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YASHVARDHAN
जॉन साब को पढ़ते-पढ़ते हुए कब रात हो गई पता नहीं चला। एक शायर ज्यादा से ज्यादा क्या लिख सकता है ? जॉन साब की शायरी में आपको सब कुछ मिलेगा जिसकी आपको तमन्ना है। कुछ एक शेर इतने गहरे कि ज़िंदगी का फ़लसफ़ा समझ में आ जाए। उन्हीं में से एक शेर:- मेरी तन्हाई में ख़्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं मेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हें मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं... म ©YASHVARDHAN बस
बस
read moreहिमांशु Kulshreshtha
White हमने ख्वाबों और ख्वाहिशों को टूटते देखा है, दिल के मचलते अरमानों को बिखरते देखा है, मोहब्बत कभी रोशन किया करती थी जिन्दगी, हमने तो अब चिराग़ को बेसबब बुझते देखा है. ©हिमांशु Kulshreshtha बस यूँ ही...
बस यूँ ही...
read moreShaarang Deepak
चुपके चुपके कर देती है (रिश्तों की) तुरपाई अम्मा by Aalok Shrivastav Ji॥ Recited by- Saarang Deepak #AalokShrivastav #amma #maa Love shay
read moreHimanshu Prajapati
White मोहब्बत की गलियों से बस आना जाना था मेरा, कोई एक हसीना चुपके-चुपके मुझसे एक तरफा मोहब्बत बेमिसाल कर बैठी..! ©Himanshu Prajapati #love_shayari मोहब्बत की गलियों से बस आना जाना था मेरा, कोई एक हसीना चुपके-चुपके मुझसे एक तरफा मोहब्बत बेमिसाल कर बैठी..! #36gyan #hpstra
#love_shayari मोहब्बत की गलियों से बस आना जाना था मेरा, कोई एक हसीना चुपके-चुपके मुझसे एक तरफा मोहब्बत बेमिसाल कर बैठी..! #36gyan hpstra
read moreहिमांशु Kulshreshtha
फर्श पे गिर के बिखर पड़े हैं, फिर भी, मैं मायूस नहीं छोड़ो, उनको टूटना ही था, आखिर वो सपने ही तो थे तुमने ही जब गलत समझा, तो दिल टूटना ही था कोई होता गैर, दिल पे न लेता मैं अफ़सोस, तुम तो मेरे अपने थें ©हिमांशु Kulshreshtha बस यूँ ही..
बस यूँ ही..
read moremehar
तुम रूठते तो मना लेती,गलती होती तो माफी मांग लेती। मगर तुम तो छोड़ के जा रहे हो ,बोलो क्या ही कर लेती। मोहब्बत में जबरदस्ती का राब्ता नहीं होता, इसलिए जाने दिया,साथ रख कर भी क्या ही कर लेती। ©mehar बस जाने दिया
बस जाने दिया
read moremehar
खुश रहा करो ,कोई दुवा करता है तुम्हारे लिए जब लगे कि कोई नहीं मेरा, तो ख्याल रखो कि कोई जीता है तुम्हारे लिए। ©mehar बस तुम
बस तुम
read moreहिमांशु Kulshreshtha
अफ़सोस इतना गहरा नहीं कि सब कुछ मिटा देने को मन करे ना ही दुख इतना गहरा कि ख़ुद को पीड़ा पहुचा लूँ बस निष्प्रभ हूँ, डगमगाता , लड़खड़ाता सा कितने फ़ैसले जो मैंने लेना चाहे उन्हें लेने और ना लेने का खामियाजा भुगतता हुआ कभी सोचता हूँ अपने अकेलेपन में अगर ऐसा होता तो क्या होता अगर ये कर लिया होता तो क्या होता क्या ये होता.. या फिर..... इन्हीं सवालों में अक्सर उलझ जाता हूँ ©हिमांशु Kulshreshtha बस यूँ ही...
बस यूँ ही...
read moreहिमांशु Kulshreshtha
White कहते हैं मरने के बाद सब खत्म पर…. सब खत्म नही होता यादें शेष रह जाती हैं रहेंगी मेरी यादें भी तुम भी महसूस करोगी मुझे मेरी कविताओं में तैरता रहूँगा तुम्हारी आँखों में सपना बन कर ©हिमांशु Kulshreshtha बस यूँ ही..
बस यूँ ही..
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