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मोहन आचार्य

Avinash Jain

मानवाधिकार “मानवों” के लिये हैं “दानवों” के लिये नहीं, और “बलात्कार” मानव नहीं करता. #Rape #Women

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#Encounter  मानवाधिकार “मानवों”
के लिये हैं “दानवों” के लिये नहीं, और “बलात्कार” मानव नहीं करता. मानवाधिकार “मानवों”
के लिये हैं “दानवों” के लिये नहीं, और “बलात्कार” मानव नहीं करता.
#rape #women

Namrata Dake

मानव आहोत तर मानवतेचे कर्तव्य आपण निभवूया...

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Pushpendra Pankaj

मानव/मानवता

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मानव/मानवता 
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चंचल मन की एक शिकायत मुझसे भी है, 
क्यों इतनी गंभीर बना डाली है सूरत ।
तुम मनुष्य हो,और दिलो मे धङकन जीवित ।
स्थिर गुमसुम ऐसे क्यों बैठे, जैसे मूरत ।
मानव के स्वभाव में बसती व्यवहारिकता ,
मेल-मिलाप का आधार हमारी सामाजिकता ।
फिर अपनी पहचान से बचकर भाग रहे क्यों, 
बिन मानवता मानव लगने लगता बदसूरत ।।
पुष्पेन्द्र पंकज

©Pushpendra Pankaj मानव/मानवता

शिवम मानव

मानव मानवता

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आशुतोष यादव

जाति,मजहब पर उत्साही वेग में दिया गया व्याखयान
मानवता के नेसर्गिक वेग को कर देता है लहूलुहान

   ~आशुतोष #मजहबी_बटवारा #धर्मयुध्द #मानवता_की_नीलामी #मानवता_का_अंत Garima Grover Prashant Kumar Tiwari indu singh deepti😊 Priya Gour

Archana pandey

Pooja Srivastava

Tara Chandra

मानव जीवन..अनोखी यात्रा:

सपनों का ताँता, पल-पल की दौड़। चला जा रहा हूँ, चला जा रहा हूँ।
मंज़िल का कोई 'पता' ना लिया। बढ़ा जा रहा हूँ, चला जा रहा हूँ।।

तन की ज़रूरत, मन की उड़ान। दौड़ाये हरदम, पूरा जहान।
बचपन गया और जवानी गयी। पूरी की पूरी कहानी गयी।
जीवन का क्या लक्ष्य, चिन्ता ना ध्यान। छला जा रहा हूँ, चला जा रहा हूँ।।

आते रहे मोड़ जाते रहे। मन भाते, कोई डराते रहे।
घटना बड़ादे धड़कन कोई। साँसें थमा दें, एहसास हैं।
निकला सुबह से, पहुँचना है शाम। चला जा रहा हूँ, चला जा रहा हूँ।।

यूँ तो है वाहन कई मेरे पास। मगर में 'समय रथ' का मालिक नहीं।
संग में बहुत हैं, साथी सवार। मगर कोई मंज़िल का साथी नहीं।
बढ़ता ही जाये, ना रुकने का नाम। बेबस बहुत हूँ, खिंचा जा रहा हूँ।।

सच! संग ले जानी है कर्मों की झोली। बाक़ी तो हर हाल है छोड़ जानी।
यहाँ तक की है छोड़ जाना शरीर। जिसके लिए कर रहा भागदौड़।
पशु की वही है, जो मानव कहानी। क्या अंतर? समझने जतन कर रहा हूँ।।

हे कृष्ण! दो राह, दो राह राधे! बन सारथी तुम हरो दुःख सारे।
तेरी कृपा हो तो सद्-मति मिलेगी। सदकर्म की प्रेरणा भी मिलेगी।
जीवन यूँ जीयें, मिले तेरा धाम। करम कर रहा हूँ, धरम जी रहा हूँ।।

सपनों का ताँता, पल-पल की दौड़। चला जा रहा था, चला जा रहा था।
गन्तव्य का अब है 'पता' मिल गया। जीवन हो सार्थक, वही कर रहा हूँ।।

©Tara Chandra #मानव_जीवन_यात्रा

Suman Zaniyan

जो होगा मानव हित के विरूद्ध धरा पर
सर उस जीव के कलम कर दिए जाएंगे
तोड़ दी जाएगी मुहब्बत की नींव,
यानि पिता की लाठी
मुहब्बत के नाम पे फ़कत, 
काँटों पर गुलाब खिलाए जाएंगे☔

✒सुमन जानियाँ #मानव_हित_के_विरूद्ध
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