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Hemlata Pandey
हिंदू नव वर्ष और चैत्र नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं #नवरात्रि #नववर्ष #नववर्ष2022 #yqdidi #yqbaba #yqquotes
Shree
कभी रिश्ते, कभी रास्तों पर पलता रहा हूं, आज सिक्कों की खनक, चमक ढूंढता हूं, मशगूल वक्त से ज्यादा, क्या जाने, जी या मर रहा हूं!! क्या जाने, जी या मर रहा हूं!! अनुशीर्षक जी या मर रहा हूं! .............. बहरूपियों के संग बहरूपिया बन रहा हूं, ज्यादा चुप रह कर उनके जैसा दिख रहा हूं, हर बात में औकात आंकने की आदत सीख रहा हूं! कद-काठी, रंग-रूप, ऊंच-नीच तौलता हूं, किफायती हो सौदा पहले ही परखता हूं,
जी या मर रहा हूं! .............. बहरूपियों के संग बहरूपिया बन रहा हूं, ज्यादा चुप रह कर उनके जैसा दिख रहा हूं, हर बात में औकात आंकने की आदत सीख रहा हूं! कद-काठी, रंग-रूप, ऊंच-नीच तौलता हूं, किफायती हो सौदा पहले ही परखता हूं,
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कुछ ख्वाहिशें है जिनका मोल हमने खुद महंगा कर रखा है, कुछ तयशुदा है, कुछ समझ, नहीं पूछते बैठे...अच्छा किया है, इनकी प्यास कौन बुझाए, अब ये जाने तरस किसने लगाई है, आब-सी ठंडक का मुन्तजिर, मौसमों का मुरीद दिल यहां है, मेहरबान तर-बतर यादें हो या बातें, गज़ब फितूर जैसा तू है, इस अंधियार में कैद मुस्कान को सूरज की लाली देने आया है, इल्म हासिल करने की तलब में तेरी नज़र के ऐवज सजदा किया, इश्तिहार सा छप गया वो किस्सा, यूंही चुपचाप आज फिर पढ़ लिया! महंगी ख्वाहिशें ................... कुछ ख्वाहिशें है जिनका मोल हमने खुद महंगा कर रखा है, कुछ तयशुदा है, कुछ समझ, नहीं पूछते बैठे...अच्छा किया है, इनकी प्यास कौन बुझाए, अब
महंगी ख्वाहिशें ................... कुछ ख्वाहिशें है जिनका मोल हमने खुद महंगा कर रखा है, कुछ तयशुदा है, कुछ समझ, नहीं पूछते बैठे...अच्छा किया है, इनकी प्यास कौन बुझाए, अब
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वो आई तो खुद आई, और लाई नहीं दहेज, समाज में ताव रखने को स्वागत किया खूब। कल-परसों में लगी जाने को दफ्तर हो तैयार, देहरी पर रखे कदम, कोई पूछे उसकी पगार, ठिठक कर खड़ी दो पल, थी झुकी-झुकी नजर, 'उबर' आई, देर हो रही, कह निकल पड़ी सफर, पूरे दिन बधाई सत्र के दौरान सोचे कई जवाब, कोशिश नाकाम, पहुंचते ससुराल हुए खड़े कान, बचकर निकली, सहमी थोड़ी, ज्यादा विचलित, कमरे में जाकर पूछा, कहो क्यों पूछ रहे यह? बिन सोचे, नि:संकोच उत्तर,"ये तुम्हारे परिवार, हक है इतना तुम पर हम सब का, समझ लो।" द्वंद मन में, नि:शब्द, आंखों और जबां को रोके, "बाबा ने तो कभी ना पूछा क्यों ऐसा कोई सवाल!?" दहेज का नवरुप ...................... वो आई तो खुद आई, और लाई नहीं दहेज, समाज में ताव रखने को स्वागत किया खूब। कल-परसों में लगी जाने को दफ्तर हो तैयार, देहरी पर रखे कदम, कोई पूछे उसकी पगार, ठिठक कर खड़ी दो पल, थी झुकी-झुकी नजर, 'उबर' आई, देर हो रही, कह निकल पड़ी सफर,
दहेज का नवरुप ...................... वो आई तो खुद आई, और लाई नहीं दहेज, समाज में ताव रखने को स्वागत किया खूब। कल-परसों में लगी जाने को दफ्तर हो तैयार, देहरी पर रखे कदम, कोई पूछे उसकी पगार, ठिठक कर खड़ी दो पल, थी झुकी-झुकी नजर, 'उबर' आई, देर हो रही, कह निकल पड़ी सफर,
