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Dr Amit Gupta
दरवाज़ों से न दीवारों से , घर बनता है घर वालों से। बड़ा कोई घर बनाएगा,पैसे भी खूब लगाएगा। फिर घर मे खुद न रहने आएगा घर भर जाएगा मकड़ी के जालों से, दरवाज़ों से न दीवारों से , घर बनता है घर वालों से। घर में अब कोई न होता है,न दादी है न पोता है घर अपने नैन भिगोता है,भीतर भीतर ही रोता है। घर खिलता है दिलवालों से, दरवाज़ों से न दीवारों से , घर बनता है घर वालों से। घर में एक बड़ी छत है, बस उससे घर की हिफाज़त है घर में ही सब रियायत है, ये घर ही एक सियासत है। ये घर भी बचा है तालों से , दरवाज़ों से न दीवारों से , घर बनता है घर वालों से। ©Dr Amit Gupta #home
Schizology
Going home A surefire Way to go It's been too much And I can't unload Going down A lonely road I've lost all hope And I'm going home ©Schizology Going home #Home #poem✍🧡🧡💛 poetry in english
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