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Hemraj Meena Heerapura
वे क्या दिशा दिखाएँगे, दिखता जिनको आकाश नहीं बहुत बड़े सतरंगे नक़्शे पर बहुत बड़ी शतरंज बिछी धब्बोंवाली चादर जिसकी कटी, फटी, टेढ़ी, तिरछी जुटे हुए हैं वही खिलाड़ी चाल वही, संकल्प वही सबके वही पियादे, फर्जी कोई नया विकल्प नहीं चढ़ा खेल का नशा इन्हें, दुनिया का होश-हवास नहीं दर्द बँटाएँगे क्या, जिनको अपने से अवकाश नहीं एक बाँझ वर्जित प्रदेश में पहुँच गई जीवन की धारा भटक रहा लाचार कारवाँ लुटा-पिटा दर-दर मारा बिक्री को तैयार खड़ा हर दरवाजे झुकनेवाला अदल-बदल कर पहन रहा है खोटे सिक्कों की माला इन्हें सबसे ज़्यादा दुख का है कोई अहसास नहीं अपनी सुख-सुविधा के आगे, कोई और तलाश नहीं ©Hemraj Meena Heerapura : गिरिजाकुमार माथुर की कविता- उन पर क्या विश्वास जिन्हें है अपने पर विश्वास नहीं
: गिरिजाकुमार माथुर की कविता- उन पर क्या विश्वास जिन्हें है अपने पर विश्वास नहीं
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गिरिजापुरी बैराज का डीएम ने किया निरीक्षण बैराज की कार्यप्रणाली से हुई रूबरू बहराइच ।मिहींपुरवा क्षेत्र के भ्रमण के दौरान जिलाधिकारी मोनि
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कतर्नियाघाट में चैन लिंक फेंसिंग कार्य का डीएम ने किया निरीक्षण बहराइच कतर्नियाघाट वन्य जीव विहार अन्तर्गत मानव एवं वन्य जीव संघर्ष पर प्र
read moreSARVENDRA SINGH
🌹सर्वेन्द्र एक सच्ची प्रेम गाथा🌷 सौ भाग में Hundred in partition अपने गुरु का ध्यान धर, गिरिजा पुत्र गणेश मनाय,, अपनी प्रेम कहानी लिखूँ, सरस्वती माँ को श्री नवाय। श्री श्रीयल माँ की श्री नवा, कर श्री जाहर वीर का ध्यान,, 'सर्वेन्द्र एक सच्ची प्रेम गाथा,लिखे सर्वेन्द्र सिंह चौहान। 9⃣9⃣2⃣7⃣0⃣9⃣9⃣1⃣3⃣6⃣ 👉🏻मेरी आप बीती👈🏻 🌹अश्के💑इश्क🌷 भाग-1👇🏻 भारत देश के एक परिवार की,यह सच्ची कहानी है भाई,, जिस पे बीती है यारो यह उसी आशिक की जुवानी है भाई। उस आशिक के दिल से ये दास्तान निकली है,, सुनाने हेतु सभी को सर्वेन्द्र के लवों से ये तान निकली है। सर्वेन्द्र एक सच्ची प्रेम गाथा है,नेहा और सर्वेन्द्र के प्यार की,, सर्वेन्द्र ने खुद अपनी लेखनी से,यह सच्ची गाथा है तैयार की। भारत देश के उत्तरप्रदेश में,एक जिला मुरादाबाद आता है भाई,, दो दिलों की एक सच्ची दास्तान की, ये याद दिलाता है भाई। है यह कहानी मुरादाबाद के,कटघर थाने की यारो,, पीतल नगरी बस स्टैंड से एक डगर है गोविंदनगर जाने की यारो। है मोo का नo-9927099136,गली नo पाँच है भाई,, दो दिलों की आश्की का,यह किस्सा साँच है भाई। 