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Frank Hasrat
Lover जो मेरी रूह मेरी जान बना बैठा है कैसी साज़िश है कि अनजान बना बैठा है #हसरत बैठा है...
बैठा है...
read moreSK NIGAM
भाइयों में कहां किसी का बैर हुई है पर जब हुई है , जहां में कहां उसकी खैर हुई है भाई तो भाई है
भाई तो भाई है
read moreSK NIGAM
भाइयों में कहां किसी का बैर हुई है पर जब हुई है , जहां में कहां उसकी खैर हुई है भाई तो भाई है
भाई तो भाई है
read moremera ahasaas
#दिल बैठा है कई ख्वाब लेकर.... कोई ना जाने कब पूरे होंगे... #दिल बैठा है....
#दिल बैठा है....
read moreDivuu.writes
मानो मुसाफिर मंजिल को जानकर बैठा है आसमां क्यों भला जमीन को हारकर बैठा है दरिया को मिल जाता अगर किनारा आसानी से तो क्यों इश्क में डूबने वाला खुद को मारकर बैठा है ©Divuu.writes #SunSet बैठा है
#SunSet बैठा है
read moreManish Mishra
hum tumhe itna pyar karenge ki log hamen yad karenge ©Manish Mishra आना है भाई और क्या है भाई
आना है भाई और क्या है भाई
read morekishan mahant
कोई समझना नहीं चाह रहा है तो उसे समझना छोड़ दो क्योंकि वो समझेगा नहीं पर तुम पर उंगली जरूर उठाएंगे तू होता कौन है ये बोलेंगे जरूर और ख़ास कर भाई भाई में ही होता है ये ©kishan mahant #भाई भाई में होता है
#भाई भाई में होता है
read moreTeekam Chand
*क्षमा* एक सेठ जी ने अपने छोटे भाई को तीन लाख रूपये व्यापार के लिये दिये। उसका व्यापार बहुत अच्छा जम गया, लेकिन उसने रूपये बड़े भाई को वापस नहीं लौटाये। आखिर दोनों में झगड़ा हो गया, झगड़ा भी इस सीमा तक बढ़ गया कि दोनों का एक दूसरे के यहाँ आना जाना बिल्कुल बंद हो गया। घृणा व द्वेष का आंतरिक संबंध अत्यंत गहरा हो गया। सेठ जी, हर समय हर संबंधी के सामने अपने छोटे भाई की निंदा-निरादर व आलोचना करने लगे। सेठ जी अच्छे साधक भी थे, लेकिन इस कारण उनकी साधना लड़खड़ाने लगी। भजन- पूजन के समय भी उन्हें छोटे भाई का चिंतन होने लगा। मानसिक व्यथा का प्रभाव तन पर भी पड़ने लगा। बेचैनी बढ़ गयी। समाधान नहीं मिल रहा था। आखिर वे एक संत के पास गये और अपनी व्यथा सुनायी। संतश्री ने कहाः- 'बेटा ! तू चिंता मत कर। ईश्वर कृपा से सब ठीक हो जायेगा। तुम कुछ फल व मिठाइयां लेकर अपने छोटे भाई के यहाँ जाना और मिलते ही उससे केवल इतना कहना, 'अनुज ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे "क्षमा" कर दो।' सेठ जी ने कहाः- "महाराज ! मैंने ही उनकी मदद की है और "क्षमा" भी मैं ही माँगू !" संतश्री ने उत्तर दियाः- "परिवार में ऐसा कोई भी संघर्ष नहीं हो सकता, जिसमें दोनों पक्षों की गलती न हो। चाहे एक पक्ष की भूल एक प्रतिशत हो दूसरे पक्ष की निन्यानवे प्रतिशत, पर भूल दोनों तरफ से होगी।" सेठ जी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसने कहाः- "महाराज ! मुझसे क्या भूल हुई ?" बेटा ! तुमने मन ही मन अपने छोटे भाई को बुरा समझा– यही है तुम्हारी पहली भूल। तुमने उसकी निंदा, आलोचना व तिरस्कार किया– यह है तुम्हारी दूसरी भूल। क्रोध पूर्ण आँखों से उसके दोषों को देखा– यह है तुम्हारी तीसरी भूल। अपने