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Best कुमकुम Shayari, Status, Quotes, Stories

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Deepika

vishnu prabhakar singh

कोलैबोरेशन ओपन 👈😇 सायली विधा -------------- सायली विधान : इसे पाँच पंक्तियों में लिखा जाता है। नियम..... ◆ पहली पंक्ति में एक शब्द ◆ दूसरी पंक्ति में दो शब्द #तुम #yqbaba #yqdidi #YourQuoteAndMine #yqhindi #सर्वस्व #कुमकुम #nehasinghal

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जब 
बात चली
सायली की तो
हाइकु याद
आया कोलैबोरेशन ओपन 👈😇

सायली विधा
--------------
सायली विधान : इसे पाँच पंक्तियों में लिखा जाता है।
नियम.....
◆ पहली पंक्ति में एक शब्द
◆ दूसरी पंक्ति में दो शब्द

NEERAJ SIINGH

कोलैबोरेशन ओपन 👈😇 सायली विधा -------------- सायली विधान : इसे पाँच पंक्तियों में लिखा जाता है। नियम..... ◆ पहली पंक्ति में एक शब्द ◆ दूसरी पंक्ति में दो शब्द #तुम #yqbaba #yqdidi #YourQuoteAndMine #सर्वस्व #कुमकुम #nehasinghal #neerajwriteson

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बिन 
रीत बिन 
रिवाज हूँ मैं 
तुम्हारा जीवन पर्यन्त 
मांग का 
ताज 
 कोलैबोरेशन ओपन 👈😇

सायली विधा
--------------
सायली विधान : इसे पाँच पंक्तियों में लिखा जाता है।
नियम.....
◆ पहली पंक्ति में एक शब्द
◆ दूसरी पंक्ति में दो शब्द

RJ 21

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*माथे पर कुमकुम का तिलक*

महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं। 

*वैज्ञानिक तर्क-*

आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है। इससे चेहरे की कोश‍िकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता है.

Vikram Agastya

"मेरी डिबिया की रौशनी"/विक्रम अगस्त्य #बचपन " पुस कि रात और मेरी डिबिया की रौशनी" [ विक्रम अगस्त्य] बेहद ठंड होती हैं, पुस की रात..... वो दौर था उस वक्त का जब हमारे गांव में बिजली नहीं हुआ करता था। डिबिया के रौशनी में पढ़ा करते थे। यकीन मानिए दोस्तों वो दौर ही इतना मनमोहक था। शाम होते ही फिर वहीं छोटीसी प्यारी डिबिया के पास बैठ कर " हल्कू और सिरचन के कहानियां पढ़़ा करते थे। मेरी माँ हमेशा सब घरेलू काम निपटा कर बैठ जाती थी, मेरे पास , जब मैं पढ़ते पढ़ते सो जाता

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"मेरी डिबिया की रौशनी"/विक्रम अगस्त्य
#बचपन
   " पुस कि रात और मेरी डिबिया की रौशनी"
                                 [ विक्रम अगस्त्य]
बेहद ठंड होती हैं, पुस की रात.....
   वो दौर था उस वक्त का जब हमारे गांव में बिजली नहीं हुआ करता था। डिबिया के रौशनी में पढ़ा करते थे। यकीन मानिए दोस्तों वो दौर ही इतना मनमोहक था। शाम होते ही फिर वहीं छोटीसी प्यारी डिबिया के पास बैठ कर " हल्कू और सिरचन के कहानियां पढ़़ा करते थे। 
मेरी माँ हमेशा सब घरेलू काम निपटा कर बैठ जाती थी, मेरे पास , जब मैं पढ़ते पढ़ते सो जाता


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