'गाथा,रूप दे रहा हूँ मैं, क्योकि घर-घर पहुँचानी है भाई।। भारत देश के ..... भाग-2👇🏻 जिला मुरादाबाद थाना कटघर मोहल्ला गोविंदनगर है,, काली माता मन्दिर के पास में,श्री देवेन्द्र सिंह जी का घर है। हैं सर्वेन्द्र सिंह के पिता जी वो,अच्छी उनकी हस्ती है भाई,, एक डोर में हैं सब बाँधे हुए,मस्त सी उनकी मस्ती है भाई। राजा सा बन कर रहते हैं,उनकी ऐसी शान है यारो,, देवेन्द्र सिंह ने जो कह दिया किया,उनकी ऐसी जुवान है यरो। पिता की इज्जत अच्छी है,सर्वेन्द्र ने भी व्यवहार कमाया है,, आज अपने ही मोहल्ले की,लड़की पे,सर्वेन्द्र दिल हार आया है। 'ठाoसर्वेन्द्र सिंह चौहान" नाम व् दादा ठाकुर भी कहते हैं,, किसी से डरा नहीं आज तक वो,इसीलिए रणबाँकुर भी कहते हैं। नेहा नाम की लड़की को,सर्वेन्द्र ने पाने की ठानी है भाई।। भारत देश के..... भाग - 3👇🏻 सब कुछ लुटा दूँ उस पे,सर्वेन्द्र का यह विचार था,, पागल था इश्क में वो,अँधा उसका प्यार था। सूरत नेहा की रहती थी,सर्वेन्द्र के दिमाग में,, कैसे चुराऊँ दिल नेहा का,रहता था इसी फ़िराक में। सोंचता था कैसे करूँ मैं इजहार अपने प्यार का। लब्ज नहीं आते थे लवों पर कर दीदार अपने यार का।। आंखों उतारी सूरत नेहा की दिल में उसका नाम था। एक झलक देखने को उसकी गली जाता सुबह शाम था।। दिल की बात लबों से कहने को जुबां इनकार करती थी। पता नहीं था किसी को ये कि नेहा भी सर्वेन्द्र को प्यार करती थी।। प्रेमसिंह की बेटी नेहा भी सर्वेन्द्र सिंह की दीवानी है भाई।। भाग - 4👇🏻 चाहती हूँ मैं तुमको नेहा भी यह कह नहीं पाती थी। बिन देखे सर्वेन्द्र की सूरत नेहा एक पल रहा नहीं पाती थी।। एकदूजे को चाहते थे दोनों पर इजहार कर न पाते थे। कहने को तो बहुत कुछ थे दोनों पर इकरार कर न पाते थे।। हिम्मत बांध के नेहा ने एक दिन सर्वेन्द्र से इजहार किया। सर्वेन्द्र के कहने से पहले ही नेहा ने प्यार का इकरार किया।। पर्ची लिख नेहा ने एक बच्चे से सर्वेन्द्र को भेजी खबर। उस पर्ची पर लिखा था प्लीज गिव मी योर मोबाइल नम्बर।। अपने घर के दरबाजे से वो अन्दर मुस्कुरा के चली गई। दिल तो ले रक्खा था पहले ही अब जां चुराके चली गई।। पढ़ कर पर्ची नेहा की मेरी बन गई शाम सुहानी है भाई।। भाग - 5👇🏻 बार-बार पर्ची को पढ़ मन ही मन मुस्कुराता था चूम - चूमकर। कैसे दूँ मैं पर्ची का जवाब इसी सोंच में रात गुजारी घूम - घूमकर।। सबसे सुन्दर बो सुबह थी उसकी मन में जागी एक आशा थी। नेहा को अपना बनाने की सर्वेन्द्र की पूरी हुई अभिलाषा थी।। अब सर्वेन्द्र ने भी नेहा को नम्बर देने का मन बना डाला। जा नेहा के घर के गेट पे दे नम्बर अपना प्यार जना डाला।। नम्बर मिल गया नेहा को अब सर्वेन्द्र से बात करने का विचार किया। अपने पिता जी की कमीज की जेब से नेहा ने फोन निकार लिया।। नेहा ने पहली कॉल की सर्वेन्द्र को अपने पिताजी प्रेम सिंह के नम्बर से। कहीं पता न लग जाए किसी को निकल घर से बाहर सर्वेन्द्र गया डर से।। एक मिनट तक बात हुई दोनों की फिर नेहा ने फोन काट दिया। फोन न कर दे सर्वेन्द्र कहीं,कर मैसेज नेहा ने नाट दिया।। प्रेम सिंह जी के फोन के जरिए शुरू हुई इश्क की रबानी है भाई।। भाग - 6👇🏻 पढ़ कर मैसेज नेहा का