुख मण्ड़ल के आप , नही सोहे लाचारी ।।
कैसे तुमसे दूर , कहीं राधा रह पाती ।
सुन कर वंशी तान , दौड़ राधा नित आती ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-

आती होंगी राधिका , सुनकर वंशी तान ।
मुरलीधर अब छोड़ दो , अधरो की मुस्कान ।।
अधरो की मुस्कान , बढ़ाये शोभा न्यारी ।
मुख मण्ड़ल के

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विधा   कुण्डलिया :- सच्चा करते प्रेम तो , गिरधर होते साथ । हाथ न देते हाथ में , रहते तो रघुनाथ ।। रहते तो रघुनाथ , हृदय शीतल कर देते । व्याध

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विधा   कुण्डलिया :-
सच्चा करते प्रेम तो , गिरधर होते साथ ।
हाथ न देते हाथ में , रहते तो रघुनाथ ।।
रहते तो रघुनाथ , हृदय शीतल कर देते ।
व्याधि न आती एक , कष्ट सारे हर लेते ।।
भवसागर की राह , दिखाते कहकर बच्चा ।
कर लेते तुम काश , प्रेम इस जग से सच्चा ।।

राधा-राधा नाम का , कर ले बन्दे जाप ।
मिट जाये तेरे सभी , जीवन के संताप ।।
जीवन के संताप , हरे सब राधा माई ।
यह है दृढ़ विश्वास , न झोली खाली आई ।।
सही लगन से नाम , जाप जिसने है साधा ।
उसके ही दुख दूर  , करे माँ मेरी राधा ।।

राधा रानी खेलती , थाम कृष्ण का हाथ ।
सखी सहेली जीव सब , खेलें उनके साथ ।।
खेलें उनके साथ ,  निकट यमुना के तट पर ।
आया जो आनंद ,  सुनायें सखियां कहकर ।।
उन दोनो के बीच , न आये कोई बाधा ।
सखी कृष्ण के साथ , खेलती देखो राधा ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विधा   कुण्डलिया :-
सच्चा करते प्रेम तो , गिरधर होते साथ ।
हाथ न देते हाथ में , रहते तो रघुनाथ ।।
रहते तो रघुनाथ , हृदय शीतल कर देते ।
व्याध

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विधा   कुण्डलिया :- तेरे मेरे प्रेम के , गुजरे कितने वर्ष । जितने तेरे साथ थे , उनमें ही था हर्ष ।। उनमें ही था हर्ष , पलट कर जब भी देखा ।

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White विधा   कुण्डलिया :-

तेरे मेरे प्रेम के , गुजरे कितने वर्ष ।
जितने तेरे साथ थे , उनमें ही था हर्ष ।।
उनमें ही था हर्ष , पलट कर जब भी देखा ।
आज नहीं है हाथ , हमारे अब वह रेखा ।।
बन बैठे थे गैर , संग ले दूजे फेरे ।
आये हैं सब याद , दिलाने दिल को तेरे ।।

करता किसका मैं यहाँ , सुनो प्रेम स्वीकार।
सब ही तो दिखला रहे , झूठा हमसे प्यार ।।
झूठा हमसे प्यार , करे यह सारे अपने ।
और कहें नित आप , हमारे आये सपने ।।
दे दो कुछ उपहार , जान मैं तुमपे मरता ।
क्या बतलाऊँ आज , प्यार मैं कितना करता ।।

यारा कटती है नहीं , तुम बिन मेरी रात ।
अब करो मुलाकात तो , बन जाए फिर बात ।।
बन जाए फिर बात , रात रानी सी महके ।
दिल के वह जज्बात , चाँदनी पाकर लहके ।।
यह मृगनयनी रूप , बने हर रात सहारा ।
एक झलक जो आज , दिखा दे मुझको यारा ।।

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विधा   कुण्डलिया :-

तेरे मेरे प्रेम के , गुजरे कितने वर्ष ।
जितने तेरे साथ थे , उनमें ही था हर्ष ।।
उनमें ही था हर्ष , पलट कर जब भी देखा ।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :- आती होंगी राधिका , सुनकर वंशी तान । मुरलीधर अब छोड़ दो , अधरो की मुस्कान ।। अधरो की मुस्कान , बढ़ाये शोभा न्यारी ।

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कुण्डलिया :-

आती होंगी राधिका , सुनकर वंशी तान ।
मुरलीधर अब छोड़ दो , अधरो की मुस्कान ।।
अधरो की मुस्कान , बढ़ाये शोभा न्यारी ।
मुख मण्ड़ल के आप , नही सोहे लाचारी ।।
कैसे तुमसे दूर , कहीं राधा रह पाती ।
सुन कर वंशी तान , दौड़ राधा नित आती ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-


आती होंगी राधिका , सुनकर वंशी तान ।

मुरलीधर अब छोड़ दो , अधरो की मुस्कान ।।

अधरो की मुस्कान , बढ़ाये शोभा न्यारी ।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया छन्द :- राधा-राधा जप रहे , देखो बैठे श्याम । आ जायें जो राधिका , तो पायें आराम ।। तो पायें आराम , चैन की वंशी बोले । फिर यमुना के

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कुण्डलिया छन्द :-

राधा-राधा जप रहे , देखो बैठे श्याम ।
आ जायें जो राधिका , तो पायें आराम ।।
तो पायें आराम , चैन की वंशी बोले ।
फिर यमुना के तीर , प्रेम के वह रस घोले ।।
ग्वाल-बाल का साथ , करे जिनका दुख आधा ।
वह ही है घनश्याम , चली जिनके सह राधा ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया छन्द :-

राधा-राधा जप रहे , देखो बैठे श्याम ।
आ जायें जो राधिका , तो पायें आराम ।।
तो पायें आराम , चैन की वंशी बोले ।
फिर यमुना के

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया छन्द :- गौ माता के लाल से , खेल रहे गोपाल । चलो दिखाएँ आपको , वहाँ नन्द के लाल ।। वहाँ नन्द के लाल , कहे मुझसे क्यों डरते । बनो सख

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कुण्डलिया छन्द :-
गौ माता के लाल से , खेल रहे गोपाल ।
चलो दिखाएँ आपको , वहाँ नन्द के लाल ।।
वहाँ नन्द के लाल , कहे मुझसे क्यों डरते ।
बनो सखा तुम आज , प्रेम हम तुमसे करते ।।
आओ खेलो संग ,  हमारा निर्मल नाता ।
समझा दूँगा साँझ , चलो घर मैं गौ माता  ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया छन्द :-
गौ माता के लाल से , खेल रहे गोपाल ।
चलो दिखाएँ आपको , वहाँ नन्द के लाल ।।
वहाँ नन्द के लाल , कहे मुझसे क्यों डरते ।
बनो सख
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