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Shivkumar barman

*दीपावली पर्व की शुभकामना* दीपावली का पर्व करता मुझसे यही प्रस्तवाना आत्मिक संप्रभुता की हृदय में करूं संस्थापना सादगीयुक्त नवीन सुन्दरता

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White 

दीपावली का पर्व करता मुझसे यही प्रस्तवाना
आत्मिक संप्रभुता की हृदय में करूं संस्थापना

सादगीयुक्त नवीन सुन्दरता जीवन में अपनाऊं
मन को सुकून देने वाला संदेश सबको सुनाऊं

अपने घर की तरह मन बुद्धि भी स्वच्छ बनाऊं
दिव्य गुणों सुगन्ध से अपना हृदयतल महकाऊं

मन का अंधेरा मिटाने वाला दीपक मैं जलाऊं
हर आत्मा का मुख मण्डल देदीप्यमान बनाऊं

सम्मानयुक्त मीठे बोल वाणी से सबको सुनाऊं
सुख शांति भरी शुभकामना सबको देता जाऊं

©Shivkumar barman *दीपावली पर्व की शुभकामना*

दीपावली का पर्व करता मुझसे यही प्रस्तवाना
आत्मिक संप्रभुता की हृदय में करूं संस्थापना

सादगीयुक्त नवीन सुन्दरता

N S Yadav GoldMine

#diwali_wishes {Bolo Ji Radhey Radhey} पहले कोई भी जाति नही थी, सबसे पहले 4 वर्ण थे, ये सब का काम के आधार पर निर्भर था, ये तो सनातन धर्म को

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White {Bolo Ji Radhey Radhey}
पहले कोई भी जाति नही थी, सबसे पहले 4 वर्ण थे, ये सब का काम के आधार पर निर्भर था, ये तो सनातन धर्म को तोड़ने की साज़िश रची गई, सादी विवाह के लिए हम सब ने अपने आप बाट लिया, जो काम करता था, वही जाती मानली, यह सरासर गलत है, धर्म व शास्त्र विरुद्ध हैं, यह व्यवस्था है, जाति नही है, सबका शरीर परम् पिता ने बिल्कुल एक सा बनाया है, और हम सदा से सर्वदा सनातन से हैं, आगे आप सब की बुद्धि व विचारधारा हैं, दोस किसी का नही, अब हर जाति व धर्म में विवाह हो रहे हैं, पूरी दुनिया का मालिक एक और हम सब उस मालिक के, सबका खून  लाल, हा विधि, विकार, विचार, रहन-सहन, भाषा और बहुत कुछ अलग हो सकता है।। जय श्री राधेकृष्ण जी।।

©N S Yadav GoldMine #diwali_wishes {Bolo Ji Radhey Radhey}
पहले कोई भी जाति नही थी, सबसे पहले 4 वर्ण थे, ये सब का काम के आधार पर निर्भर था, ये तो सनातन धर्म को

बेजुबान शायर shivkumar

तुम मुझे मिलोगी जब ये #बनारस की #घाट पर उस दिन मां #गंगा की शांत #लहरों में समंदर सा उफ़ान आयेगा ! तुम्हारे #नेत्रों में दिखेंगे जब

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तुम मुझे मिलोगी जब
ये बनारस की घाट पर
उस दिन मां गंगा की शांत लहरों में
समंदर सा उफ़ान आयेगा !

तुम्हारे नेत्रों में दिखेंगे जब 
गंगा में चमकते दिए !
उस दिन उन लहरों को अभिमान होगा
तुम्हारे नेत्रों में चमकने का !

उस दिन संभवतः मेरा हृदय 
तुमपे पार पाएगा !
संभवतः कुछ ना भी दिख इस संसार में
फिर भी तुम्हारी आस में ये हर धाम जाएगा ! 

