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prajjval
राजनीति बसती हो जिनके दिलों में यँहा। उनके दिलों में अच्छे काम नही बसते। बसता है मोह लोभ कुर्सी पे जमने का। उनमें कभी भी ईमान नही बसते। धर्म जाती रंग रूप सब खेल खेलते हैं। दिल से कभी भी पुण्य कर्म नही बसते। कहते हैं कि खुद को जो राम जी का भक्त यँहा। उनके दिलों में श्री राम नही बसते। #NojotoQuote #छंद छंद
#छंद छंद
read moreGunjan Agarwal
शंका जैसे रोग का, न कोई समाधान। चिकित्सक सब हार गए, वैद्य और लुक़मान। वैद्य और लुक़मान, घोटकर नितदिन घुट्टी। खतरनाक यह रोग, करे रिश्तों की छुट्टी। "अनहद" देता पीर, बजाए बिन ही डंका। रिश्ते करता ढेर, करे जो अक्सर शंका। -अनहद गुंजन #छंद
vishnu thore
#DearZindagi पिवळ्या उन्हात पिवळी धामीन फुलांचा वाऱ्यावं गंध केवढी जीवाची जीवाला असोशी जडला रानाचा छंद - विष्णू छंद.......
छंद.......
read moreDr A K Soni "Maulik"
=:कुण्डलिया:= लिखने वाले लिख रहे, अल्प लिखें या ढेर । मिलती मंज़िल है यहाँ, चाहे देर अबेर ।। चाहे देर अबेर, भरे है सबकी झोली । कौन सवाया सेर, बंद मुट्ठी जो खोली ।। कह"मौलिक"कविराय, हटा दो मन के जाले, बड़े़ वजन के शे'र, लिख रहे लिखने वाले ।। 🌹🌹 डाॅ. ए के सोनी *"मौलिक "* नरसिंहपुर (करेली) ©Dr A K Soni "Maulik" #छंद
सतीश तिवारी 'सरस'
तीन कुण्डलिया छंद (1) मन की कविता कीजिये,मन से भी कुछ आप. नींद न आये जब करें,राम नाम का जाप. राम नाम का जाप,प्रेम से कहें जानकी. जय लछिमन महाराज,करें रक्षा जो प्रान की. कह सतीश कविराय,जीत होवे जीवन की. करिये कविता आप,बैठकर कुछ तो मन की. (2) जो मन से लाचार हैं,लिख नइँ सकते गीत। लिखने के हित चाहिये,सद्भावों से प्रीत।। सद्भावों से प्रीत,साथ में बल समता का। भूल घृणा का भाव,चाहिये सँग ममता का।। कह सतीश कविराय,गूढ़ रिश्ता जीवन से। लिख सकता वह गीत,सबल होवे जो मन से।। (3) राखी के इस पर्व पर,सबको नम्र प्रणाम। महादेव रक्षा करें,रहें कृपारत् राम। रहें कृपारत् राम,नाम सब खूब कमायें। भरा रहे धनधान्य,ज़िन्दगी में सुख पायें।। कह सतीश कविराय,प्रफुल्लित हो मन-पाँखी। भ्रात रहे खुशहाल,सफल भगिनी की राखी।। *सतीश तिवारी 'सरस',नरसिंहपुर (म.प्र.) ©सतीश तिवारी 'सरस' #छंद
कवी - के. गणेश
छंदापाई वेडं होणे प्रत्येकाला जमत नाही.. ज्यांना ते जमतं त्यांना माणसामध्ये गमत नाही..! @kganesh छंद
छंद
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देश मेरा रोज़ रोज़ जलता हो सड़को पे। प्यार वाली बात कैसे कविता में लिख दुँ। संस्कार जी रहा हूँ माँ ने जो सिखाया मुझे। फिर कैसे दोगली मैं यँहा लिख दुँ। बेंडिया स्वीकार मुझे दंड भी स्वीकार सभी। चाटुकारिता से भरे गीत कैसे लिख दुँ। शारदे ने दिया है जो कलम में मान मुझे। राजनीतियों के यँहा गान कैसे लिख दुँ #NojotoQuote छंद
छंद
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