सर्वेन्द्र ने है कॉल किया। क्यों न करूँ फोन मैं नेहा को सर्वेन्द्र ने बोल दिया।। मेरे पिता जी का है मोबाइल ये इसलिए किया मना आपको। मेरे चक्कर में तुम कहीं कॉल न कर दो मेरे बाप को।। यह सुनकर सर्वेन्द्र का दिल थोड़ा शांत हुआ। बाप का नम्बर मिला मुझे मन प्रसन्न दिल सुशांत हुआ।। फिर एक दिन नेहा की ही वजह से नेहा की माँ का नम्बर प्राप्त हुआ। कहीं पकड़ न जाएँ बात करते हुए, मोबाइल से बात करना समाप्त हुआ।। पड़ गए दोनों अब असमंजस में बिन फोन बात कैसे होगी। विना किसी सहारे के एकदूजे से मुलाकात कैसे होगी।। यह सोंच कर दोनों की आँखों में भर आया पानी है भाई।। भाग -7👇🏻 एकदूजे की धड़कन थे दोनों, एकदूजे की जान थे। एकदूजे से न होती बात थी,इसीलिए दोनों परेशान थे।। कैसे करें बात एकदूजे से न कोई समाधान सूझ रहा। क्यों हैं उतरे हुए चहरे इनके,न कोई इंसान बूझ रहा।। नेहा की पड़ोसन सुनीता को दोनों के प्यार की खबर पड़ जाती है। क्या करती हो प्यार सर्वेन्द्र से बतलाओ मुझे सुनीता अड़ जाती है।। बोली नेहा सुनीता से भाबी मैं सर्वेन्द्र से बहुत प्यार करती हूँ। उसको पाने के लिए मैं मर सकती हूँ किसी को मार सकती हूँ।। एक बार मुलाकात जो हो जाए आ जाएगी जान में जान भाबी। गर मिलबा दो तुम सर्वेन्द्र से तुम्हारा होगा बड़ा एहसान भाबी।। बोली सुनीता नेहा से अब मत घबराओ तुम,दोनों की जोड़ी सुनीता को ही मिलानी है भाई।। भाग - 8👇🏻 जात की सैनी काज से टेलरनी नेहा के समीप के मकान में रहती है। प्रेम की पुत्री नेहा से दोनों को मिलबाने की बात कान में कहती है।। साथ दे रही हूँ तुम्हारा मैं यह किसी को खबर पड़े नहीं। नाम न तुम्हारा लेंगे हम, दोनों आपस में गर लड़े नहीं।। लिख पत्र नेहा सुनीता से सर्वेन्द्र को पास बुलाती है। खाके कसम एक दूजे की सुनीता को विश्वास दिलाती है।। सुनीता भाबी ने भी दोनों से एक बात कही। तुम दोनों को एक कराऊँगी है गर तुम्हारी बात सही।। तुम दोनों के हालचाल मैं इकदूजे तक पहुँचाऊंगी। दूँगी साथ तुम्हारा मैं,एक दूजे से मिलबाऊंगी।। सर्वेन्द्र सिंह और नेहा की यहाँ से शुरू होती प्रेम कहानी है भाई।। भाग -9👇🏻 अब सुनीता के हाँथों से प्रेमपत्रों का चलन चला। दो प्रेमी जीवों का इकदूजे से हो मिलन चला।। अपने घर में ही मिलबाती है,यारो नारी बो अलबेली है। निहारिका और सर्वेन्द्र की अब होती मुलाकात डेली है।। पत्रों से जब खबर मिले तो दोनों सुनीता के घर आ जाते हैं। बैठ सुनीता के घर में दोनों अब इकदूजे से प्यार जताते हैं।। एहसान सुनीता का है हम पर हम दोनों को मिला दिया। आगे बताऊँगा कैसे सुनीता ने जहर जुदाई का पिला दिया।। एक दिन सर्वेन्द्र ने सोंचा ऐसे मिलने से शक हो जाएगा। अच्छा खासा प्रेम हमारा,रोज मिलने से बैडलक हो जाएगा।। सुनीता को पता लग गया, अब किसी और को न बतानी है भाई।। भाग -10👇🏻 लगा सोंचने सर्वेन्द्र कैसे बात करूँ मैं, जो पता किसी को चले नहीं। देख हमारी आशिकी