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Vivek Dixit swatantra
कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा दिल-ए-नादाँ न धड़क ऐ दिल-ए-नादाँ न धड़क कोई ख़त ले के पड़ोसी के घर आया होगा इस गुलिस्ताँ की यही रीत है ऐ शाख़-ए-गुल तू ने जिस फूल को पाला वो पराया होगा दिल की क़िस्मत ही में लिक्खा था अंधेरा शायद वर्ना मस्जिद का दिया किस ने बुझाया होगा गुल से लिपटी हुई तितली को गिरा कर देखो आँधियो तुम ने दरख़्तों को गिराया होगा खेलने के लिए बच्चे निकल आए होंगे चाँद अब उस की गली में उतर आया होगा 'कैफ़' परदेस में मत याद करो अपना मकाँ अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा कैफ़ भोपाली ©Vivek Dixit swatantra केफ भोपाली की एक ग़ज़ल
केफ भोपाली की एक ग़ज़ल
read morekanchan Yadav
। shandar gazal । गुल जब गुलज़ार होगा गुफ्तगू को दिल बेकरार होगा खिलाखिलाती वादियां खूबसूरती से दिल बेहाल होगा रूखे हवा बदले या बदले कायनात बेकरारी का आलम राहते ए दिल मिलन के बाद होगा न पूछ हाले ए दिल कैसा मंजर और कैसा जवाब होगा तन्हाइयों से जब वो लौटेंगे झलक की बेकरारी और जलवा बेहिसाब होगा गुल जब गुलज़ार होगा गुफ्तगू को दिल बेकरार होगा*****! ©kanchan Yadav #गजलें
Mehfil-e-Mohabbat
आग का क्या है पल दो पल में लगती है बुझते बुझते एक ज़माना लगता है ©राहुल रौशन कैफ भोपाली साहब ❤️✍️
कैफ भोपाली साहब ❤️✍️
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