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Neema Pawal
इस शहर में, दीवारें ही नहीं, दिल भी पत्थर, के हो चुके हैं, कोई किसी की सुनता नहीं इंसान ही नहीं जज़्बात भी बेहरे हो चुके हैं। ©Neema Pawal #Love बहरे जज़्बात।
Love बहरे जज़्बात।
read moreविवेक ठाकुर 'शाद'
👉 ग़ज़ल - भुलाया नहीं है... 👉 काफ़िया - आया 👉 रदीफ़ - नहीं है 👉 बह्र - बहर-ए- मुतकारिब मुसम्मन सालिम 👉 वज़्न - 122/122/122/122 👉 अरकान - फ़ऊलुन फ
read moreMANJEET SINGH THAKRAL
#SachBolneKiAzadi "तुम अदालतों से बैठकर चुटकुले लिखो हम सड़कों, दीवरों पर इंसाफ लिखेंगे. बहरे भी सुन लें, इतनी जोर से बोलेंगे अंधे भी पढ़
read moreविवेक ठाकुर 'शाद'
👉 ग़ज़ल - जिंदगी यही है..... 👉 काफ़िया - आरी 👉 रदीफ़ - लगती है 👉 बह्र - बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब मुसद्दस मुज़ाफ़ 👉 वज़्न - 22 22 22 22 22 2 👉 अरकान -
read moregaTTubaba
शामें सारी बिगड़ी हुई होती हैं रंगीन मयखानों में तुमसे हो पाएगा तो हमारी शामें बदल दो बेचैन मन की ख्वाहिशें पत्थर को मूरत में देखने की हैं नजरों की ख्वाहिशें एक सूरत को देखने की कहीं जुड़ न जाएं टूटी हुईं चूड़ियां फिर से ऐसी ख्वाहिशें बदल दो कानों की चाहत गूंगे की जुबां और जुबां सुनाना चाहती हैं कहानी बहरे शख्स को अगर हैं तुम्हारे बस में तो ये चाहते बदल दो मिट्टी के घड़े में अकेले कंकड़ हम पानी की दुनियां में बेवजह फंस गए एहसान कर सकते हो कोई तो हमारी दुनिया बदल दो ©gaTTubaba #delhiearthquake शामें सारी बिगड़ी हुई होती हैं रंगीन मयखानों में तुमसे हो पाएगा तो हमारी शामें बदल दो बेचैन मन की ख्वाहिशें
#delhiearthquake शामें सारी बिगड़ी हुई होती हैं रंगीन मयखानों में तुमसे हो पाएगा तो हमारी शामें बदल दो बेचैन मन की ख्वाहिशें
read moreGruvyishere
एक सोच आयी थी आंगन तक देहलीज़ पर आकर ठहरी थी दरवाज़े से भीतर झांक रही कोई उम्मीद किरण सुनहरी थी शायद मिलना था अभिमान से मेरे घर के नए मेहमा
read moreshamawritesBebaak_शमीम अख्तर
अब बेरहम वक्त के दिलासे में नहीं आएंगे,हम मुसलमान है,ऐसे वक्त के झांसे में नहीं आएंगे//१ हम ना अंधे हैं,ना गूंगे बहरे है,पर लगते तो कुछ तेरे है,हम किसी दल के दिलासे में नहीं आएंगे//२ ऐसे वक़्त में यह गवारा हो नहीं सकता,सितम इतने किए है,के अब दोहरे खुलासे में नहीं आएंगे//३ जरा उन मकतूलो की ख़ैर ख्वाही तो पूछिए साहब, के अब हम किसी कातिल के फांसे में नहीं आएंगे//४ मुख्तसर अल्फाज में सब कसीदे लिख नहीं सकते,ये दर्दों अलम इतने सहे,के अब तेरे कासें में नहीं आएंगे//५ आपने जिस तरह की है मुसलमानो से नफरत,अबकी लगता है"शमा" वो सियासत में ढोल तासे से नहीं आएंगे//६ #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #Wochaand अब बेरहम वक्त के दिलासे में नहीं आएंगे, हम मुसलमान है,ऐसे वक्त के झांसे में नहीं आएंगे//१ हम ना अंधे हैं,ना गूंगे बहरे है,पर लगते
#Wochaand अब बेरहम वक्त के दिलासे में नहीं आएंगे, हम मुसलमान है,ऐसे वक्त के झांसे में नहीं आएंगे//१ हम ना अंधे हैं,ना गूंगे बहरे है,पर लगते
read moreविवेक ठाकुर 'शाद'
👉 ग़ज़ल - कौन अपना यहाँ है.. 👉 काफ़िया - आँ 👉 रदीफ़ - है 👉 बह्र - बहर-ए- मुतकारिब मुसम्मन सालिम 👉 वज़्न - 122/122/122/122 👉 अरकान - फ़ऊलुन फ़ऊलुन
read moreविवेक ठाकुर 'शाद'
👉 ग़ज़ल - दिखाई दे ख़ुदा... 👉 बह्र - बहरे रमल मुसद्दस् महज़ूफ़ 👉 अरकान - फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन 👉 वज़्न - 2122 2122 212 👉 काफ़िया - आई 👉 रदीफ़
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