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BANDHETIYA OFFICIAL
सीने में दिल, दिल में धड़कन, जाहिर बाहर हो वो जीवन, भुल न पायेगा रक्त -स्पंदन , जीवन है जबतक क्षण - क्षण। ©BANDHETIYA OFFICIAL #स्पंदन रक्त का!
#स्पंदन रक्त का!
read moreAmit Singhal "Aseemit"
मेरे हृदय के स्पंदन से निकलता है, केवल तुम्हारा ही नाम, मुझे जीवित रखना तो एक बहाना है, इसका यही है असली काम। ©Amit Singhal "Aseemit" #मेरे #हृदय #के #स्पंदन #से
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क्या सुन सकती है तू मेरा हृदय स्पंदन! क्या तुझे भी होती है तेरे तन में कंपन! ग़र तेरी रूह भी है मेरी रूह से संलग्न, क्यों घेर लेता है तुझे विस्मृतियों का घन! मैंने कर दिया अपना सर्वस्व तुझे अर्पण, तेरी इत्र से महक उठता है मेरा हर कण। #collabwithतन्हा_रातें #एक_गुलनार #yqdidi #yqbaba #स्पंदन #tanharaatein_erotica #ekgulnaar_lovequotes Collaborating with Tanha Raatein
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read moreDivyanshu Pathak
आज सम्पूर्ण विश्व महिला दिवस मना रहा है। महिला को पुरूष से अलग करके देखे जाने का उत्सव है। महिलाएं सशक्तीकरण की मांग किससे कर रही हैं ? पुरूष से ही तो? उसको अलग करके शक्तिकिसकी बनना है? पुरूष की तरह क्या महिला भी अर्द्धनारीश्वर नहीं है? क्या मानव की मादा का नाम महिला है? 💕😊#सुप्रभातम💕😊 : किस प्राणी के मादा नहीं होती? महिला की तो पहले ही शक्ति संज्ञा है। चूंकि वह नारीत्व के इस शक्ति स्वरूप को भूल बैठी, प्रकृति की इस मार को सहन नहीं कर पा रही है। वह अपने भीतर की स्त्री को भूल बैठी। शिक्षा ने उसे शरीर और बुद्धि तक ही ठहरा दिया है।
💕😊सुप्रभातम💕😊 : किस प्राणी के मादा नहीं होती? महिला की तो पहले ही शक्ति संज्ञा है। चूंकि वह नारीत्व के इस शक्ति स्वरूप को भूल बैठी, प्रकृति की इस मार को सहन नहीं कर पा रही है। वह अपने भीतर की स्त्री को भूल बैठी। शिक्षा ने उसे शरीर और बुद्धि तक ही ठहरा दिया है।
read moreDivyanshu Pathak
जीवन का निर्माण होता है मन के स्पन्दनों से। रिश्ते बनते-बिगड़ते हैं स्पन्दनों से। रूपान्तरण होता है स्पन्दनों से। क्योंकि इस सृष्टि के निर्माण का आधार “नाद” है। नाद के स्पन्दन है। स्पन्दन का कारक है भाषा। भाषा के स्पन्दन दोनों ओर प्रभावशाली होते हैं- कहने वाले पर ग्रहणकर्ता पर। 💕🌷#good noon 🤓💕 : पवित्र तथा सद्भाव युक्त स्पन्दन दोनों के जीवन में सुगंध भर देते हैं। वातावरण में हवा के साथ साथ सौरभ फैलती है। भावों में गहनता बढ़ती है। मन विस्तार पाता है।
💕🌷good noon 🤓💕 : पवित्र तथा सद्भाव युक्त स्पन्दन दोनों के जीवन में सुगंध भर देते हैं। वातावरण में हवा के साथ साथ सौरभ फैलती है। भावों में गहनता बढ़ती है। मन विस्तार पाता है।
read moreDivyanshu Pathak
सुनो..... मिलन की खुशी बता देती है बिछोह का दर्द छलक पड़ते हैं आंसू आंख से पिघल जाता है मन बर्फ जैसे, ठहर जाते हैं शब्द मूर्ति बनकर पीता रहता है आदमी चेहरे को मन ही मन तृप्त भाव से। 💕🤓🍫#Good night😊💕☕🌼🌸🤓☕☕🌸☕ गंगा स्नान कुंभ स्नान कार्तिक स्नान सब पड़ गए थे
