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Anirudh Kumar
ये हुस्न से जो उसकी क़ुर्बत है, वो चांद पे सूरज की रहमत है। ©Anirudh Kumar #moonbeauty #Vasant2022
Manthan Srivastava
मेरी धमनियों से लहू सूख चुका है मेरे रीढ़ की हड्डी झुक चुकी है मेरा पेट सिकुड़कर पीठ से चिपक चुका है मेरे सिर के पिछले हिस्से में दर्द ने घर कर लिया है मेरी आंखों का पानी जल रहा है मै अन्न क एक दाना भी नही निगल सकता मैं बहरा होता जा रहा हूँ मेरे शरीर में इतने घाव है कि हर एक घाव दूसरे घाव को जानता हैं इतनी यातना के बाद भी मैं नही मरूँगा मैं जीवित बच सकता हूँ समाज से निकली बोली से और बन्दूक से निकली गोली से भी पर एक रोज़ मैं मारा जाऊँगा इस भीड़-भाड़ भरी दुनिया में अकेलेपन से ll ©Manthan Srivastava #Vasant2022 #alone
Saurav Singh
किसी के जाने से मैं तनहा नहीं होता मैंने खुद को जकड रखा है और प्यार की कमी मुझे क्या ही होगी इन हाथो को माँ ने पकड़ रखा है ©Saurav Singh #vasant2022
Mukash Kumar
Mujhe se izhar nhi ho skta ....2 Kya dost se pyaar nhi ho skta ....2 Ha Mohabbat ho tum Meri ...1 Lekin chaha k bhi tumhe Mujhe se pyaar nhi ho skta .. ©Mukash Kumar #vasant2022
Mrigank Shekhar Mishra
मैं नारी हूं मैं कली नहीं फुलवारी हूं, कहते हो सम्मान करोगे, मैं कहती हूं उस अपमान का कब हिसाब करोगे, मैं डरती हूं, मैं उन आंखो से हर रोज गुजरती हूं, डर का साम्राज्य पैदा होता है कोई साया पीछा करता है, मैं डरती हूं, सोचती हूं वह समय कब आएगा, जो मेरा कहलाएगा, मैं नारी हूं। मैं जब बाजार निकलती हूं, उन परछाइयों के बीच से हर रोज गुजरती हूं, मैं डरती हूं, अपने अस्तित्व की लड़ाई में कतरा -कतरा जलती हूं, मैं उस समाज की तलाश में कुछ दूर निकला करती हूं, देखती हूं, उन आँखो की साये से पूरा बाजार पटा रहता है, कोई साया पीछा करता है, मैं डरती, मैं मरती, मैं कतरा -कतरा जलती हूं, मैं नारी हूं, मैं कली नहीं फुलवारी हूं। समाज की उन रूढ़ियों को मैं सहती हूं, आकांक्षाओं के उन पहाड़ों को मैं ढोती हूं, मैं जब चौखट से बाहर निकलती हूं, पल्लू की एक दीवार मेरे सामने गिर जाती है, मेरी आत्मा तड़प जाती है, वह कहती है, समाज की इन असमानताओं को मुझे सहना होगा, मुझे जीना होगा, मुझे मरना होगा मैं नारी हूं, मैं कली नहीं फुलवारी हूं। मैं उस काले जिस्मफरोशी के बाजार में ढकेली जाती हूं, मैं तड़पाई जाती हूं, मैं सिसकाई जाती हूं, मैं जगह-जगह से चोटे खाती हूं, मैं रोती हूं, फिर अपने आंसुओं को मैं खुद ही पी जाती हूं, फिर अगला दिन आता है, मेरी आत्मा को तड़पाया जाता है, मैं उस संघर्ष में जुट जाती हूं, मैं चिल्लाती हूं,मैं सिसकती हूं। अंत में एक ऐसा समय आता है, मेरी आत्मा मर जाती है, मैं थक जाती हूं,मैं गिर जाती हूं, मैं उस काले कमरे में धकेली जाती हूं, क्योंकि मैं नारी हूं, मैं कली नहीं फुलवारी हूं। मैं जब 12 बरस की हो जाती हूं, एक परिवर्तन-सा आता है, उस परिवर्तन में समाज मुझे ठुकराता है, मुझे अछूत समझा जाता है, मुझे जमीन पर सोना पड़ता है, मुझे रोना पड़ता है, मुझे उन सभी दर्द को ढोना पड़ता है, रसोई में जाने पर पाबंदी-सी लग जाती है, घर की चार दिवारी में मेरी जिंदगी सिमट कर रह जाती है, मैं जीती हूं, मैं सफर अकेले करती हूं, क्योंकि मैं नारी हूं, मैं कली नहीं फुलवारी हूं। ©Mrigank Shekhar Mishra #Vasant2022
Kanhaiya Deshwal
agr unke dil mein koi or hi tha .. to btaya ku nhi agr vo hmse preshan hi the.. to jtaya ku nhi.. vo khte the pyar h hmse agr pyar hi tha.. to nibhaya ku nhi... ©Kanhaiya Deshwal #vasant2022 #moodoff 😑
Nishant
सूखे गालों वाला भी एक नकाब बनाऊं क्या? सख्त दिखने के लिए पत्थर का शीशा लगाऊं क्या? मैं तो ना जाने कब से खुद से ही लड़ झगड़ रहा हूं, अब खुद से सुलह के लिए भी वकील बुलाऊं क्या? सुना है कयामत पर लोग शेर लिखा करते है, तुम्हारे नूर पर भी एक ग़ज़ल सुनाऊं क्या? गली का चांद तो बेरुखी से बात करता है मुझसे, अब दरिया वाले को भी बहता छोड़ आऊं क्या? जब खुदा को सुननी ही नहीं है आयतें मेरी, सजदे में सर फोड़ू और टीले से चिल्लाऊं क्या? जब सब आसमान की चादर में ही छिप गए, तो मैं भी ज़मीन ओढ़ कर सो जाऊं क्या? ©Nishant #Vasant2022 #firstpost