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Rishika Srivastava "Rishnit"
अक़ीदत-ए-कल्ब करने वाला ग़म-गुसार चाहिए.. दरमियाँ-ए- गुल मंडराने वाले भवरें तो हज़ार देखें इन फूलों के बीच..!! ©Rishika Srivastava "Rishnit" अक़ीदत-ए-कल्ब = दिल का भरोसा ग़म -गुसार= हमदर्द दरमियाँ-ए-गुल = फूलों के बीच #girl #Rishika #Rishnit #3:40pm
Baljit Singh
Fuck off nojoto
White गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले , क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले , बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही तुम्हारे नाम पे आएँगे ग़म-गुसार चले ... ©꧁ARSHU꧂ارشد गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले , क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले , क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-
read moreSmvedita
तेरी फ़ुरक़त में तेरे ग़म गुसारों को न नींद आई। ज़माना सो गया पर ग़म के मारो को न नींद आई।। हमारी आह, का नारा फलक से जाके टकराया। न सोए चां
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तेरी फ़ुरक़त में तेरे ग़म गुसारों को न नींद आई। ज़माना सो गया पर ग़म के मारो को न नींद आई।। हमारी आह, का नारा फलक से जाके टकराया। न सोए चांद औ सूरज सितारों को न नींद आई।। किनारे बैठे थे जाकर भरा अश्कों का था गागर। समंदर रात भर तड़पा किनारों को नींद आई।। हुआ एक रात को मेरा गुज़र गोर-ए-ग़रीबाँ में। तड़पने पर मेरे आहल-ए-मज़ारों को न नींद आई।। मेरा रोना ए है 'सायबा' जहां पहुंचे वहीं रोए। वहां के रहने वाले जानदारों को न नींद आई।। ©संवेदिता "सायबा" तेरी फ़ुरक़त में तेरे ग़म गुसारों को न नींद आई। ज़माना सो गया पर ग़म के मारो को न नींद आई।। हमारी आह, का नारा फलक से जाके टकराया। न सोए चा
तेरी फ़ुरक़त में तेरे ग़म गुसारों को न नींद आई। ज़माना सो गया पर ग़म के मारो को न नींद आई।। हमारी आह, का नारा फलक से जाके टकराया। न सोए चा
read moreNisheeth pandey
शीर्षक-शज़र 🥦🥦🥦🥦🥦🥦 वो बचपन वो निल गगन वो अज़ीम बरामदा मेरा वो अज़ीम शज़र की साख में रस्सी बंधा वो बचपन की चहचहाट वो शाम का लाड़ वो झूलो की मस्ती वो शज़र का दुलार वो ठंडी छाव वो चिड़ियों के बसेरे वो फल फूलों से मँहकना मुहल्ला का मेरे याद जब आए तो दिल हो जाये मुनव्वुर अब यादें बस यादें आखों में ग़म-गुसार वो बरामदा वो शज़र की निशानियां भी मिटे सारे अब वो चंचलता वो खिलखिलाहट वो खुशियाँ रूठे सारे वो शज़र की छांव जैसे माँ की आँचल की छांव अब वो शज़र नहीं लगता यूँ उठ गया मां का प्यार #निशीथ ©Nisheeth pandey #Shajar वो बचपन वो निल गगन वो अज़ीम बरामदा मेरा वो अज़ीम शज़र की साख में रस्सी बंधा वो बचपन की चहचहाट वो शाम का लाड़ वो झूलो की मस्ती वो श
#Shajar वो बचपन वो निल गगन वो अज़ीम बरामदा मेरा वो अज़ीम शज़र की साख में रस्सी बंधा वो बचपन की चहचहाट वो शाम का लाड़ वो झूलो की मस्ती वो श
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