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भोले बन बोले नही, रखें छुपा मन की भाल, सिर पैर रख भागे, कोई पहचान जाये ताल। सत्य निरर्थक घूटे, झूठ आरोपित नित नए। पल्लवित कुसुम कहे, सुवासित हृदय हर्षित रहे। सर्वगुणसंपन्न परमेश्वर मूरत बन पूजित होए रहे। रक्त जलधारा सी बहे, मानव मंडल मूर्छित गिर रहे। दो मुख ......... भोले बन बोले नही, रखें छुपा मन की भाल, सिर पैर रख भागे, कोई पहचान जाये ताल। सत्य निरर्थक घूटे,
दो मुख ......... भोले बन बोले नही, रखें छुपा मन की भाल, सिर पैर रख भागे, कोई पहचान जाये ताल। सत्य निरर्थक घूटे,
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अपयश की आंच में शनै:-शनै: भाव पके, नमक थोड़ा ज्यादा शक्कर थोड़ा-थोड़ा, प्यार में ऐसी रफ्तार प्यास बनते ना देर लगे। सरक कर सरपट सच, मौन बन गौण रहे वह। निर्गुण परमेश्वर मुंह तके, रस-रंग-रुप हर ओर मंझे। धरा पुकारे, "ऐ अंबर बरस, काहे जिए तरस-तरस!!" दुनियादारी .............. अपयश की आंच में शनै:-शनै: भाव पके, नमक थोड़ा ज्यादा शक्कर थोड़ा-थोड़ा, प्यार में ऐसी रफ्तार प्यास बनते ना देर लगे।
दुनियादारी .............. अपयश की आंच में शनै:-शनै: भाव पके, नमक थोड़ा ज्यादा शक्कर थोड़ा-थोड़ा, प्यार में ऐसी रफ्तार प्यास बनते ना देर लगे।
read moreKrish Vj
सयम लिखूँ, धैर्य लिखूँ या लिख दूँ मैं नाम तेरा! पूजा करूँ मंत्र जाप करूँ, या बोल दूँ मैं नाम तेरा! मंदिर-मस्जिद देखूँ ख़ुदा या निहारूं चेहरा तेरा! माटी के कण-कण मैं या ढूँढू अक्स मन में तेरा राम लिखूँ या शिव लिखूँ या लिख दूँ माँ नाम तेरा! जन्नत की पवित्रता चुन लूँ या थाम लूँ आँचल माँ तेरा! प्रेम लिखूँ त्याग लिखूँ मैं या लिख दूँ माँ जीवन तेरा! नज़्म लिखूँ ग़ज़ल या कविता या काग़ज़ पर लिखूँ नाम तेरा! प्रथम रचना:_ माँ सयम लिखूँ, धैर्य लिखूँ या लिख दूँ मैं नाम तेरा! पूजा करूँ मंत्र जाप करूँ या बोल दूँ मैं नाम तेरा! मंदिर मस्जिद देखूँ ख़ुदा
प्रथम रचना:_ माँ सयम लिखूँ, धैर्य लिखूँ या लिख दूँ मैं नाम तेरा! पूजा करूँ मंत्र जाप करूँ या बोल दूँ मैं नाम तेरा! मंदिर मस्जिद देखूँ ख़ुदा
read moreNitesh Prajapati
"प्रकृति" रात का पहरा हटा, सुबह का प्रहर खिला, दस्तक दी सूरज ने और उदय हुआ प्रकृति के नायाब ख़ज़ाने का। पांच तत्वों आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, का संगम या नि के प्रकृति। सूरज की किरणें गिरी धरती पर,और मिलन हुआ अंबर और धरा का। प्रकृति हमारी माँ है, जैसे माँ अपने बच्चों को बिना मांगे सब कुछ देती है, वैसे ही कुदरत ने हमें बिना मांगे सब कुछ दिया, मनुष्य को साँसों के लिए हवा दी,पेट भरने के लिए अनाज भी दिया, मनोरंजन के लिए बिजली भी दी,सुख साहिबी के लिए खनिज भी दिया, धरती को चीरकर प्यास बुझाने के लिए पानी भी दिया, यह हसीन वादियां फूल, पहाड़,पौधे, लीले पत्तों का रंग, पानी की झीले,और खारे पानी का समुद्र भी दिया। कुदरत ने बिना मांगे सब कुछ दिया, लेकिन उसके बदले में मनुष्य जाति ने प्रकृति को क्या दिया, पेड़ पौधे उगाने की जगह उसको काटने लगे हम, पानी का सही उपयोग करने की वजह दुरुपयोग करने लगे हम, औद्योगिक वसाहत का जहरीला पानी नदी नालों में बहाने लगे हम, चिमनी से निकलते काले रंग का धुआ और फैलाई हवा