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Stories related to जगत जननी का अर्थ

Parasram Arora

ग्लैमर युक्त जगत

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White ग्लेमर युक्त ये जगत
 कितना हसीन
 और रंगीन दिखता है 
सच्चाई ये है कि ये 
इतना रंगीन है नहीं 
बल्कि रंगीन और 
हसींन होने का केवल  
आभास देता है

©Parasram Arora ग्लैमर युक्त जगत

Bk Anjana

#sitarmusic दीपावली का आध्यात्मिक अर्थ 🎊🎉 नये अच्छे विचार

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Drjagriti

#अर्थ मोटिवेशनल कोट्स हिंदी

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White सब कुछ व्यर्थ है फिर
 भी जीवन के बहुत गहरे अर्थ है।

©Drjagriti #अर्थ  मोटिवेशनल कोट्स हिंदी

Srinivas

नेतृत्व का असली अर्थ है जब बिना नाम, बिना पद के भी जनता की भलाई की जाए।

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नेतृत्व का असली अर्थ है जब बिना नाम, बिना पद के भी जनता की भलाई की जाए।

©Srinivas नेतृत्व का असली अर्थ है जब बिना नाम, बिना पद के भी जनता की भलाई की जाए।

CHOUDHARY HARDIN KUKNA

आदिशक्ति जगत जननी माँ श्री करणी जी महाराज देशनोक मंगला जोत आरती करणी_माता भक्ति Hinduism

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ANATH SHAYAR

भरोसा का अर्थ है मां #follow #motivationकीआग #Motivational #Youtubeshorts #Youtube #youtubeShort

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Ravindra Singh

हे मेरी मां, हे जगत जननी...

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बादल सिंह 'कलमगार'

हिंदी का अर्थ हो तुम... #badalsinghkalamgar Poetry #Hindi प्रेम कविता Arshad Siddiqui Neel Ritu Tyagi Beena Kumari Shiv Naraya

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Lõkêsh

नजर , शब्द एक अर्थ अनेक 😂

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नजारे , नजरो के सामने कई नजर आते है , कमबख्त नजर बस तेरी नजर को तरस जाती है । ऐसी लगी नजर जमाने की , तेरी याद तो आती है , लेकिन तू नजर नहीं आती है ।

©Lõkêsh नजर , शब्द एक अर्थ अनेक 😂

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष

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गीत :-
तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार ।
क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।।
तुम जननी हो इस जग की ....

पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार ।
निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।।
बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार ।
चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।।
मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार ।
तुम जननी हो इस जग की .....

छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार ।
बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।।
बन चंडी अब पहन गले में ,  इनको मुंडों का तू हार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार ।
ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।।
जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार ।
खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।।
मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार ।
क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-
तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार ।
क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।।
तुम जननी हो इस जग की ....

पुरुष
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