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Best चरित्रहीन Shayari, Status, Quotes, Stories

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Anuradha T Gautam 6280

#अपने_सपनो_के_लिए_जरूर_लड़े क्या रिश्ते टूटने की आजकल सबसे बड़ी वजह पढ़ी,लिखी,कमाने वाली महिलाएं है..🖊️ क्योंकि यह गुलामी नहीं कर सकती #कोम्प्रोमाईज नहीं कर सकती अपने हक के लिए आवाज उठाती है..🖊️ आजकल ऐसी महिलाओं को कौन पसन्द करता है

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Anuradha T Gautam 6280

#चरित्रहीन संस्कार बेशक मां-बाप देते हैं पर ग्रहण करना खुद पर है फर्क पड़ता है कि कौन कितना ग्रहण करता है कोई भी मां-बाप अपने बच्चों को चरित्रहीन नहीं बनाते

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Sonu Sharma

#parent

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B Ravan

#चरित्रहीन S Priyadarshini Tiya Aggarwal ajnabi –Varsha Shukla _Sharda _Thakur_

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चरित्रहीन एक स्त्री नही,
चरित्रहीन तो समाज होता है..!

©B Ravan #चरित्रहीन
S Priyadarshini Tiya Aggarwal ajnabi –Varsha Shukla _Sharda _Thakur_

Juhi Grover

किसी से कहीं भी हँस कर के बात कर लेना,
कभी चरित्रहीनता  का  प्रमाण  बन जाता है।
परिभाषा चरित्र की हमेशा कैंसे भी बना लेना,
चरित्रहीन लोगों की बस बिमारी बन जाता है।  #प्रमाण 
#बिमारी 
#परिभाषा 
#चरित्रहीन 
#yqhindi 
#yqdidi 
#yqquotes 
#bestyqhindiquotes

Juhi Grover

Thanks for poking me sis Ek paheli तुझ पे हमदर्दी दिखाई मैंने, तूने मुझे कसूरवार ठहराया, मैंने ज़रा तुझे अपनापन दिखाया, तुम ने मुझे चरित्रहीन बताया। वाह रे पुरुष तेरी कैसी माया,

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तुझ पे हमदर्दी दिखाई मैंने,
तूने मुझे कसूरवार ठहराया,
मैंने ज़रा तुझे अपनापन दिखाया,
तुम ने मुझे चरित्रहीन बताया।

वाह रे पुरुष तेरी कैसी माया,
स्त्री के लिए न धूप, न छाया,
बस अपना राग अलापते रहो,
न माने तो हर बार इल्ज़ाम लगाया।

पैरों की जूती समझते आये हो,
बस मनमर्ज़ी करते आये हो,
बेइज्ज़त कर दिया स्त्री सम्मान को,
आँख का पानी किसे दिखाये वो।

ज़्यादा हितैषी तुम बने फिरते हो,
बताओ तुमने सब सही ही किया हो,
क्या तुम भगवान् से भी ऊपर हो,
कि हर बार प्रमाण की ही जरूरत हो।

पछतावा भी हो गया हो तो क्या,
आज नहीं तो कल फिर दोहराओगे,
आदत है जो तुम्हारी पैदाइश से,
तो क्या माफी माँगने से छूट जाओगे।

ज़िन्दगी का हर पल ज़रूरी है जैसे,
स्त्री पुरुष का साथ ज़रूरी है वैसे,
जब तक लांछन लगाओगे एक दूसरे पर,
क्या ज़िन्दगी काट पाओगे उम्र भर।

आयु कितनी भी हो जाये,
जीवन चक्र तो चलते ही जाना है,
क्यों न फिर हँसी खुशी जीवन बितायें,
आखिर साथ तो ताउम्र निभाना है।  Thanks for poking me sis Ek paheli

तुझ पे हमदर्दी दिखाई मैंने,
तूने मुझे कसूरवार ठहराया,
मैंने ज़रा तुझे अपनापन दिखाया,
तुम ने मुझे चरित्रहीन बताया।

वाह रे पुरुष तेरी कैसी माया,

अgni

आज से कुछ तीन साल पहले, मैं अपनी आदत के मुताबिक रात को खाना खाने के बाद छत पर गाने गुनगुनाते हुए टहल रही थी की तभी टाँगों पर किसी की छुअन का एहसास हुआ, मैंने फौरन पलट कर देखा तो वो मुस्कुरा रहा था। ये पहली बार था जब उसने मुझे छुआ था और पता नहीं क्यों मैं उस छुअन को मैं समझ नहीं पाई उस वक़्त या शायद समझ कर भी भरोसा नहीं कर आया रही थी। मैंने उससे पूछा "क्या हुआ?" उसने जवाब में उसी मुस्कुराहट के साथ कहा "कुछ नहीं।" मैं छत के दूसरे कोने में चली गयी, उसे नजरअंदाज करने के लिए और वो वहीं बैठा रहा उस मुस्कुराहट के साथ, कुछ देर बाद मैं नीचे आ गयी छत पर जो हुआ उसके बारे में सोचा और फिर खुद को समझाया कि शायद मैं गलत समझ रही हूँ उसे, बचपन से जानती हूँ उसे फिर भी। 