को कोई दिलजला यारो जले नहीं।। सोंच - सोंच कर सर्वेन्द्र कुछ परेशान हुआ। आ गया एक विचार समस्या का समाधान हुआ।। दे दूँ मोबाइल अगर नेहा को,तो खबर किसी को पड़ेगी नहीं। हम दोनों की आशिकी फिर किसी मुश्किल में पड़ेगी नहीं।। ये सोंच कर सर्वेन्द्र ने निहारिका को दे मोबाइल दिया। देकर फोन नेहा को सर्वेन्द्र ने नम्बर कर डायल दिया।। हर रोज बातें करते दोनों प्रेमी आपस में। डर भी लगता था उन्हें कहीं पड़ न जाएँ किसी आफत में।। यही डर है,यही मुश्किल,यही परेशानी है भाई।। भाग -11👇🏻 बात बड़ी मुलाकात बड़ी बड़ गई मोहब्बत यारो। बातें करते-करते एकदूजे से लग गई लत यारो।। बन गए जरूरत इकदूजे की इतना उनका प्यार बड़ा। सारे रिश्ते छोटे हो गए,और सबसे हो गया यार बड़ा।। नेहा के घर पर एक दिन एक रिश्तेदार आ जाती है। नीरज था नाम उसका,नेहा से नेहा का प्रेमसार पा जाती है।। पता लगा लेती है बो,नेहा से नेहा के प्यार का। नाम भी पूँछ लेती है नेहा से नेहा के यार का।। नीरज नेहा से फोन करा सर्वेन्द्र को पास बुलाती है। ये है आशिक मेरा नेहा नीरज को विश्वास दिलाती है।। फिर नीरज भी नेहा से कहती है,तुझे एक बात बतानी है भाई।। भाग -12👇🏻 बोली नीरज नेहा से मैं भी किसी पे दिल हार बैठी हूँ। उस आशिक के चक्कर में मैं शर्मोंह्या उतार बैठी हूँ।। वो सम्भल की रहने बाली देखो नरेश की दीवानी है। कहीं पर मिलने की नरेश से उसने मिलने की ठानी है।। बोली मैं मिलने जाऊँगी नरेश से नरेश की बहिन के घर पे। तू भी सर्वेन्द्र को बतलादे मिल जाए लाइनों बाली डगर पे।। रामपुर बाली लाइनों पे सर्वेन्द्र की नीरज-नेहा से मुलाकात होती है। तुम जाओ नरेश की बहिन के घर,हम डियरपार्क जाते हैं बात होती है।। नीरज चली गई नरेश से मिलने, सर्वेन्द्र नेहा को ले निकल जाता है। नीरज को ले साथ नेहा,गई है सर्वेन्द्र से मिलने प्रेम को पता चल जाता है।। बोले पापा नेहा के, अब ये लड़की पड़ेगी धमकानी है भाई।। भाग -13👇🏻 लौट कर जब सब आए अपने-अपने घर को। अपने घर सब चले गए ले दिल में डर को।। प्रेमसिंह और रोहित ने घर आते ही नेहा को पीटा मारा भी। फोन तोड़ दिया नेहा ने दिया बाप को जवाब करारा भी।। अब आप नहीं रोक सकते मुझे,करूँगी सर्वेन्द्र से शादी मैं। सर्वेन्द्र है शहजादा मेरे दिल का,सर्वेन्द्र की हूँ शहजादी मैं।। प्यार हमारा सच्चा है आप हमें न रोक पाओगे। की कोशिश रोकने की तो बेवजह चोट खाओगे।। सुन कर जवाब नेहा का दोनों थम गए कुछ पल के लिए। नेहा के पापा ने कहा मत पड़ इश्क में ये लाता है मुश्किल के लिए।। बात नेहा ने अपने पिता की एक न मानी है भाई।। भाग -14👇🏻 सर्वेन्द्र को जब पता लगा,नेहा की हुई पिटाई है। बदला लेने नेहा का मैंने ली बंदूक उठाई है।। आज मारूँगा दोनों को या खुद मर जाऊँगा। कर्जा उतारने प्यार का मैं नेहा के घर जाऊँगा।। पिटाई का नेहा की बदला लूँगा, गुस्से का है पारा चढ़ा हुआ। न सोंचा समझा कुछ भी जा प्रेम के दरबाजे