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aditi the writer
White भाई दूज का पर्व है आया, खुशियों का संदेश है लाया। भाई-बहन के प्रेम का, यह दिन पावन और सच्चा। दीप जलें, हो रौशनी छाई, बहन की आंखों में चमक आई। तिलक करे, आरती उतारे, स्नेह से भरी उसकी प्यारी बलिहारी। भाई देता वचन निभाने का, सदा रक्षा करने का। जीवन के हर मोड़ पर, साथ निभाने का। प्यार का यह अनमोल नाता, हर दिल में बस जाए। भाई दूज के इस पर्व से, संबंध और मजबूत हो जाए। स्नेह, श्रद्धा और अपनापन, इस त्योहार की पहचान। भाई-बहन के इस रिश्ते को, शत शत नमन, प्यार और सम्मान। ©aditi the writer #Sad_Status Da "Divya Tyagi" Niaz (Harf) vineetapanchal आगाज़
#Sad_Status Da "Divya Tyagi" Niaz (Harf) vineetapanchal आगाज़
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White वक्त गुजर जाने दो एहसास बाहर आने दो दूरियां नजदीकियों में बदल जाएंगी बस अपना वक्त आने दो ©aditi the writer #sad_dp आगाज़ vineetapanchal Da "Divya Tyagi" @it's_ficklymoonlight shraddha.meera
#sad_dp आगाज़ vineetapanchal Da "Divya Tyagi" @it's_ficklymoonlight shraddha.meera
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White पाश्चात्य के रंग चढ़े इस कदर, भूल रहे अपनी जड़ें, अपना सफर। जहाँ थे मंत्र, श्लोक, हमारी पहचान, अब बदल रहा है सबका ही मान। जींस, टी-शर्ट में लिपटी है जवानी, भूल गए धोती, साड़ी की कहानी। फास्ट फूड की थाली में स्वाद नया, पर खो गया मां के हाथों का छौंका हुआ। त्योहार अब बन गए बस एक रीत, कब छूट गई उनमें वो दिल की प्रीत? दिवाली की दियों की जगह ले ली रौशनी ने, होली की खुशबू को बदल दिया केमिकल ने। संस्कार, संस्कार अब बस नाम के, पश्चिमी हवाओं में बहते हैं हम आम के। अंग्रेज़ी में लिपटी हर एक बातचीत, हिंदी और मातृभाषा कहीं खो गई प्रीत। वो भी ज़रूरी है, प्रगति की राह, पर अपनी संस्कृति क्यों छोड़ें ये चाह? पाश्चात्य से सीखें, पर भूलें न अपनी धरोहर, क्योंकि वही है हमारी पहचान का आधार। आओ मिलकर चलें इस नये दौर में, अपनी संस्कृति को रखें हम अपने गौरव में। पश्चिम की चमक में खो न जाएं, अपनी धरोहर को दिल से सजाएं। ©aditi the writer #sanskriti Niaz (Harf) vineetapanchal आगाज़ shraddha.meera Da "Divya Tyagi"
#sanskriti Niaz (Harf) vineetapanchal आगाज़ shraddha.meera Da "Divya Tyagi"
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**नज़र एक बांदी** नज़र एक बांदी सी बँधी इस दुनिया के मायाजाल में, हर रंग में उलझी हुई हर सपने के जाल में। बाधाओं की बेड़ियों में सपनों का बंधन तंग हुआ, देखने की चाह में वो हर बार दबंग हुआ। कभी उम्मीदों की किरणों में चमकती वो दूर दूर तक, कभी निराशा के सायों में सिमटती वो दूर दूर तक। पर वो नज़र फिर भी बांधी रही इस दुनिया की छल-कपट में, ख्वाबों के टुकड़े बटोरती अपनी ही उलझनों की छटपट में। सच की रोशनी से जब वो आजाद होकर आई, तब जाकर उसे एहसास हुआ कि ये दुनिया सिर्फ परछाई। नज़र अब ना बांदी रही वो अब आसमान को देखे, खुद की हकीकत पहचान कर नए सफर की रौशनी खेले। अदिति जैन ©aditi the writer #नजर @it's_ficklymoonlight vineetapanchal आगाज़ shraddha.meera Da "Divya Tyagi"
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