💕🤓🍫Good night😊💕☕🌼🌸🤓☕☕🌸☕ गंगा स्नान कुंभ स्नान कार्तिक स्नान सब पड़ गए थे
read moreDivyanshu Pathak
मंदिर ---03 कर्ता भाव के यथार्थ को जान पाना ही मूल भाव है। तभी आस्था के साथ अन्य शक्ति को स्वीकार किया जा सकता है जो स्वयं से अघिक शक्तिमान हो। समय के साथ उसी श्रद्धा के कारण आत्म साक्षात्कार होता है। कर्ता स्पष्ट होता है। कर्ता की प्रतिष्ठा के कारण मन मन्दिर हो जाता है। व्यक्ति को अपनी जीव रूप यात्रा का आभास होने लग जाता है कौनसा शरीर छोड़ा होगा कैसे माता के गर्भ से गुजरता हुआ इस देह में जी रहा है। पहले कितनी माताओं की देहों में से गुजर चुका होगा। Ramroop ji मैं मंदिर मन को ही मानता हूं इसलिए निर्माण के लिए उठापटक करते ठेकेदारों से कोई वास्ता नही और न ही दलित शोषितों से कोई कुंठा ।मैंने तो सर्वाधिक उसी वर्ग को मंदिरों की चौखट नापते देखा है । बालाजी,कैलादेवी, खाटू जी ,या वृंदावन, कहीं पर भी कोई रोक नही हां गांव में वो लोग अपनी मर्जी से ही यह कुंठा पाल बैठे है कि कोई उनको पूजा नहीं करने देगा तो यह भृम है क्योंकि इसके लिए "शबरी भाव" अपनाना होगा तब सामान्य वर्ग ब्राह्मण तो क्या भगवान भी भेद नही कर पाएंगे ।🤓😁😁😁🌹🙏🙏💕☕😀खैर मंदिर के लिए मेरे भाव
Ramroop ji मैं मंदिर मन को ही मानता हूं इसलिए निर्माण के लिए उठापटक करते ठेकेदारों से कोई वास्ता नही और न ही दलित शोषितों से कोई कुंठा ।मैंने तो सर्वाधिक उसी वर्ग को मंदिरों की चौखट नापते देखा है । बालाजी,कैलादेवी, खाटू जी ,या वृंदावन, कहीं पर भी कोई रोक नही हां गांव में वो लोग अपनी मर्जी से ही यह कुंठा पाल बैठे है कि कोई उनको पूजा नहीं करने देगा तो यह भृम है क्योंकि इसके लिए "शबरी भाव" अपनाना होगा तब सामान्य वर्ग ब्राह्मण तो क्या भगवान भी भेद नही कर पाएंगे ।🤓😁😁😁🌹🙏🙏💕☕😀खैर मंदिर के लिए मेरे भाव
read moreDivyanshu Pathak
मंदिर 02 प्रेम पथ के यात्री को क्रोध विक्षिप्त कर डालता है। क्योंकि प्रेम अहंकार शून्य स्थिति में संभव है। क्रोध अहंकार का पर्याय है। प्रेम ह्वदय मे रहता है,अहंकार बुद्धि में। स्वभाव से दोनों ही विरोधाभासी हैं। प्रेम में व्यक्ति स्वयं को कभी नहीं देखता। प्रेमी के आगे स्वयं लीन हो जाता है। जैसे मन्दिर में ईश्वर के आगे समर्पित होकर चित्त में उसको स्थिर कर लेता है। यही तो प्रेम की परिभाषा है। वहां कभी दो नहीं रहते। सही अर्थो में तो कर्म का कर्ता भी व्यक्ति नहीं होता। जब कामना तथा कामना पूर्ति का निर्णय दोनों ही व्यक्ति के हाथ में नहीं हैं,तब उसका कर्ता भाव तो पीछे छूट चुका होता है। फल उसके हाथ में होता ही नहीं है। कामना का केन्द्र मन है। मन चाहे तो कामना प्राण के साथ जुड़कर वाक् (सृष्टि) का निर्माण करता है। चाहे तो विज्ञानमय चेतना का सहारा लेकर शान्त्यानन्द में लीन हो जाता है। किसी व्यक्ति को देखते ही मन में क्रोध का भाव जाग्रत हुआ,तब इसका कारण उसका कोई कर्म तो नहीं है। उसने कुछ किया ही नहीं है। बस,उसे दे