खड़ा हुआ।। तेवर देख सर्वेन्द्र के नेहा दरबाजे पर आई। लौटा दिया समझा के,मुझे न पूरी बात बताई।। कहा सर्वेन्द्र से नेहा ने, हम अब दोनों ब्याह रचाएँगे। अभी सताने दो इनको,शादी कर हम हाथ न आएँगे।। क्यों घबराते हो तुम,हमें एक साथ जिन्दगी बितानी है भाई।। भाग -15👇🏻 देख कर नेहा के चहरे की चोट,मेरा जी जला जाता है। नेहा के समझाने पर, सर्वेन्द्र लौट घर चला जाता है।। आठ मई को हम दोनों ने एक होने की ली ठान। रोशनी के घर पे सर्वेन्द्र ने नेहा को दिया सिंदूर दान।। अब दोनों हो गए एक,परवाह किसी की रही नहीं। बिन बराती बने जीवनसाथी,क्या ये शादी सही नहीं।। साक्षी मान के ईश्वर को,अपनों को दोनों ने याद किया। नाम ले मातपिता-बुजर्गों का,दोनों ने आशीर्वाद लिया।। राधा की पुत्री को बहन मान, सर्वेन्द्र ने एक सौ एक रुपये का दान दिया। नेहा ने भी रोशनी को ननन्द मान, चरण छू कर सम्मान किया।। सदा सुहागिन रहो नेहा तुम,रोशनी ने बोली आशीर्वाद की बानी है भाई।। भाग -16👇🏻 नेहा से बात करने को सर्वेन्द्र कभी रोशनी व् सुनीता के घर जाता है। देख के हालात सर्वेन्द्र-नेहा के प्रेम के दिमाग में गुस्सा भर आता है।। गुस्से से प्रेमसिंह ने सर्वेन्द्र को मारने की सोंची। ला तमंचा घर उसने नेहा को ताड़ने की सोंची।। डरा धमकाकर बोले नेहा से,आज तुझे मैं मारूँगा। तेरे सर से सर्वेन्द्र के प्यार का,भूत मैं उतारूँगा।। पापा-भैया की धमकी से नेहा डर जाती है। सुनीता से सर्वेन्द्र को ये खबर भिजवाती है।। पड़ पत्र नेहा का गुस्से से सर्वेन्द्र आग बबूला हो गया। कैसे बचाऊँ मैं अपने प्यार को मन ही मन बो खो गया।। सोंचने लगा क्यूँ बार-बार मुझपे ही आती परेशानी है भाई।। भाग -17👇🏻 भेजी खबर सर्वेन्द्र ने छत पर ही रात गुजारे बो। जाए न नींचे को आज की रात खुद को सँभारे बो।। आधी रात तक रहा निहारता,करता रहा रखबाली। कहीं फूल न कोई तोड़ दे,डरता रहा बो माली।। सुबह होते ही सर्वेन्द्र नींद से झटपट जाग जाता है। 31मई की दोपहर थी,बो नेहा को ले भाग जाता है।। कल तुझे ले जाऊँगा, तू फिक्र करना नहीं। तेरा सर्वेन्द्र अभी जिंदा है,नेहा तू डरना नहीं।। चल दिए दोनों एक साथ,करने जिंदगी का सफर। चल दिए जिंदगी की राह में,बन कर दोनों हमसफर।। साथ देख सर्वेन्द्र को नेहा मन में मुस्कानी है भाई।। भाग -18👇🏻 ऐसा कदम रखते ही सर्वेन्द्र के माथे लग दाग गया। कहने लगे सभी लोग भगोड़ा लड़की ले भाग गया।। दिन भर सफर किया दोनों ने,पहुँच गए बबराला। अपने मित्र धर्मवीर के घर,हम दोनों ने जा डेरा डाला।। दो दिन बहाँ पर सर्वेन्द्र ने मजदूरी की। जो कमी थी पैसों की मेहनत कर पूरी की।। दो दिन का समय दोनों ने बहाँ पर व्यतीत किया। ज्यादा दिन नहीं रुक सकते दोनों ने प्रतीत किया।। चल दिए वहाँ से दोनों कोई ठौर-ठिकाना था नहीं। रुक जाएँ वहाँ पर हम दोनों ऐसा कोई बहाना था नहीं।। यह सोंच चल दिए वहॉं से,अब यहाँ न कोई बनेगी कहानी भाई।। भाग -19👇🏻 