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Aparna Pathak
प्रकृति की गोद में Jab bhi baithti hun teri aagosh mein utna hi khud ko kareeb pati hun bahti hui hawaon ke sath tumme kahin kho jati hun badte rahna jeevan mein chahe jitna bhi aayen badayen ye sabak bhi to tumhi sikhati ho kabhi aag banake tapana Suraj ki tarah chamakna apno ke hi hi sayen mein tum chand ki chadni banana parvat ki tarah datkar tum har kathnaion se ladna chahe aaye jitne bhi vighn har roj taron ki tarah chmakna tumne hi to bataya is jeevan ka kya hain mol virkshon ki chaya ho tum virksho ke phal -phool Jab bhi baithi hun teri aagosh mein utna hi khud ko kareeb pati hun ©Aparna Pathak #prakritikegod
S Priyadarshini
प्रकृति की गोद में Prakriti ki god me shukun hai kitna dekh to, shudh hawa hai Hariyali hai ek baar tu jhak to, kal kal bahti nadiya sheetal kar iska ehsaas to, nihswart diya hai sab kuch ab v isko maan to, oxygen bin log mar rahe oxygen ki kimat bhar rahe, prakriti ne sab muft diya hai iski ahamiyat pahchan to. 🙏 ©S Priyadarshini bhatt #prakritikigodme #AdhureVakya
Chiranjiv
प्रकृति पर कविता – लाली है, हरियाली है लाली है, हरियाली है, रूप बहारो वाली यह प्रकृति, मुझको जग से प्यारी है। हरे-भरे वन उपवन, बहती झील, नदिया, मन को करती है मन मोहित। प्रकृति फल, फूल, जल, हवा, सब कुछ न्योछावर करती, ऐसे जैसे मां हो हमारी। हर पल रंग बदल कर मन बहलाती, ठंडी पवन चला कर हमे सुलाती, बेचैन होती है तो उग्र हो जाती। कहीं सूखा ले आती, तो कहीं बाढ़, कभी सुनामी, तो कभी भूकंप ले आती, इस तरह अपनी नाराजगी जताती। सहेज लो इस प्रकृति को कहीं गुम ना हो जाए, हरी-भरी छटा, ठंडी हवा और अमृत सा जल, कर लो अब थोड़ा सा मन प्रकृति को बचाने का। ©Chiranjiv prakritik a Sundar hai
prakritik a Sundar hai
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रह रहकर टूटता रब का कहर रह रहकर टूटता रब का कहर खंडहरों में तब्दील होते शहर सिहर उठता है बदन देख आतंक की लहर आघात से पहली उबरे नहीं तभी होता प्रहार ठहर ठहर कैसी उसकी लीला है ये कैसा उमड़ा प्रकति का क्रोध विनाश लीला कर क्यों झुंझलाकर करे प्रकट रोष अपराधी जब अपराध करे सजा फिर उसकी सबको क्यों मिले पापी बैठे दरबारों में जनमानष को पीड़ा का इनाम मिले हुआ अत्याचार अविरल इस जगत जननी पर पहर – पहर कितना सहती, रखती संयम आवरण पर निश दिन पड़ता जहर हुई जो प्रकति संग छेड़छाड़ उसका पुरस्कार हमको पाना होगा लेकर सीख आपदाओ से अब तो दुनिया को संभल जाना होगा कर क्षमायाचना धरा से पश्चाताप की उठानी होगी लहर शायद कर सके हर्षित जगपालक को, रोक सके जो वो कहर बहुत हो चुकी अब तबाही बहुत उजड़े घरबार,शहर कुछ तो करम करो ऐ ईश अब न ढहाओ तुम कहर !! अब न ढहाओ तुम कहर !! ©Chiranjiv #Butterfly prakritik ka kehar
#Butterfly prakritik ka kehar
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