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Internet Jockey
White सही समय देखने के लिए भी काफी समय लगता है तो अब किसी के पूछने पर कि कितने बजे हैं कह देता हूँ मुझे घडी देखना नहीं आता है ©Internet Jockey #sad_quotes सही समय देखने के लिए भी काफी समय लगता है तो अब किसी के पूछने पर कि कितने बजे हैं कह देता हूँ मुझे घडी देखना नहीं आता है
#sad_quotes सही समय देखने के लिए भी काफी समय लगता है तो अब किसी के पूछने पर कि कितने बजे हैं कह देता हूँ मुझे घडी देखना नहीं आता है
read moreRavendra
सफेद बोरी में भैंस का माँस 3 जिन्दा भैंस (पड़वा) तथा एक पिकप पुलिस ने किया बरामद पुलिस अधीक्षक बहराइच वृन्दा शुक्ला द्वारा अ
read moreRavendra
महिला की नृशंस हत्या की घटना का सफल अनावरण, 02 अभियुक्त गिरफ्तार... आलाकत्ल बरामद ।* पुलिस अधीक्षक महोदय जनपद बहराइच श्रीमती वृन
read morePr.Vinod sk(Trivandrum,kerala)
White आज की बाइबल क्लास में कितने लोग शामिल होने के लिए तैयार हैं.. 9:30 से 10 बजे तक ©Pr.Vinod sk(Trivandrum,kerala) #indian_akshay_urja_day आज की बाइबल क्लास में कितने लोग शामिल होने के लिए तैयार हैं.. 9:30 से 10 बजे तक
#indian_akshay_urja_day आज की बाइबल क्लास में कितने लोग शामिल होने के लिए तैयार हैं.. 9:30 से 10 बजे तक
read moreVikas Sahni
White आज कविता जुल्मत-ए-सुबह से जग रही है पर सुंदर नहीं लग रही है न नहाने-खाने के कारण स्वतंत्रता के पुराने गाने गाने के कारण चिढ भी रही है वह। होकर नाराज़ नभ देख रही है और मैं उसकी आँखों में देखते-देखते दस बजे सजे पुस्तक-पन्नों के शब्दाें को फेसबुक; व्हाट्सएप; इंस्टाग्रामादि पर सजा रहा हूँ, "प्रसन्न बच्चों की आवाज़ें सर्वत्र गूँज रही हैं; सभी के लिए यह दिवा मेहमान है, पतंगों से सजा आसमान है, जिसकी ओर कविता का भी ध्यान है और उसकी ओर मेरा ध्यान है। लाल-पीली; हरी-नीली-पतंगें युद्ध-खेल खेल रही हैं अनंत आसमानी पानी और बादलों के बगीचे में मैंने देखा उन्हें कविता की आँखों से भरी पड़ी प्रत्येक छत है, प्रत्येक पतंग प्रतिस्पर्धा में रत है, कई किन्हीं इशारों पर नाच रही हैं, कई मुक्ति पाने-जाने के लिए छटपटा रहीं हैं, पिन्नी वाली फटी फटफटा रही हैं, कई मुक्त हुए जा रही हैं पश्चिम से पूर्व की ओर मस्ती में ठुमका लगाते हुए जा रही हैं अपने लक्ष्य की ओर तो कई कैदी बने रो रही हैं पक्के धागे के पिंजरे में, जिस प्रकार पक्षी (पतंग) अपने अंग-अंग को पटकते हैं पिजरे में बड़ी बेरहमी से फिर कविता की आँखों की नमी से पूछा मैंने कि क्या हुआ इससे आगे, क्या टूट गये वे सारे धागे? कविता ने कहा, "टूट ही जायेंगे कभी-न-कभी पतंगों के धागे, टूट ही जायेंगे कभी-न-कभी भिन्न-भिन्न रंगों के धागे। है आवश्यक अभी कि काश टूट जाते बुराई के धागे!!" . ...✍️विकास साहनी ©Vikas Sahni #पतंगों_के_प्रति आज कविता जुल्मत-ए-सुबह से जग रही है पर सुंदर नहीं लग रही है न नहाने-खाने के कारण स्वतंत्रता के पुराने गाने गाने के कारण चिढ
#पतंगों_के_प्रति आज कविता जुल्मत-ए-सुबह से जग रही है पर सुंदर नहीं लग रही है न नहाने-खाने के कारण स्वतंत्रता के पुराने गाने गाने के कारण चिढ
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