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Stories related to इक्कीसवीं सदी की हिंदी कविता

manju sharma

इक्कीसवीं सदी

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इक्कीसवीं सदी में यह क्या नया दौर आया है जो मदद करता है किसी की उसने ही धोखा खाया है यह कैसी आधुनिकता दिखा रहा इंसान जो अपने कहलाते हैं उन्होंने ही जहर पिलाया है इक्कीसवीं सदी

Ruby Prasad

बदल गया है इक्कीसवीं सदी का पुरूष

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Såimà Nàwàz

Poetry By Saima Nawaz "मुद्दे इक्कीसवीं सदी के हैं"

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Dr Jayanti Pandey

#उफ्फ ये इक्कीसवीं सदी का विकास #yqhindi #yqdidi #jayakikalamse #hindipoetry

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जब जिंदगी में विकास न था, जिंदगी थी बस चैन  वाली 
आंगन से भी दिखता था चांद,और रातें होती तारों वाली।

दिन हो खाली तो बाग भी थे , दोस्त भी थे  हम  खयाली 
चार जोड़ी कपड़ों में भी , थी  शान  पूरी जमीदारों वाली।

घर में सबके , घर का भाव था , हंसी  ठठ्ठा और  चाव था
पैसे कम थे , कम ही सही ; सामाजिकता का निभाव था।

छोटे बड़े त्यौहार सौ थे , सब की जगह  थी  खास वाली 
रोज कोई दौड़ ना थी , जिंदगी थी  चैन  ओ सुकून वाली।

सफेदी चूने से हो पर हो और गुलजार हो सब की दिवाली 
होली खेलने सब निकलते, रहता नहीं था कोई भेद खाली।

जब से यह विकास आया, इक्कीसवीं सदी हो गई बवाली
दड़बों से घर में सिमटकर , घर भी खाली दिल भी खाली।

समाज तो ऐसा है बिखरा , टूटती देखो  संबंधों  की  डाली
साधन जुटाने में ऐसे डूबे, जैसे सब ने मदहोशी की दवा ली। #उफ्फ ये इक्कीसवीं सदी का विकास
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Ritika Vijay Shrivastava

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शोभा हूॅं मैं घर आंगन की,
क्यों मेरा तनिक भी मोल नहीं।
बार बार तुम खींच रहे जो,
अटूट बंधन है कच्ची डोर नहीं।
पावन सुत्र के मोती धुमिल अब,
समस्त यह गांठ ही रह जाएगी।
एक दिन... चिड़िया उड़ जाएगी।

©Ritika Vijay Shrivastava #swiftbird  कविता हिंदी कविता हिंदी कविता कुमार विश्वास की कविता कविता कोश

Harjinder Singh Asr

# कुमार विश्वास की कविता हिंदी कविता प्रेम कविता हिंदी दिवस पर कविता

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Sangam Pipe Line Wala

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कवि प्रभात

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White कहने को कुछ भी कहे, जीवन को संसार |
उसको मुझसे प्यार है, मुझको उससे प्यार ||

©कवि प्रभात #Sad_Status  हिंदी दिवस पर कविता कुमार विश्वास की कविता हिंदी कविता

Neetesh kumar

देशभक्ति कविता कुमार विश्वास की कविता हिंदी दिवस पर कविता हिंदी कविता कविताएं

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drawing by neetesh

©Neetesh kumar  देशभक्ति कविता कुमार विश्वास की कविता हिंदी दिवस पर कविता हिंदी कविता कविताएं

IG @kavi_neetesh

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White जो लक्ष्मण रेखा तोड़ेगा

पंचवटी में सोने का मृग, देख सिया जी हरसाई।
नंदनवन में चहल मची थी, मायामृग की चतुराई।

बोली राघव स्वर्ण मृग का, शिकार कर प्रभु लाओ। 
कनक कुटी की सजा को, स्वर्ण चर्म से सजवाओ। 

बोले राम प्राण प्रिए सीते, स्वर्ण मृग जग ना होते। 
होनी तो होकर रहती, क्यों राम लखन निर्जन सोते।
 
मायाजाल रचा रावण ने, खुद रामचंद्र अवतारी नर।
चल पड़े पीछे मृग के तब, बीत चुका था तीन प्रहर।

अंधकार में असुर शक्ति, प्रबल प्रभावी हो जाती। 
लक्ष्मण बचाओ प्राण मेरे, पंचवटी में ध्वनि आती।
 
जाओ लक्ष्मण प्राण प्रिय, रघुनंदन स्वामी मेरे हैं।
भाई की रक्षा करना, कर्तव्य लखन अब तेरे हैं।
 
मेरी चिंता छोड़ो लखन, स्वामी के प्राण बचाने है। 
मेरी आज्ञा को मानो, अब तुमको फर्ज निभाने है।

ईश्वर यह कैसी माया है, रघुवर से कौन टकराएगा। 
जो लक्ष्मण रेखा तोड़ेगा, तत्काल भस्म हो जाएगा।

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