कोई ठौर-ठिकाना है नहीं दोनों को यह बात सताती है। हम दोनों अब रहें कहाँ पर,समझ न यह बात आती है।। थे परेशान दोनों प्रेमी रहने को कोई ठिकाना नहीं। बोली नेहा हूँ साथ तुम्हारे मैं,तुम बिल्कुल घबराना नहीं। मत घबराओ तुम कहीं न कहीं जगह मिल जाएगी। अपनी मुरझाई सी दुनिया किसी जगह खिल जाएगी।। हार न मानी है दोनों ने अपने प्यार की रेश में। पहुँच गए अब दोनों प्रेमी धाम ऋषिकेश में।। दोनों प्रेमी थे यारो अब काम और ठाम की तलाश में। मिल गया एक किराए का कमरा चंद्रभागा पुल के पास में।। रहने को तो मिल गया ठिकाना,अब काम की जुगत की बनानी है भाई।। भाग -20👇🏻 लेवर चौक पर पहुँच गया सर्वेन्द्र काम के चक्कर में। पहले ही दिन मिल गया काम एक ठेकेदार के अंडर में।। अब न रहने की मुश्किल है,न काम की परेशानी। बड़े मौज से कटने लगी,दोनों प्रेमियों की जिंदगानी।। प्रेमपूर्वक रहते हैं,अब दोनों मौज मनाते हैं। रोज दीवाली है उनकी,होली रोज मनाते हैं।। है नहीं चिंता किसी बात की रहने को है ठाम मिला। थी जरूरत पैसों की तो उसके लिए है काम मिला।। रहते हैं दोनों वहाँ पर अपनी अच्छी शान बनाके। रिश्ते भी बना लिए दोनों ने सबसे पहचान बनाके।। लक के लकी हैं दोनों किस्मत भी उनकी दीवानी है भाई।। भाग -21👇🏻 ऐसा प्यार है उनका यारो,किसी के आगे झुका नहीं। कितनी भी मुश्किल हुई सफर में,किसी डगर पर रुका नहीं।। प्यार पाने को अपना दोनों ने जो छेड़ा था संग्राम। लड़ते-लड़ते दोनों बढ़ते गए,न किया कहीं विश्राम।। पा ही लिया प्यार अपना दोनों कर लड़ाई इश्क में। आजमाते रहे नाशीबा अपना पड़ हर वक्त रिश्क में।। आठ मई को शादी की इकत्तीस मई को भाग गए। छः जून को मिला ठिकाना दोनों के भाग्य जाग गए।। नगर बबराला में दोनों ने मनाया हनीमून था। सर्वेन्द्र के मित्र का घर था बो,दिनांक एक जून था।। धर्मवीर के घर दोनों ने की सुहागरात सुहानी है भाई।। भाग - 22👇🏻 एक महीना सही कटा फिर दोनों झगड़ने लगे। किस्मत बाले दिन उनके विन बताए,बिगड़ने लगे।। किसी न किसी बात को ले कर दोनों में अनबन होने लगी। यार प्यार हटा दोनों का अब,हर खुशी शमन होने लगी।। मोहब्बत बदली नफरत में अब प्यार का प्यार से खून हुआ। जून के खत्म होते-होते ही,साथ रहने का खत्म जुनून हुआ।। लड़बाना ही था दोनों को तो क्यों प्रभु तूने मेल किया। लड़ ना सकूँगा नेहा से मैं कह छिड़क मिट्टी का तेल लिया।। हर पल समझाए नेहा को पर उसकी समझ में आता नहीं। कि नेहा करे अपने मन की,है यह सर्वेन्द्र को भाता नहीं।। कहे सर्वेन्द्र नेहा से तू क्यों करती मनमानी है भाई।। भाग -23👇🏻 पड़ोसियों ने भी समझाया तुम आपस न झगड़ा करो। प्यार भरे दिलों में तुम नफरत का गुस्सा न तगड़ा करो।। रहो प्यार से तुम दोनों हम सब की यह इच्छा है। जब इकदूजे को पाने की तुमने ईश्वर से माँगी भिक्षा है।। प्यार से रहो तुम दोनों इकदूजे पर ऐतबार करो। राजाराम ने दी कसम न झगड़ोगे इकरार करो।। सर्वेन्द्र