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बाबा ब्राऊनबियर्ड
दीवारों में जब तक कान थे तब तक सब सही था । वो सुनती थी। जब से दरारे हुई है ... मसला भी तब से हुआ है। ✍️ ©बाबा ब्राऊनबियर्ड खैर एक वक्त के बाद अब दरार भी पुरलुत्फ है।
खैर एक वक्त के बाद अब दरार भी पुरलुत्फ है। #Life
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार । निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।। बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार । तुम जननी हो इस जग की .... कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार । चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।। मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार । तुम जननी हो इस जग की ..... छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार । बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।। बन चंडी अब पहन गले में , इनको मुंडों का तू हार । तुम जननी हो इस जग की .... बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार । ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।। जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार । तुम जननी हो इस जग की .... सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार । खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।। मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार । तुम जननी हो इस जग की .... तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष #कविता
read moreAnuradha T Gautam 6280
लाख कोशिश कर लो एक बार रिश्ता टूट जाता है उसमें #दरार आ जाती है लाख जोड़ने की कोशिश कर लो पहले जैसा नहीं रहता वो रिश्ता..🖊️ # #शायरी #अनु_अंजुरी🤦🏻🙆🏻♀️
read moreDevesh Dixit
नशा (दोहे) नशा करे कोई कभी, उसको घेरे रोग। मन से भी विचलित नहीं, हैं कैसे ये लोग।। तम्बाकू को ले रहे, समझे अपनी शान। सभी जगह पर थूकते, खोते अपना मान।। मदिरा भी शामिल वहीं, होश गँवाते लोग। अपशब्दों से तौलते, दिखता उसमें रोग।। डगमग-डगमग पैर हों, मन में भरे विकार। रिश्तों की चिंता नहीं, डालें खूब दरार।। कहती है सद्भावना, नशा करे बरबाद। छोड़ सको तो छोड़ दो, हो जाओ आबाद।। क्यों करना अब है नशा, कर दो इसका त्याग। मुक्ति केंद्र भी हैं खुले, ले लो इसमें भाग।। जीवन यह अनमोल है, मत करना उपहास। सुखमय भी यह तब रहे, हो उसमें उल्लास।। ............................................................. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #नशा #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry नशा (दोहे) नशा करे कोई कभी, उसको घेरे रोग। मन से भी विचलित नहीं, हैं कैसे ये लोग।। तम्बाकू को
#नशा #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry नशा (दोहे) नशा करे कोई कभी, उसको घेरे रोग। मन से भी विचलित नहीं, हैं कैसे ये लोग।। तम्बाकू को #Poetry #sandiprohila
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