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Sunita D Prasad
#काँधे से अधरों तक..... समग्र की अभिलाषा में बहुत कुछ मध्य में ही छूट गया जबकि न प्रारब्ध वश में है और न ही अंत! अचंभित होती हूँ इच्छाओं की हठधर्मिता पर कि कैसे अपने अवसान पर क्षीण होने की बजाय उग्र हो उठती हैं उस समय शरतचंद्र जी के देवदास का चरित्र भुवन मोहन चौधरी मुझे देख मुस्करा देता है। देह की देहरी लाँघ मन चार भिन्न दिशाओं में बँटा! सुनो, बिल्कुल कठिन नहीं था तुम्हारे काँधे से अधरों तक का सफर बस कुल जमा चार दिशाओं का असमंजस भर ही तो लगा!! --सुनीता डी प्रसाद💐💐 #काँधे से अधरों तक..... समग्र की अभिलाषा में बहुत कुछ मध्य में ही छूट गया जबकि न प्रारब्ध वश में है और न ही अंत! अचंभित होती हूँ इच्छाओं की हठधर्मिता पर
#काँधे से अधरों तक..... समग्र की अभिलाषा में बहुत कुछ मध्य में ही छूट गया जबकि न प्रारब्ध वश में है और न ही अंत! अचंभित होती हूँ इच्छाओं की हठधर्मिता पर
read moreगौरव दीक्षित(लव)
♨#पण्डित_चंद्रशेखर_आज़ाद 【23 जुलाई 1906 - 27 फरवरी 1931】 ★"#हजार_भेडियो की #भीड़ पर एक #शेर भारी था नाम #पंडित_चंद्र_शेखर_आजाद_तिवारी था... #मूँछों पर #ताव, #कमर में #पिस्तौल,#काँधे पर #जनेऊ और #शेर सी #शख़्सियत.. पंडित चन्द्र शेखर आज़ाद जी को उनकी पुण्य तिथि पर शत शत नमन.👏👏 ★ ♨💪#जय_ब्राह्मण💪♨ ♨🚩#जय_श्री_परशुरामजी🚩♨ पंडित चन्द्र शेखर आज़ाद जी को उनकी पुण्य तिथि पर शत शत नमन.👏👏 ★ ♨💪#जय_ब्राह्मण💪♨ ★ ♨🚩#जय_श्री_परशुरामजी🚩♨
पंडित चन्द्र शेखर आज़ाद जी को उनकी पुण्य तिथि पर शत शत नमन.👏👏 ★ ♨💪जय_ब्राह्मण💪♨ ★ ♨🚩जय_श्री_परशुरामजी🚩♨
read moreShreyashi Mishra
#OpenPoetry कभी कोई किस्से अधूरे रह जाते है ,,,कभी बाते अधूरी रह जाती है,,,कभी राह चलता मुसाफिर अपना सा लगता है,,,कभी अपनो के भीड़ मे मैं सब से परायी लगती हूं,,,, कभी लगता है हर कोई समझता है मुझे कभी कभी मैं खुद ही खुद को समझने में व्यस्त हो जाती है ,,,,,कभी लगता है जो है सब पर्याप्त है ,तो कभी सब कुछ अधूरा सा लगता है ,,,कभी लगता है मैं सब जैसी हूँ तो कभी कभी खुद को सबसे जुदा पाती हूँ ,,,,,कभी लगता है माँ की लाडली और पिताजी की गुड़िया हूँ तो कभी लगता है नही मैं तो परायी कोई चिड़िया बस कुछ दिन संग उनके रहने को आयी हुँ,,,, कभी कभी राहो में अकेले चलना अच्छा लगता है तो कभी उन्ही राहो पर किसी अपने को तलाशती हूँ ,,,,कभी लगता है पैसा बस जरूरत है खुशी नही फिर उसी पल ऐसा लगता है माँ के चेहरे पर हँसी भी मेरे दी हुई साड़ी से ,पहले से ज्यादा चमक लायी है,,,कभी लगता है मैं भी सो जाऊ किसी के काँधे पर सिर रख फिर उसके काँधे का दर्द मुझे तकिये पर खींच लायी है।।। आओ सब भूल जाते है ,,,चलो ना कोई नई गीत लिखते है,,,तुम सुनना मैं गाऊँगी ,तुम्हारे होठो पर नई सी मुस्कान आएगी ,सुनो सच कहती हूँ,, इन होठो के लिए मैं सारी रात गाऊँगी ।।अच्छा सुनो ,तुम सो जाना मैं तुम्हारी करवट को बदलते हुए, उस मुस्कान को तुम्हारे सपनो में लाऊँगी ।। आओ सब भूल जाते है। चलो ना कोई नई गीत लिखते है।।
आओ सब भूल जाते है ,,,चलो ना कोई नई गीत लिखते है,,,तुम सुनना मैं गाऊँगी ,तुम्हारे होठो पर नई सी मुस्कान आएगी ,सुनो सच कहती हूँ,, इन होठो के लिए मैं सारी रात गाऊँगी ।।अच्छा सुनो ,तुम सो जाना मैं तुम्हारी करवट को बदलते हुए, उस मुस्कान को तुम्हारे सपनो में लाऊँगी ।। आओ सब भूल जाते है। चलो ना कोई नई गीत लिखते है।।
read moreके_मीनू_तोष
ताना-बाना उलझनों का (कविता अनुशीर्षक में पढ़ें ) #hindi #nojotohindi #kavita #nojotokhabri #kavishala #poetry ताना-बाना उलझनों का आज फ़िर उठी है कलम आज फ़िर कुछ लिखने का है मन पर क्या ?? ये समझ नही आता...
#Hindi #nojotohindi #kavita #nojotokhabri #kavishala #Poetry ताना-बाना उलझनों का आज फ़िर उठी है कलम आज फ़िर कुछ लिखने का है मन पर क्या ?? ये समझ नही आता...
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