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Best धनुष Shayari, Status, Quotes, Stories

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Ghumnam Gautam

अविनाश कुमार

कृपया पूरा कैप्शन जरूर पढ़े ___________________________ धनुष-खंडन . मैंने ये पंक्तियाँ रामायण के उस घटना को ध्यान में रखकर लिखा है जहाँ श्री राम सीता से विवाह हेतु शिव धनुुष को खंडित करते हैं और फिर उनका सामना श्री परशुराम से होता है। पुराणों के अनुसार परशुराम और राम दोनों ही विष्णु के अवतार थे और इसी तरह विष्णु का सामना खुद विष्णु से हुआ था। इस घटना को लेकर पूरा ब्रह्मांड सकते में पड़ गया था परंतु श्री राम ने इसे बड़े ही कुशलता से संभाल लिया था। आशा करता हूँ सही प्रकार वर्णन करने में सफल हो पाया

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धनुष-खंडन

टूटा जब शिव धनुष था 
मच गया कोहराम था
सामना विष्णु का विष्णु से था 
सकते में सम्पूर्ण ब्रह्मांड था
     कृपया पूरा कैप्शन जरूर पढ़े
___________________________
धनुष-खंडन
.
मैंने ये पंक्तियाँ रामायण के उस घटना को ध्यान में रखकर लिखा है जहाँ श्री राम सीता से विवाह हेतु शिव धनुुष को खंडित करते हैं और फिर उनका सामना श्री परशुराम से होता है। पुराणों के अनुसार परशुराम और राम दोनों ही विष्णु के अवतार थे और इसी तरह विष्णु का सामना खुद विष्णु से हुआ था। इस घटना को लेकर पूरा ब्रह्मांड सकते में पड़ गया था परंतु श्री राम ने इसे बड़े ही कुशलता से संभाल लिया था।
आशा करता हूँ सही प्रकार वर्णन करने में सफल हो पाया

Dhanush tekam

Dhanush tekam #Independence2021

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#आप सभी भारतवासियों  को देश के सबसे बड़े पर्व

 राष्ट्रीय पर्व 75 वां स्वतंत्रता दिवस की लख लख बधाई एवं शुभकामनाएं !

#आओ एक कदम बढ़ाएं,

एक नये युग की तरफ 

#जय भारत भूमि🇮🇳 

#अाजाद भारत का आजाद नागरिक

#धनुष टेकाम

©Dhanush tekam Dhanush tekam
#Independence2021

Dhanush tekam

धनुष टेकाम #findingyourself

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#मिट्टी का तन-मस्ती का मन,

क्षण भर जीवन -मेरा परिचय!


#धनुष टेकाम🕺

©Dhanush tekam धनुष टेकाम
#findingyourself

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते।
अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्‌ तन्मयो भवेत्‌ ॥

ॐ (प्रणव) है धनुष तथा आत्मा है बाण, और 'वह', अर्थात् 'ब्रह्म' को लक्ष्य के रूप में कहा गया है। 'उसका' प्रमाद रहित होकर वेधन करना चाहिये; जिस प्रकार शर अर्थात् बाण अपने लक्ष्य में विलुप्त हो जाता है उसी प्रकार मनुष्य को 'उस' में (ब्रह्म में) तन्मय हो जाना चाहिये।

OM is the bow and the soul is the arrow, and That, even the Brahman, is spoken of as the target. That must be pierced with an unfaltering aim; one must be absorbed into That as an arrow is lost in its target.