दो-चार दिन बाद मेरे बाथरूम के बाहर कोई स्पर्म छोड़ गया था, उस वक़्त वहाँ उस मंजिल पर अकेली थी मैं और ये बात वो शख़्स जानता था। उस लम्हे ने झकझोर दिया था मुझे अंदर तक, कुछ पल को जैसे पत्थर हो गयी थी मैं, ऐसा नहीं है कि बदतमीजी पहले कभी नहीं हुई, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ था। मेरे आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे और पहली बार मुझे अपने ही घर में डर लग रहा था। माँ और भाई घर आए तो समझ नहीं आया उन्हें क्या बताऊँ, फिर कोशिश करके माँ को बताया लेकिन....न किसी को आते देखा न जाते तो इल्ज़ाम भी किस पर लगाती। रोकर शांत हो गयी लेकिन मन में ख़ौफ़ बैठ गया था इस बात का की अगले कुछ घंटों या मिनटों में पता नहीं क्या हो जाएगा। कुछ देर के लिए भी अकेले रहने से डर लगने लगा था।  

कुछ दिन और बीते फिर, जब एक दिन मैं छत पर अपने बालों को सुखा रही थी तब वो भी छत पर आ गया, मैंने चाहा कि नीचे वापस चली जाऊँ लेकिन तभी उसने कहा "दीदी एक बात कहूँ?" मुझे लगा शायद जो मैं सोच रही हूँ वो गलत है क्योंकि दीदी कहता है वो मुझे, फिर मैंने वहीं सीढ़ियों पर बैठते हुए कहा "हाँ बोल क्या हुआ" मेरे इतना कहते ही जिस तरह वो मेरे करीब आने लगा मुझे सब साफ़ समझ आ गया। पीछे हटते हुए मैंने कहा "बोल क्या बोलना है" मैं उसके मुँह से सुनना चाहती थी कि वो क्या कहता है ताकि  उसके माता पिता को बताने के लिए मेरे पास उसके शब्द हों। उसने कहा "तुम मुझे बहूत पसंद हो, मेरी गर्लफ्रैंड बनोगी?" उस वक़्त वो जिन नज़रों से मुझे देख रहा था वो किसी प्रेमी की नहीं बल्कि धाक लगाए बैठे किसी गिद्ध की तरह थी। इतना सुनते ही बीते दिनों में मेरे साथ हुई एक एक चीज़ कड़ी से बँध गयी, जी चाहा कि उसके गालों पर एक ज़ोरदार तमाचा लगा दूँ लेकिन नहीं लगा पाई, घिन आ रही थी मुझे उससे। मैं तुरंत नीचे आई और क्योंकि दिन रविवार का था तो घर में कुछ मेहमान आए हुए थे, मैं उनके जाने का इंतजार करने लगी लेकिन गुज़रे दिनों जिन भयानक लम्हों को मैंने जिया था उन्हें सोच कर डर से पहली बार मेरे हाथ पैर काँप रहे थे। मैं कमज़ोर नहीं हूँ लेकिन इतनी मज़बूत भी नहीं कि सब झेल जाऊँ। मेहमानों के जाते ही मैंने रोते रोते घर में सबकुछ बताया, माँ-पापा उसके घर गए, वहाँ जब उससे पूछा गया तो उसने कहा कि उसने तो कुछ किया ही नहीं। 

कुछ देर बाद उसकी माँ घर आई, मुझसे पूछा क्या हुआ था, मैंने भी सबकुछ बताया उन्हें और कहा कि मेरे सामने अपने बेटे से पूछिए। मेरे कहने पर उसके पापा उसे मेरे घर लाए और मैंने उससे सवाल करना शुरू किया, बहुत देर की चुप्पी के बाद उसने स्वीकारा लेकिन जब मैंने वो बाथरूम वाली हरकत के लिए उससे जवाब माँगा तो वो चुप था। हाँलाकि ये सब समझ गए थे कि वो सभी हरकतें उसी ने की थी, फिर भी उसकी माँ ने मुझे कहा "तूने ही कुछ किया होगा, मेरा बेटा यूँ ही तो ऐसा नहीं करेगा।" आसान शब्दों में वो मुझे "चरित्रहीन" कह रही थी, सुनने में आसान सा शब्द है लेकिन यक़ीन मानिए जिस पल इस शब्द को कोई आपके लिए इस्तेमाल करता है, उस पल जो चोट लगती है दिल पर वो कभी भरती नहीं है। ये वो शब्द थे जिन्हें मैं आख़िरी साँस तक भूल नहीं पाऊँगी। जिस चरित्र पर कभी एक तिनका भी नहीं उठा था, उस दिन मेरे उस चरित्र को गाली दी गयी थी जिसने सीधा आत्मा को जख़्मी किया था। 