में प्रदूषण। अगर ऐसा ही चलता रहा तो समझना कि, हम इंसान पृथ्वी को विनाश के कगार पर ला के खड़ा करेंगे। इस कविता के माध्यम से मे आप सभी को, गुज़ारिश करता हु कि, पेड़ पौधे उगाए, और अमूल्य खनिज संपति का जतन कीजिए, और हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए, यह प्रकृति का अनमोल खज़ाना बचा कर रखिए। रचना क्रमांक :-5 #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़महाप्रतियोगिता #नववर्ष2022 #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़ #kknitesh
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read moreNitesh Prajapati
"लेखक" शब्दों को तराशता अपनी दुनिया में जीता, अपने विचारों को एक नया रूप देकर अल्फाज़ की परिभाषा देता। जिनके हाथों में माँ सरस्वती देवी विराजमान, शब्दों को हमेशा न्याय देता वो, अलग अलग विषयों पे हमेंशा लिखता, लेकिन शब्दों की परिभाषा हमेंशा समझाता। अल्फ़ाज़ लिखना इतनी भी आसान बात नहीं है, हर कोई नहीं लिख पाता, लेकिन एक लेखक ही, वाक्य के अनुरूप शब्दों को ढ़ालकर, वाक्य के सातत्य का अनुरक्षण करता है। लेखक वह है, जो नहीं है, उसे भी अपनी काल्पनिक शक्ति से सोच कर, एक अल्फ़ाज़ में ढालता है। एक लेखक वह है, जिसके शब्दों से लोग प्रेरणा, ले के जीवन में सफलता की बुलंदियों को छू जाते हैं। लेखक वो है जिसके शब्दों को सुनकर मुँह पर हसी आ जाती है, और अपने शब्दों से किसी की आँखों में अश्रु भी ला सकता है। अब तो व्यसन हो गया है शब्दों का, आँखे भी शिकायत करें अब, हाथों की उंगलियां भी सूज के कणशे, लेकिन मैं क्या करूं, एक लेखक जो हूं, कोरा काग़ज भी मेरे अल्फ़ाज के लिए तरसे। -Nitesh Prajapati रचना क्रमांक :-4 #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़महाप्रतियोगिता #नववर्ष2022 #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़ #kknitesh
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"रक्षक" फोन की घंटी बजी, मैसेज आया कंट्रोल रूम में से, पहनके खाकी वर्दी, ड्यूटी बजाने दौड़े आधी रात को भी.. हिम्मत ना हारी , साहस ना छोड़ा, दूसरों के लिए लड़ने को हमेशा तैयार, हारी हुई बाजी जितने को तैयार, हथियार लेकर साथ में, ड्यूटी बजाने दौड़े आधी रात को भी.. देश के खातिर खुद को समर्पित किया, अपने सपनों को ना पूरा किया, खुद की इच्छा ओ को त्याग करके, ड्यूटी बजाने दौड़े आधी रात को भी.. परिवार को रख अपने दिल में, ईश्वर के भरोसे अकेला छोड़कर, बंदूक की गोलियों के साथ, ड्यूटी बजाने दौड़े आधी रात को भी.. शौर्य का प्रतीक बने, मुश्किलों से प्यार करके, अंधेरों को भी मित मानकर, ड्यूटी बजाने दौड़े आधी रात को भी.. हमारी खुशी का सम्मान किया, अपनी खुशियों की कुर्बानी दी, इन महान योद्धाओं को शत-शत नमन, जो ड्यूटी बजाने दौड़े आधी रात को भी। -Nitesh Prajapati रचना क्रमांक :-3 #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़महाप्रतियोगिता #नववर्ष2022 #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़ #kknitesh
रचना क्रमांक :-3 #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़महाप्रतियोगिता #नववर्ष2022 #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़ #kknitesh
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