( मुंडकोपनिषद २.२.४ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #ॐ #ब्रह्म #धनुष #बाण

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

धनुर्गृहीत्वौपनिषदं महास्त्रं शरं ह्युपासानिशितं सन्धयीत।
आयम्य तद् भावगतेन चेतसा लक्श्यं तदेवाक्षरं सोम्य विद्धि ॥

उपनिषदीय धनुष रूपी महाअश्व को ग्रहण करो, उपासना के द्वारा सुतीक्ष्ण किये हुए बाण को उस पर स्थापित करो, उस 'परतत्त्व' में चित्त को पूर्णतया एकनिष्ठ करके धनुष को खींचो तथा हे सौम्य! उस 'अक्षर ब्रह्म' को लक्ष्य करके, 'उसे' वेधो।

Take up the bow of the Upanishad, that mighty weapon, set to it an arrow sharpened by adoration, draw the bow with a heart wholly devoted to the contemplation of That, and O fair son, penetrate into That as thy target, even into the Immutable.

( मुंडकोपनिषद २.२.३ ) #मुंडकोपनिषद #upnishad #धनुष #उपनिषद #भेद #लक्ष्य

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 9 - सेवा का प्रभाव 'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
9 - सेवा का प्रभाव

'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 8 - असुर उपासक 'वत्स, आज हम अपने एक अद्भुत भक्त का साक्षात्कार करेंगे।' श्रीविदेह-नन्दिनी का जबसे किसी कौणप ने अपहरण किया, प्रभु प्रायः विक्षिप्त-सी अवस्था का नाट्य करते रहे हैं। उनके कमलदलायत लोचनों से मुक्ता की झड़ी विराम करना जानती ही नहीं थी। आज कई दिनों पर - ऐसे कई दिनों पर जो सौमित्र के लिए कल्प से भी बड़े प्रतीत हुए थे, प्रभु प्रकृतस्थ होकर बोल रहे थे - 'सावधान, तुम बहुत शीघ्र उत्तेजित हो उठते हो! कहीं कोई अनर्थ न कर बैठना! शान्त रह

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
8 - असुर उपासक

'वत्स, आज हम अपने एक अद्भुत भक्त का साक्षात्कार करेंगे।' श्रीविदेह-नन्दिनी का जबसे किसी कौणप ने अपहरण किया, प्रभु प्रायः विक्षिप्त-सी अवस्था का नाट्य करते रहे हैं। उनके कमलदलायत लोचनों से मुक्ता की झड़ी विराम करना जानती ही नहीं थी। आज कई दिनों पर - ऐसे कई दिनों पर जो सौमित्र के लिए कल्प से भी बड़े प्रतीत हुए थे, प्रभु प्रकृतस्थ होकर बोल रहे थे - 'सावधान, तुम बहुत शीघ्र उत्तेजित हो उठते हो! कहीं कोई अनर्थ न कर बैठना! शान्त रह

ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)

जीवन एक इंद्र धनुष ही होता है,,,, लेकिन सुर्य रुपी कृपा सिंधु मिल जाये तब---- हम जीवन को हमेशा अँधकार मे सफेदी रुपी आकाशगंगा सा बना लेते है,,,, प्रभात का अर्थ "सुर्योदय"नही होता बल्कि वो आपके इतिहास लिखने का नित नया अवसर होता है हम हर बार अवसर की अनदेखी करते है लेकिन अवसर किसी का इंतजार नही करता है

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 जीवन एक इंद्र धनुष ही होता है,,,, लेकिन सुर्य रुपी कृपा सिंधु मिल जाये तब----

हम जीवन को हमेशा अँधकार मे सफेदी रुपी आकाशगंगा सा बना लेते है,,,,

प्रभात का अर्थ "सुर्योदय"नही होता बल्कि वो आपके इतिहास लिखने का नित नया अवसर होता है

हम हर बार अवसर की अनदेखी करते है
लेकिन अवसर किसी का इंतजार नही करता है

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 17 - सात्विक त्याग कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेर्जुन। संगत्यक्त्वा फलं चैव स त्याग: सात्विको मत:।। (गीता 18।9)

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
17 - सात्विक त्याग

कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेर्जुन।
संगत्यक्त्वा फलं चैव स त्याग: सात्विको मत:।।
(गीता 18।9)
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