उस दिन मैं इस सच से रूबरू हुई कि, मैं जिस समाज में रह रही हूँ वहाँ पुरुष चाहे जितनी भी बड़ी ग़लती करे लेकिन दोषी हर बार स्त्री को ही ठहराया जाएगा।

©अgni #अग्नि #चरित्रहीन #life #experience

अgni

आज से कुछ तीन साल पहले, मैं अपनी आदत के मुताबिक रात को खाना खाने के बाद छत पर गाने गुनगुनाते हुए टहल रही थी की तभी टाँगों पर किसी की छुअन का एहसास हुआ, मैंने फौरन पलट कर देखा तो वो मुस्कुरा रहा था। ये पहली बार था जब उसने मुझे छुआ था और पता नहीं क्यों मैं उस छुअन को मैं समझ नहीं पाई उस वक़्त या शायद समझ कर भी भरोसा नहीं कर आया रही थी। मैंने उससे पूछा "क्या हुआ?" उसने जवाब में उसी मुस्कुराहट के साथ कहा "कुछ नहीं।" मैं छत के दूसरे कोने में चली गयी, उसे नजरअंदाज करने के लिए और वो वहीं बैठा रहा उस मुस्कुराहट के साथ, कुछ देर बाद मैं नीचे आ गयी छत पर जो हुआ उसके बारे में सोचा और फिर खुद को समझाया कि शायद मैं गलत समझ रही हूँ उसे, बचपन से जानती हूँ उसे फिर भी। 

दो-चार दिन बाद मेरे बाथरूम के बाहर कोई स्पर्म छोड़ गया था, उस वक़्त वहाँ उस मंजिल पर अकेली थी मैं और ये बात वो शख़्स जानता था। उस लम्हे ने झकझोर दिया था मुझे अंदर तक, कुछ पल को जैसे पत्थर हो गयी थी मैं, ऐसा नहीं है कि बदतमीजी पहले कभी नहीं हुई, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ था। मेरे आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे और पहली बार मुझे अपने ही घर में डर लग रहा था। मम्मी और भाई घर आए तो समझ नहीं आया उन्हें क्या बताऊँ, फिर कोशिश करके मम्मी को बताया लेकिन....न किसी को आते देखा न जाते तो इल्ज़ाम भी किस पर लगाती। रोकर शांत हो गयी लेकिन मन में ख़ौफ़ बैठ गया था इस बात का की अगले कुछ घंटों या मिनटों में पता नहीं क्या हो जाएगा। कुछ देर के लिए भी अकेले रहने से डर लगने लगा था।  

कुछ दिन और बीते फिर, जब एक दिन मैं छत पर अपने बालों को सुखा रही थी तब वो भी छत पर आ गया, मैंने चाहा कि नीचे वापस चली जाऊँ लेकिन तभी उसने कहा "दीदी एक बात कहूँ?" मुझे लगा शायद जो मैं सोच रही हूँ वो गलत है, फिर मैंने वहीं सीढ़ियों पर बैठते हुए कहा "हाँ बोल क्या हुआ" मेरे इतना कहते ही जिस तरह वो मेरे करीब आने लगा मुझे सब साफ़ समझ आ गया। पीछे हटते   हुए मैंने कहा "पूछ" मैं उसके मुँह से सुनना चाहती थी कि वो क्या कहता है ताकि उसके माता पिता को बताने के लिए मेरे पास उसके शब्द हों। उसने कहा "तुम मुझे बहूत पसंद हो, मेरी गर्लफ्रैंड बनोगी?" उस वक़्त वो जिन नज़रों से मुझे देख रहा था वो किसी प्रेमी की नहीं बल्कि धाक लगाए बैठे किसी गिद्ध की तरह थी। इतना सुनते ही बीते दिनों में मेरे साथ हुई एक एक चीज़ कड़ी से बँध गयी, जी चाहा कि उसके गालों पर एक ज़ोरदार तमाचा लगा दूँ लेकिन नहीं लगा पाई, घिन आ रही थी मुझे उससे। मैं तुरंत नीचे आई और क्योंकि दिन रविवार का था तो घर में कुछ मेहमान आए हुए थे, मैं उनके जाने का इंतजार करने लगी लेकिन गुज़रे दिनों जिन भयानक लम्हों को मैंने जिया था उन्हें सोच कर डर से पहली बार मेरे हाथ पैर काँप रहे थे। मैं कमज़ोर नहीं हूँ लेकिन इतनी मज़बूत भी नहीं कि सब झेल जाऊँ। मेहमानों के जाते ही मैंने रोते रोते घर में सबकुछ बताया, माँ-पापा उसके घर गए, वहाँ जब उससे पूछा गया तो उसने कहा कि उसने तो कुछ किया ही नहीं। 

