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Saani
मुन्तजिर हों जब आँखें, हर घड़ी ज़ियारत को । कैसे,, दिल भुला देगा , अब तुम्हारी चाहत को ।। अपनी ही ख़ुशी में तुम, दूर कर लिये ख़ुद को । आज भी मैं रोता हूँ , बस उसी मुहब्बत को ।। सांसें ,, तेरे वादों की , ज़िक्र में हैं सरगर्दाँ । भूल बैठे हो शायद , तुम ही मेरी उल्फ़त को ।। कल ख़ोदा को मह़शर में, कैसे मुहँ दिखायें गे । बाँटने के क़ायल हैं, जो दिलों की क़ुर्बत को ।। रंज क्यूँ नजूमी से , शिकवा क्या लकीरों का । क्यूँ मैं रोऊँ क़िस्मत को, या तिरी ह़िमाक़त को ।। तेरा ,, शुक्र है यारब , तेरी मेहरबानी है । भूल जाऊँ मैं कैसे , तेरी इस इनायत को ।। "सानी" दर्द-वो-ग़म मीठे, लगते हैं मुह़ब्बत के । वक़्फ़ ज़िन्दगी करदी , इक तिरी इबादत को ।। (Md. Shaukat Ali "saani") follow me friend...
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read moreRizwan Khan
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा - बशीर बद्र यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे - जौन एलिया दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं - जिगर मुरादाबादी लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से - जाँ निसार अख़्तर बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भर पलकों से लिख रहा था तिरा नाम चाँद पर - अज्ञात अभी आए अभी जाते हो जल्दी क्या है दम ले लो न छेड़ूँगा मैं जैसी चाहे तुम मुझ से क़सम ले लो - अमीर मीनाई एक चेहरा है जो आँखों में बसा रहता है इक तसव्वुर है जो तन्हा नहीं होने देता - जावेद नसीमी अपने जैसी कोई तस्वीर बनानी थी मुझे मिरे अंदर से सभी रंग तुम्हारे निकले - सालिम सलीम इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यूँ नहीं करते - फ़रहत एहसास तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे - क़ैसर-उल जाफ़री तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना - शकील बदायुनी तुम्हारा नाम आया और हम तकने लगे रस्ता तुम्हारी याद आई और खिड़की खोल दी हम ने - मुनव्वर राना जहाँ में होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा तिरे लबों पे मिरे लब हों ऐसा कब होगा - शहरयार यूँ तिरी याद में दिन रात मगन रहता हूँ दिल धड़कना तिरे क़दमों की सदा लगता है - शहज़ाद अहमद दिल से उठता है सुब्ह-ओ-शाम धुआँ कोई रहता है इस मकाँ में अभी - अंजुम रूमानी क्यूँ मेरी तरह रातों को रहता है परेशाँ ऐ चाँद बता किस से तिरी आँख लड़ी है - साहिर लखनवी शाम ढले ये सोच के बैठे हम अपनी तस्वीर के पास सारी ग़ज़लें बैठी होंगी अपने अपने मीर के पास - साग़र आज़मी इस क़दर भी तो न जज़्बात पे क़ाबू रक्खो थक गए हो तो मिरे काँधे पे बाज़ू रक्खो - इफ़्तिख़ार नसीम #urdushari
Rizwan Khan
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा - बशीर बद्र यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे - जौन एलिया दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं - जिगर मुरादाबादी लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से - जाँ निसार अख़्तर बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भर पलकों से लिख रहा था तिरा नाम चाँद पर - अज्ञात अभी आए अभी जाते हो जल्दी क्या है दम ले लो न छेड़ूँगा मैं जैसी चाहे तुम मुझ से क़सम ले लो - अमीर मीनाई एक चेहरा है जो आँखों में बसा रहता है इक तसव्वुर है जो तन्हा नहीं होने देता - जावेद नसीमी अपने जैसी कोई तस्वीर बनानी थी मुझे मिरे अंदर से सभी रंग तुम्हारे निकले - सालिम सलीम इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यूँ नहीं करते - फ़रहत एहसास तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे - क़ैसर-उल जाफ़री तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना - शकील बदायुनी तुम्हारा नाम आया और हम तकने लगे रस्ता तुम्हारी याद आई और खिड़की खोल दी हम ने - मुनव्वर राना जहाँ में होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा तिरे लबों पे मिरे लब हों ऐसा कब होगा - शहरयार यूँ तिरी याद में दिन रात मगन रहता हूँ दिल धड़कना तिरे क़दमों की सदा लगता है - शहज़ाद अहमद दिल से उठता है सुब्ह-ओ-शाम धुआँ कोई रहता है इस मकाँ में अभी - अंजुम रूमानी क्यूँ मेरी तरह रातों को रहता है परेशाँ ऐ चाँद बता किस से तिरी आँख लड़ी है - साहिर लखनवी शाम ढले ये सोच के बैठे हम अपनी तस्वीर के पास सारी ग़ज़लें बैठी होंगी अपने अपने मीर के पास - साग़र आज़मी इस क़दर भी तो न जज़्बात पे क़ाबू रक्खो थक गए हो तो मिरे काँधे पे बाज़ू रक्खो - इफ़्तिख़ार नसीम #urdushari
सानू
ये जो हल्की सी तिरी इक मुस्कान है, तिरी इसी अदा पे मेरी जाँ क़ुरबान है, फँसी है मिरी जान पस ए रुख़सार पे छुपाया जो तूने तिल का निशान है। ये जो हल्की
ये जो हल्की
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