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करम गोरखपुरिया
@shyarz_dil_se ©कर्म भक्त कवि [आशीष मिश्रा] कि रश्क आने लगा अपनी बे-कमाली(अकुशलता) पर कमाल ऐसे भी अहल-ए-कमाल(प्रबुद्ध लोग) के देखे “रूही कंजाही” Dipa poonamsingh_8898 Satyam Mishra Pri
कि रश्क आने लगा अपनी बे-कमाली(अकुशलता) पर कमाल ऐसे भी अहल-ए-कमाल(प्रबुद्ध लोग) के देखे “रूही कंजाही” Dipa poonamsingh_8898 Satyam Mishra Pri
read morevishnu prabhakar singh
प्रवास समाज का अभिन्न व्यवहारिक अंग बन चुका है।इसका विकास मजदूर ढूंढ रहा है।अकुशल मजदूर की विशेष मांग है। अर्थात, अकुशल मजदूर का स्वर्ण युग! सुदूर गांव से मजदूर पैसे के आशा में प्रवास करते हुए जब निकट राजधानी पहुंचता है, तब वो थोड़ा ठहर के अपने ग्रामीण मजदूर भाई से पूछता है, अपना गांव राजधानी कब बनेगा? उत्तर पाता है, जब विकास होगा। एकाकी अवस्था में विश्वस्त हो वो फिर इतना ही बोल पाता है कि, फिर तो बहुत देर लगेगा? उत्तर पाता है, हाँ!हमलोग नहीं देख पाएंगे। उत्तर पा कर मजदूर का दर्शन शीघ्र दैनिक हो जाता है। वो कहता है, मेरी बला से! कुछ पैसे का दरकार हैं।इस बार कमा कर जायेंगे तो वापस नहीं आयेंगे।वहीं पर कुछ करेंगे। पुनःउत्तर ही पाता है, हाँ! मेरा भी मन अब यहां नहीं लगता, इतनी दूर अब नहीं आयेंगे।पर क्या करें, लाचारी में हमलोग अकुशल रह गये। प्रवास समाज का अभिन्न व्यवहारिक अंग बन चुका है।इसका विकास मजदूर ढूंढ रहा है।अकुशल मजदूर की विशेष मांग है। अर्थात, अकुशल मजदूर का स्वर्ण युग
प्रवास समाज का अभिन्न व्यवहारिक अंग बन चुका है।इसका विकास मजदूर ढूंढ रहा है।अकुशल मजदूर की विशेष मांग है। अर्थात, अकुशल मजदूर का स्वर्ण युग
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ख्वाबों के शहर में विशेषता है चकाचोंध व्यवस्था है अपार यह है व्यपार का बाज़ार तेज होती,मंद पड़ती रसायनिक धुंध से तंज कसती यातायात का यहाँ तीव्रता स्वीकार अकुशल वेतन भोगियों से असक्षम व्यवहार प्रतियोगिता में चरित्र का चित्र बेचते लाचार माँग पर अनुसंधान करते उपकार इतनी स्वतंत्रता कोई कैसे करे अस्वीकार दौड़ लगाते आधिकारिक वाणिज्य संस्थान बारम्बार कोई तालमेल नहीं व्यपार के द्वार सुविधा का यहाँ सादर सत्कार फले फुले ख्वाब,एक से हजार अभी सफलता का चरम इसे ही मानती सरकार देश,दुनियां की यही गति चकाचोंध प्रथम दृष्टा! बच्चा-बच्चा जानता है,जो दिखता है,वही बिकता है! ख्वाबों के शहर में विशेषता है चकाचोंध व्यवस्था है अपार यह है व्यपार का बाज़ार
बच्चा-बच्चा जानता है,जो दिखता है,वही बिकता है! ख्वाबों के शहर में विशेषता है चकाचोंध व्यवस्था है अपार यह है व्यपार का बाज़ार
read moreमेरी आपबीती
गरीबी ©आराधना (अनुशीर्षक जरूर पढ़ें ) हम सब जानते है कि विकासशील देशों में बहुत ग़रीबी होती है ,रोजमर्रा की तरह बाजार गई थी तब ये दृश्य देख मेरा हृदय द्रवित हो उठा , अपना सब कुछ
हम सब जानते है कि विकासशील देशों में बहुत ग़रीबी होती है ,रोजमर्रा की तरह बाजार गई थी तब ये दृश्य देख मेरा हृदय द्रवित हो उठा , अपना सब कुछ
read moreJyotshna Rani Sahoo
अथक दौड़ // In caption// उसे जीतना था खुद से वो भागता गया भागता गया मैदान में अकेला कौन भागता तब हारा जब अकेला खेला। वो आया मैदान पर दौड़ा सबके साथ वो लोग आगे
उसे जीतना था खुद से वो भागता गया भागता गया मैदान में अकेला कौन भागता तब हारा जब अकेला खेला। वो आया मैदान पर दौड़ा सबके साथ वो लोग आगे
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