कुछ देर बाद उसकी माँ घर आई, मुझसे पूछा क्या हुआ था, मैंने भी सबकुछ बताया उन्हें और कहा कि मेरे सामने अपने बेटे से पूछिए। मेरे कहने पर उसके पापा उसे मेरे घर लाए और मैंने उससे सवाल करना शुरू किया, बहुत देर की चुप्पी के बाद उसने स्वीकारा लेकिन जब मैंने वो बाथरूम वाली हरकत के लिए उससे जवाब माँगा तो वो चुप था। हाँलाकि ये सब समझ गए थे कि वो सभी हरकतें उसी ने की थी, फिर भी उसकी माँ ने मुझे कहा "तूने ही कुछ किया होगा, मेरा बेटा यूँ ही तो ऐसा नहीं करेगा।" आसान शब्दों में वो मुझे "चरित्रहीन" कह रही थी, सुनने हैं आसान सा शब्द है लेकिन यक़ीन मानिए जिस पल इस शब्द को कोई आपके लिए इस्तेमाल करता है, उस पल जो चोट लगती है दिल पर वो कभी भरती नहीं है। ये वो शब्द थे जिन्हें मैं आख़िरी साँस तक भूल नहीं पाऊँगी। जिस चरित्र पर कभी एक तिनका भी नहीं उठा था, उस दिन मेरे उस चरित्र को गाली दी गयी थी जिसने सीधा आत्मा को जख़्मी किया था। 

उस दिन मैं इस सच से रूबरू हुई कि, मैं जिस समाज में रह रही हूँ वहाँ पुरुष चाहे जितनी भी बड़ी ग़लती करे लेकिन दोषी हर बार स्त्री को ही ठहराया जाएगा।

©अgni #life #ज़िन्दगी #चरित्रहीन  #मेरी_कहानी #अग्नि

Suditi Jha

संभाल न सका वो चरित्र अपना तनिक माया और लोभ में ,
कभी इसका हुआ, कभी उसका हुआ सिर्फ जिस्मों के मोह में।
 #qsstichonpic2049 
#yqdidi 
#yqbaba 
#मोहमाया 
#जिस्मानीमोहब्बत 
#जिस्मोंकाखेल 
#चरित्रहीन 
#हवसी

Biplav

#चरित्रहीन #yqdidi #yqbaba #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi जब मैं छोटी थी, किसी को ऐतराज़ न था कि मैं क्या पहनती, किससे बात करती, कौन मुझसे मिलता, मैं किससे मिलती। मुझे ग़ैरों के संगत में छोड़ने पर किसको ऐतराज़ न था, मुझे औरों की गोद में बिठाने पर किसी को तकलीफ न थी। तब उम्र कम थी, भले बुरे की समझ भी न थी। अब मैं अपना भला भी समझती हूँ और बुरा भी पर समझते नही हैं तो ये लोग। मैं लड़कों से मिलती हुँ तो इनकी भौंए तन जाती हैं, मेरे कपड़ों से भी छोटे इनके सोच के मुताबिक मैं एक शराब

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चरित्रहीन (कहानी कैप्शन में) #चरित्रहीन 
#yqdidi #yqbaba 

#YourQuoteAndMine
Collaborating with  YourQuote Didi

जब मैं छोटी थी, किसी को ऐतराज़ न था कि मैं क्या पहनती, किससे बात करती, कौन मुझसे मिलता, मैं किससे मिलती। मुझे ग़ैरों के संगत में छोड़ने पर किसको ऐतराज़ न था, मुझे औरों की गोद में बिठाने पर किसी को तकलीफ न थी। तब उम्र कम थी, भले बुरे की समझ भी न थी। अब मैं अपना भला भी समझती हूँ और बुरा भी पर समझते नही हैं तो ये लोग। मैं लड़कों से मिलती हुँ तो इनकी भौंए तन जाती हैं, मेरे कपड़ों से भी छोटे इनके सोच के मुताबिक मैं एक शराब
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