तुम स्वीकार लो जो मेरा प्रेम तोविजयी है यह ,
अन्यथा, मेरा हृदय संसार से हार जाएगा ।

©बेजुबान शायर shivkumar तुम मुझे मिलोगी जब
ये #बनारस  की #घाट  पर
उस दिन मां #गंगा  की शांत #लहरों  में
समंदर सा उफ़ान आयेगा !

तुम्हारे #नेत्रों   में दिखेंगे जब

बादल सिंह 'कलमगार'

तुम हृदय मन की देवी... #badalsinghkalamgar Poetry Love Shayari gudiya VED PRAKASH 73 Beena Kumari Shiv Narayan Saxena Arshad

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Anjali Singhal

"मेरे हृदय की बंजर भूमि पर, तेरे प्यार का अंकुर फूटा है। एहसासों से जन्मा पौधा, रोम-रोम में महका है।।" #AnjaliSinghal #Shayari nojoto

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Heer

जय जय श्री राधे 🙌🥰🌸 तेरी ममता और करुणा की है आस मेरी श्रीजी, गोदी उठा ले ना मां, हृदय से तेरे लग के आज भर लूं आखिरी सांस आज। 🙏🙇🏻‍♀️🥺 तेरे चर

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Anuradha T Gautam 6280

हृदय की #पीड़ा ईश्वर को #ज्ञात है लोगों के लिए तो वैसे भी सब #मजाक हैं सब झूठ है एक तेरा प्यार #सच्चा है..🖊️ अनु_अंजुरी🤦🏻🙆🏻

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person

इस कलयुग में मनुष्य ही असुर हैं और आसुरी भी मन के भाव और भावनाएं दूषित हो तो नकारात्मक सोच और विकार ग्रसित कर देती हैं मन के विकार मनके

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इस कलयुग में 
मनुष्य ही 
असुर हैं और आसुरी भी
मन के भाव और भावनाएं दूषित हो 
तो नकारात्मक सोच 
और विकार ग्रसित कर देती हैं 
मन के विकार मनके छह प्रकार के विकार उत्पन्न होते है। इनको छह रीपु भी कहते है। यथा काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मात्सर्य 
स्वार्थ , ईर्ष्या , क्रोध , अहंकार , घमंड, अभिमान , गुस्सा ,
लालची स्वभाव ,
नास्तिक व्यवहार ,
असत्य ,झूठ ,
अपशब्द , दुष्टता,
यह सब नरक  के द्वार खोलते हैं 
और इन्हीं सबसे मनुष्य की पतन होती हैं

©person इस कलयुग में 
मनुष्य ही 
असुर हैं और आसुरी भी
मन के भाव और भावनाएं दूषित हो 
तो नकारात्मक सोच 
और विकार ग्रसित कर देती हैं 
मन के विकार मनके

person

पांच तरह के विकार होते हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार क्रोध, लोभ, मोह, मिथ्या भाषण यह सब अवगुण हैं अवगुण और अहंकार, घमंड, लालची स्वभाव ,

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गीता में, श्रीकृष्ण अर्जुन को अपनी ब्रह्मविद्या द्वारा जीवन के मार्ग के बारे में बोध करते हैं। काम (लोभ), क्रोध और लोभ को तीनों नरक द्वार कहा गया है। इन तीनों गुणों के द्वारा मनुष्य को अनिष्ट का अनुभव होता है और यह उसे सांसारिक बन्धनों में फंसा देते हैं। 

पांच तरह के विकार होते हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार।

क्रोध, लोभ, मोह, मिथ्या भाषण यह सब अवगुण हैं

©person पांच तरह के विकार होते हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार
क्रोध, लोभ, मोह, मिथ्या भाषण यह सब अवगुण हैं 
अवगुण और अहंकार, घमंड, लालची स्वभाव ,

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्

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गीत :- 
धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब...

यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान ।
भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।।
धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान ।
देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान ।
जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।।
इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान ।
नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम ।
रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।।
अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान ।
ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब.....

नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव ।
गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।।
झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव ।
धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- 
धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब...

यहीं तो जन्
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