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जाइये कौन थे मिल्खा सिंह - फ्लाइंग सिख

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अदनासा-

विडियो सौजन्य एवं हार्दिक आभार💐🌹🙏😊🇮🇳🇮🇳 https://www.instagram.com/reel/Cz233HxxVyk/?igsh=NmRjOGRrOTNjY2g4 #भारत #हिंदी #मिल्खासिंह #प्रतियोगिता #दौड़ #धावक #FlyingSikh #कोशिश #Instagram #अदनासा

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Vaghela Jateen

फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। 20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

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कब तलक दौड़ते जाओगे
जब तलक मुकाम हांसिल करोगे
तब तक जिंदगी गुजर गई होगी
जीते जाओ साथ साथ
आज की बात मत टाल दो कल पर
कल पर सवाल है
जीना फिलहाल है
तु भाग मिल्खा..... फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़  में स्वर्ण पदक जीता। 
20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

sk

फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। 20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

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अपने सपनों को पूरा करने की,
दुनियां को अपना वर्चस्व दिखने की,
नाम हो जाता है उनका जगत में विख्यात;
जो कैसी भी परिस्थितियों को पार कर, 
इस दौड़ को कर देते हैं पूरा
और अमर हो जाते हैं।
 फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़  में स्वर्ण पदक जीता। 
20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

Gita Khanna

फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। 20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

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ये ज़रूरी नहीं कि
 हम फिनिशिंग पोस्ट पर पहुँच सकें
दौड़ में बने रहना भी कुछ कम नहीं  फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़  में स्वर्ण पदक जीता। 
20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

khusi

फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। 20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

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जहां हर कोई ,
हर पल बस दौड़ता रहता है,
कोई पैसे के पीछे, तो कोई सपने के पीछे,
हर पल बस सब दौड़ता रहता है,
भूल कर जिंदगी की मायने,
सब अपनी धुन में मस्त हैं रहते,
सिखवा करते है, लोग जिंदगी से!
मगर जिंदगी को जीना ही नही है जानते।
बस जिंदगी दौड़ती रहती है।।
कभी गरीब की रोटी के नाम पर,
तो कभी अमीरों को खवाइयेस बन कर।।
 फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़  में स्वर्ण पदक जीता। 
20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

Soulmate (Yuhee)

फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। 20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

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इन्सान के लिए 
हर एक के निशां 
मिल्खा नहीं होतें

विनम्र श्रद्धांजलि!
  🙏 🌺
 फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़  में स्वर्ण पदक जीता। 
20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

Afrin Jahan

फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। 20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

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जिन्दगी दौड़ हैं....
दौड़ना ही हमारा प्रथम स्वरूप है,
धीमी गती हो जाए इस पर भी कोई दोष नही है....
पर रुकना  नहीं है,  यह ही जिंदगी  का एकमात्र वास्तव  तथ्य रूप है .....
और अंत में   जिन्दगी को जीतना  ही 
मनुष्य का  अंतिम छोर हैं...... फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़  में स्वर्ण पदक जीता। 
20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

Manoj Srivastava

फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। 20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

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जब भी मिलो, गले से लगाना जरूर !
थोड़ा सा ही सही, पर हक़ जताना जरुर। फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़  में स्वर्ण पदक जीता। 
20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

Geet Misha

फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। 20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

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एक छोटा सा गांव हमारा, जहां हम छोटी छोटी चीज़ों के लिए लड़ते हैं कभी आपस में तो कभी क़िस्मत से।
हर दिन जिंदगी के लिए लड़ाई होती हैं. वहां एक बच्चा जिसने सपना देखा कुछ बड़ा करने का।
उसका सपना हकीकत के बहुत पास था, बहुत खास था। उसने सबको देखा था भागते हुए, कभी खाने की तलाश में, तो कभी कमाने की तलाश में.
पर वो लोग अनजान थे अपनी दौड़ से, यही सोच कर उसने दौड़ना शुरू किया और तब तक दौड़ा जब तक लोग ये ना समझे कि उन्होंने भी जीता है। किसी को जिंदगी दिया तो किसी को सिंचा हैं इस दौड़ को भी सलाम और मिल्खा सिंह को भी सलाम। फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़  में स्वर्ण पदक जीता। 
20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

Dr Upama Singh

फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। 20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

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जिंदगी दौड़ है
दौड़ते रहो दौड़ते रहो
सब इसके संग भागते रहो
जीत जाओ तो 
सब साथ चलते
हार जाओ तो 
अपने ही साथ छोड़ते
परिश्रम करता चल
आगे बढ़ता चल
जिंदगी अजीब दौड़ है 
इंसान बस यहां खिलौना है 
आती है जब मौत 
तब साथ है छोड़ती ये दौड़। फ्लाइंग सिख के लक़ब से जाने जाने वाले कैप्टन मिल्खा सिंह भारत के एकमात्र धावक थे जिन्होंने एशियाई और कॉमनवेल्थ की 400 मीटर दौड़  में स्वर्ण पदक जीता। 
20 नवम्बर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह विभाजन के समय भाग कर भारत पहुँचे। आरम्भ में परिस्थितियों से निराश होकर वो डाकू बनना चाहते थे मगर भाई मलखान सिंह के कहने पर फ़ौज में भर्ती हुए और धावक बन कर उभरे। 1956 में प्रथम बार मेलबोर्न ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
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