ने ये खाई कसम,अब न लड़ेंगे हम। कितनी भी मुश्किल आ जाए न होगा प्यार कम।। करता हूँ वादा मैं चाहूँगा नेहा को हर पल। कभी न भूलूँगा उसे चाहें जाए मेरी जाँ निकल।। कर दे नेहा माफ मुझे,मैंने जो नादानी की है भाई।। भाग -24👇🏻 एक दिन सर्वेन्द्र के मामा का फोन आ जाता है। है कहाँ पर भांजे तू,तेरे बिन रहा नहीं जाता है।। तू रहता है कहाँ पर सर्वेन्द्र मुझे बतला दे। मैं आ रहा हूँ तेरे पास सही से मुझे जतला दे।। मुझे पता है तू परेशान होगा,तूने गलत किया जो काम बेटा। तेरी कुछ मदद कर जाऊँगा मैं,तूने सही बताया जो ठाम बेटा।। आ गए मामा सर्वेन्द्र के विजेंद्र सिंह उनका नाम था। सर्वेन्द्र और नेहा के लिए मन लगा के किया काम था।। एक महीना रहे साथ में दोनों पर पूरा ध्यान दिया। एक महीने की कमाई का पैसा कर सर्वेन्द्र दान दिया।। विजेंद्र ने सर्वेन्द्र का हाथ बटाया,सब हर ली परेशानी है भाई।। भाग -25👇🏻 नेहा ने फोन किया एक दिन अपने घर पे। पिता जी नमस्ते बो बोली डर-डर के।। मैं हूँ ठीक यहाँ पर,पिताजी अपना आप हाल कहो। क्या हैं सब कुशल मंगल पिताजी सब तत्काल कहो।। बोले प्रेम क्यों फोन किया जब छोड़ के हमें तू चली गई। बर्बाद कर दिया तूने हमें अच्छा हुआ जो चली गई।। अब रहे वहीं पर बेटा, तेरा अब वही घर है। रख ख्याल सर्वेन्द्र का तू,तेरा अब वही वर है।। उसका घर है तेरा उसका परिवार अब है तेरा। दे साथ नेहा उसका वहॉं जुड़ गया तार अब तेरा।। रहो खुश सदा है आशीर्वाद मेरा,कहा जय भवानी है भाई।। भाग -26👇🏻 दर्शन करके ऋषिकेश का विजेंद्र ने घर जाने का ध्यान किया। तुम दोनों बुला लूँगा सर्वेन्द्र से कह घर को है प्रस्थान किया।। घर जा कर विजेन्द्र ने सारी बात बताई है। बुला पास लो पास दोनों को ऐसी इच्छा जताई है।। हैं परेशान दोनों रहते हैं ऋषिकेश में। मेरा मन करता नहीं कि बो रहें प्रदेश में।। बुलाके घर पर उनको जीजाजी मदद करो। कर दो दोनों को माफ तुम,अपनी खत्म जिद करो।। सुन कर दोनों की परेशानी,बो थोड़े से परेशान हुए। उस सम्मानीय सख्स के कुछ तीखे से व्यान हुए।। बोले उन दोनों की जोड़ी हमें न पास बुलानी है भाई।। भाग -27👇🏻 साफ मना किया श्री देवेन्द्र सिंह ने मुझे न उनकी जरूरत है। शिर नीचा करा दिया मेरा,उन्होंने अच्छी की मोहब्बत है।। कभी अपने पास न बुलाऊँगा ये मैंने है ठान लिया। उन्होंने नाक काट दी मेरी,छीन सारा सम्मान लिया।। वो नहीं किसी से डरते हैं,इकदूजे पे मरते हैं। जब बक्त बुरा उन पर तो याद हमें क्यों करते हैं।। खुद भुगते बो अपनी गलती,उन्होंने है बुरा काम किया। इतना कह देवेन्द्र सिंह ने अपनी वाणी को विराम दिया।। सुन मेरे पापा की बातें मेरे ताऊ ने दिया जवाब। तुमने ही दे छूट उन्हें उनका कर जीवन दिया खराब।। तुम्हें खुद की ही वजह से पड़ी जिल्लत उठानी है भाई।। भाग -28👇🏻 अब तुम्हें न उनकी चिंता है,न कोई अब चाहत है। मेरा भी रिश्ता है उनसे,देनी उन्हें अब राहत है।। अब न