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Aurangzeb Khan
एक मैं ही नहीं जो तन्हा सफर करता हूं ऐ औरंगज़ेब मैंने उसे पपीहे को भी खुश देखा है जिसका कोई हमसफ़र ही नहीं ©Aurangzeb Khan #तन्हाई#मेरी
Reetu Yadav
मेरी कमियों को दूर करने में में जो मेरे साझेदार नही, मेरे स्वच्छ व्यक्तित्व और निर्मल व्यवहार के वे हकदार नहीं। राधे राधे। ©Reetu Yadav मेरी कमियों को दूर करने में में जो मेरे साझेदार नही, मेरे स्वच्छ व्यक्तित्व और निर्मल व्यवहार के वे हकदार नहीं।
मेरी कमियों को दूर करने में में जो मेरे साझेदार नही, मेरे स्वच्छ व्यक्तित्व और निर्मल व्यवहार के वे हकदार नहीं।
read moreFAKIR SAAB(ek fakir)
तन्हाई है वीराना है खामोशी है सन्नाटा है ये बस्ती उजड़ चुकी है अब यहां कौन आता जाता है ©FAKIR SAAB(ek fakir) #Couple तन्हाई
#Couple तन्हाई
read moreBrsolanki
White दरमियान तो हरदम रहे करीब रहे ना सके। सैलाब था दिल में लब्ज़ कुछ कहे ना सके। आज भी रूहमें मौजूदगी चांद सी रोशन है, हासिल रहे हर लम्हा,तुम हमे ढूंढ ना सके । अंदर ही अंदर जलाती रही तन्हाई की आग, आए गए बारिशोंके कई मौसम बुज ना सके। ©Brsolanki #तन्हाई
Rudradeep
White सच्चाइयों से मुंह मोड़ना गवारा नहीं है हमें जीने के लिए फिर भी बहाना सीखा है जिस महफ़िल में मिलती हैं सदा तन्हाईयां उस महफ़िल से भी दिल को लगाना सीखा है ©Rudradeep #महफिल #हम #तन्हाई
Mahesh Chekhaliya
White मेरी जिंदगी में तुम हमेशा रहोगे। चा हे प्यार बनकर या दर्द बनकर... ©Mahesh Chekhaliya #sad_quotes मेरी जिंदगी में तुम हमेशा रहोगे।
#sad_quotes मेरी जिंदगी में तुम हमेशा रहोगे।
read moreComrade PREM
White मैं और मेरी अनिश्चितता हम और कोई नही जानता कब क्या होगा ? क्या खोया क्या पाया ये सब समय के गर्भ में छिपा होता है । हम हमेशा अपने विश्वास के बल पर निश्चिता पर बल देते है क्या बो जल्दबाजी नही है क्या वो बड़बोलापन नही अपने कर्मो के साथ ? हम हमेशा अनुभव हीन रास्तों के राहगीर होते है । ©prem yadav #sad_shayari मैं और मेरी अनिश्चिता
#sad_shayari मैं और मेरी अनिश्चिता
read moreShashi Bhushan Mishra
White महफ़िल में भी मिली अकेली तन्हाई, गम के पन्ने पलट रही थी रुस्वाई, गिरा ताड़ से अटका किसी खजूरे पर, बेचारे ने कैसी है किस्मत पाई, बैठ गया खालीपन उसके जाने से, कभी नहीं हो सकती जिसकी भरपाई, बिन बरसे ही सावन घर को लौट गया, मन के अंदर ख़्वाहिश लेती अंगड़ाई, दिन ढ़लने को आतुर मेरे आंगन का, लगी छुड़ाने पीछा अपनी परछाई, आम आदमी की थाली से गायब है, कोर-कसर पूरा कर देती महंगाई, पैसों से तक़दीर की टोपी मिल जाती, दूर सिसकती बैठी मिलती तरुणाई, दिल की बात सुनाऊँ मैं किससे गुंजन, आहत करती मन को यादें दुखदाई, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra #मिली अकेली तन्हाई#
#मिली अकेली तन्हाई#
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