कानों से उसकी निंदा सुनी– यह है तुम्हारी चौथी भूल। तुम्हारे हृदय में छोटे भाई के प्रति क्रोध व घृणा है– यह है तुम्हारी आखिरी भूल। अपनी इन भूलों से तुमने अपने छोटे भाई को दुःख दिया है। तुम्हारा दिया दुःख ही कई गुना होकर तुम्हारे पास लौटा है। जाओ, अपनी भूलों के लिए "क्षमा" माँगों। नहीं तो तुम न चैन से जी सकोगे, न चैन से मर सकोगे। क्षमा माँगना बहुत बड़ी साधना है। ओर तुम तो एक बहुत अच्छे साधक हो।" सेठ जी की आँखें खुल गयीं। संतश्री को प्रणाम करके वे छोटे भाई के घर पहुँचे। सब लोग भोजन की तैयारी में थे। उन्होंने दरवाजा खटखटाया। दरवाजा उनके भतीजे ने खोला। सामने ताऊ जी को देखकर वह अवाक् सा रह गया और खुशी से झूमकर जोर-जोर से चिल्लाने लगाः "मम्मी ! पापा !! देखो कौन आये हैं ! ताऊ जी आये हैं, ताऊ जी आये हैं....।" माता-पिता ने दरवाजे की तरफ देखा। सोचा, 'कहीं हम सपना तो नहीं देख रहे !' छोटा भाई हर्ष से पुलकित हो उठा, 'अहा ! पन्द्रह वर्ष के बाद आज बड़े भैया घर पर आये हैं।' प्रेम से गला रूँध गया, कुछ बोल न सका। सेठ जी ने फल व मिठाइयाँ टेबल पर रखीं और दोनों हाथ जोड़कर छोटे भाई को कहाः- "भाई ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा करो ।" “क्षमा" शब्द निकलते ही उनके हृदय का प्रेम अश्रु बनकर बहने लगा। छोटा भाई उनके चरणों में गिर गया और अपनी भूल के लिए रो-रोकर क्षमा याचना करने लगा। बड़े भाई के प्रेमाश्रु छोटे भाई की पीठ पर और छोटी भाई के पश्चाताप व प्रेममिश्रित अश्रु बड़े भाई के चरणों में गिरने लगे। क्षमा व प्रेम का अथाह सागर फूट पड़ा। सब शांत, चुप, सबकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी। छोटा भाई उठ कर गया और रुपये लाकर बड़े भाई के सामने रख दिये। बडे भाई ने कहा "भाई! आज मैं इन कौड़ियों को लेने के लिए नहीं आया हूँ। मैं अपनी भूल मिटाने, अपनी साधना को सजीव बनाने और द्वेष का नाश करके प्रेम की गंगा बहाने आया हूँ । मेरा आना सफल हो गया, मेरा दुःख मिट गया। अब मुझे आनंद का एहसास हो रहा है।" छोटे भाई ने कहाः- "भैया ! जब तक आप ये रुपये नहीं लेंगे तब तक मेरे हृदय की तपन नहीं मिटेगी। कृपा करके आप ये रूपये ले लें। सेठ जी ने छोटे भाई से रूपये लिये और अपने इच्छानुसार अनुज बधू , भतीजे व भतीजी में बाँट दिये । सब कार में बैठे, घर पहुँचे। पन्द्रह वर्ष बाद उस अर्धरात्रि में जब पूरे परिवार का मिलन हुआ तो ऐसा लग रहा था कि मानो साक्षात् प्रेम ही शरीर धारण किये वहाँ पहुँच गया हो। सारा परिवार प्रेम के अथाह सागर में मस्त हो रहा था। "क्षमा" माँगने के बाद उस सेठ जी के दुःख, चिंता, तनाव, भय, निराशा रूपी मानसिक रोग जड़ से ही मिट गये और साधना सजीव हो उठी। हमें भी अपने दिल में "क्षमा" रखनी चाहिए अपने सामने छोटा हो या बड़ा, अपनी गलती हो या ना हो, क्षमा मांग लेने से सब झगड़े समाप्त हो जाते हैैं। *यदि अपने परिवार को भी टूटने से बचाना है तो जो सक्षम है, उसे बड़े भाई की भूमिका निभानी होगी।* ©Teekam Chand भाई भाई होता है #stay_home_stay_safe
भाई भाई होता है #stay_home_stay_safe
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