छोड़ूँगा अकेला,उन्हें अपने पास बुलाऊँगा। माफ किआ मैंने उनको,उनके मैं सारे दोष भुलाऊँगा।। तुम भी माफ करो उनको,मेरी मानो तुम बात भाई। गलती भुला के उन की सारी,दो उनका तुम साथ भाई।। बुला लिया दोनों को श्री दशेन्द्र सिंह ने कुछ दिनों के बाद में। है सर्वेन्द्र के ताऊ का घर,जिला बुलन्दशहर के सिकन्दराबाद में।। फिर विजेन्द्र मामा का फोन आया,बोले मैं हूँ कुछ कहने को। बोले मना लिया मैंने दशेन्द्र जीजा को,चला जा वहाँ तू रहने को।। मन ही मन खुश हुआ सर्वेन्द्र, सुन अपने मामा की बानी है भाई।। भाग -29👇🏻 ले कर साथ मे नेहा को सर्वेन्द्र पहुँच गया ताऊ के घर। कहीं पिटाई न मेरी हो जाए,मन में था थोड़ा सा डर।। अपने समीप में ताऊ ने एक कमरा दोनों को दिला दिया। काम जो दे ऐसे बन्दे से,ताऊ ने है सर्वेन्द्र को मिला दिया।। खुश थे दोनों यह सोंच कर,पास में हमारे अपने हैं। अब टेंशन किसी बात की ना,सच होंगे सारे सपने हैं।। खुशी-खुशी दोनों रहने लगे,अब न रही कोई परेशानी है। जैसे काँटों में फूल खिलें, दोनों की खिल गई जिंदगानी है।। सर्वेन्द्र के ताऊ का परिवार पूरा सपोट देता है। एक बुरा बक्त आ कर के,दोनों पर कर चोट देता है।। खुशियों की बहार दी उजाड़,समय ने की शैतानी है भाई।। भाग -30👇🏻 वहाँ पन्द्रह बीस दिनों के बाद,नेहा बीमार हो जाती है। निहारिका को ठीक करने की हर कोशिश बेकार हो जाती है।। आ गया बक्त बुरा आज,अपना राज जमाने को। होता है समय बलवान यह,अंदाज करने को।। ज्यादा बिगड़ती देख हालत नेहा की सर्वेन्द्र रो पड़ा। फोन करने अपने पिता को सर्वेन्द्र गया हो खड़ा।। सोंचा फोन कर पिता जी से मैं सारा हाल कहूँ। तबियत खराब है नेहा की,पिता जी से तत्काल कहूँ।। रो - रो कर पापा से मैं यह कह रहा। बहुत खराब है तबियत,सिसक-सिसक कर कह रहा।। सुनो पिताजी तुम्हें एक बात बतानी है भाई।। भाग - 31👇🏻 आ जाओ पिताजी,नेहा की तबियत बहुत खराब है। आ रहा हूँ बेटा मैं, मेरे पापा ने दिया जवाब है।। घबरा मत बेटा मैं आ रहा हूँ पापा ने मुझे दिलाशा दी। रुपए ले कर दो घण्टे में पहुँचा, पापा ने मुझे आशा दी।। फिर फोन किया पिताजी ने अपने भाई को। कि नेहा बीमार है,जा दिला लाओ दबाई को।। दिखाओ किसी डॉक्टर को या भर्ती करो अस्पताल में। जल्द ही कार से पहुँच रहा हूँ,वहाँ तत्काल मैं।। पापा बोले दिखाओ सही डॉक्टर को,रुपए ले कर मैं आ रहा हूँ। ताऊ बोले परेशान न हो तुम,मैं नेहा को ले कर जा रहा हूँ।। बो बोले पापा से परेशान हो,मैं देख लूँगा जो भी परेशानी है भाई।। भाग -32👇🏻 ©SARVENDRA SINGH 🌹सर्वेन्द्र एक सच्ची प्रेम गाथा🌷 सौ भाग में Hundred in partition अपने गुरु का ध्यान धर, गिरिजा पुत्र गणेश मनाय,, अपनी प्रेम कहानी लिखू
🌹सर्वेन्द्र एक सच्ची प्रेम गाथा🌷 सौ भाग में Hundred in partition अपने गुरु का ध्यान धर, गिरिजा पुत्र गणेश मनाय,, अपनी प्रेम कहानी लिखू
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