सही अर्थो में तो कर्म का कर्ता भी व्यक्ति नहीं होता। जब कामना तथा कामना पूर्ति का निर्णय दोनों ही व्यक्ति के हाथ में नहीं हैं,तब उसका कर्ता भाव तो पीछे छूट चुका होता है। फल उसके हाथ में होता ही नहीं है। कामना का केन्द्र मन है। मन चाहे तो कामना प्राण के साथ जुड़कर वाक् (सृष्टि) का निर्माण करता है। चाहे तो विज्ञानमय चेतना का सहारा लेकर शान्त्यानन्द में लीन हो जाता है। किसी व्यक्ति को देखते ही मन में क्रोध का भाव जाग्रत हुआ,तब इसका कारण उसका कोई कर्म तो नहीं है। उसने कुछ किया ही नहीं है। बस,उसे दे
read moreDivyanshu Pathak
विवेकवान व्यक्ति अपने स्वरूप एवं क्षमताओं को समझता है। उसकी आंख सामने वाले व्यक्ति पर नहीं होती। अपने मन के दर्पण पर होती है। मन कहेगा कि ‘प्रारब्धजन्य इस परिस्थिति को मौन रहकर टाल जाओ। अभी तक तुमने भी कुछ ऎसा नहीं किया कि उसका क्रोध जाग्रत हो। वह भी तो प्रारब्ध के कारण ही आपके सामने आया है। 🌹🤓#good morning🤓🌹#Ramroop ji आपका बहुत बहुत आभार आपकी मंदिर वाली पोस्ट पर आपको मेरी प्रतिक्रिया की कुछ ज़्यादा ही उम्मीद लगी यह जानकर मुझे बहुत हर्ष हुआ इसलिए मेरे अर्जित ज्ञान का एक अंश "मंदिर" आपके साथ साझा करता हूँ ।आशा करता हूँ समाजिक संस्कारों से जुड़े मेरे इस संकलित ज्ञान स्तंभ को आप पढ़ेंगे । :🙏🌹🙏🌹🤓☕🙏💕🌹 बोलचाल की भाषा में छोटी मात्राओं का उच्चारण नहीं किया जाता। मन्दिर शब्द का उच्चारण मन्दर=मन+अन्दर हो जाता है। इसके दोनों अर्थ किए जा सकते हैं- मन जिसके अन्दर तथा मन के अन्दर। मन को मन्दिर भी
🌹🤓good morning🤓🌹Ramroop ji आपका बहुत बहुत आभार आपकी मंदिर वाली पोस्ट पर आपको मेरी प्रतिक्रिया की कुछ ज़्यादा ही उम्मीद लगी यह जानकर मुझे बहुत हर्ष हुआ इसलिए मेरे अर्जित ज्ञान का एक अंश "मंदिर" आपके साथ साझा करता हूँ ।आशा करता हूँ समाजिक संस्कारों से जुड़े मेरे इस संकलित ज्ञान स्तंभ को आप पढ़ेंगे । :🙏🌹🙏🌹🤓☕🙏💕🌹 बोलचाल की भाषा में छोटी मात्राओं का उच्चारण नहीं किया जाता। मन्दिर शब्द का उच्चारण मन्दर=मन+अन्दर हो जाता है। इसके दोनों अर्थ किए जा सकते हैं- मन जिसके अन्दर तथा मन के अन्दर। मन को मन्दिर भी
read moreDivyanshu Pathak
जो कुछ शब्द बोले जाते हैं, उनके स्पन्दन पहले शरीर को, रक्त को,श्वास को,विचारों भावों आदि को प्रभावित करते हैं। अर्थात हमारे अन्नमय, प्राणमय तथा मनोमय कोश स्पन्दित होते हैं। अलग-अलग इन्द्रियों पर इनका भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ता है। भीतर में हमारी भावनाओं या नीयत का असर अघिक होता है। 🌹💠#good evening💠🌹 आप शान्त स्वर में बात करके प्रभाव देखिए। आप आवेश तथा आवेग में बात करके प्रभाव देखिए। शान्त स्वर में माधुर्य भी आपको दिखाई देगा, जो आवेश में खो जाएगा। आवेश भरे शब्द स्वयं का तथा सुनने वाले का भी अहित करते हैं । इसी प्रकार सत्य बोलने वाला भी सहज रूप में बात करता है। हां, मत प्रकट करने वाला अलग हो सकता है।
🌹💠good evening💠🌹 आप शान्त स्वर में बात करके प्रभाव देखिए। आप आवेश तथा आवेग में बात करके प्रभाव देखिए। शान्त स्वर में माधुर्य भी आपको दिखाई देगा, जो आवेश में खो जाएगा। आवेश भरे शब्द स्वयं का तथा सुनने वाले का भी अहित करते हैं । इसी प्रकार सत्य बोलने वाला भी सहज रूप में बात करता है। हां, मत प्रकट करने वाला अलग हो सकता है।
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