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Krish Vj

खाली हाथ आता है खाली हाथ जाता है 
संग सिर्फ़ अच्छे  कर्मों का फल जाता है 

"कर्म प्रधान" यह मानव जीवन हमारा है 
बिन कर्म किए यह जीवन व्यर्थ हमारा है 

कुछ मन उजले होते,  कुछ  मन काले है 
जैसा जिसने  कर्म किया वैसा फल पाया 

चलो नेक राह पर, पुण्य कर्म करते चलो 
पाप कर्म से दूरी भली,मर्म समझते चलो

रब करता कर्मों का लेखा-जोखा सबका 
कुछ तो बुरे "पाप" कर्मों से  डरों अपना 

करो अच्छा सबका रब का "प्यारा" बनो 
नहीं बनो पशु तुम "जीवन" सार्थक करो  रमज़ान :_ पाप पुण्य (05/30)
#kkपापऔरपुण्य #कोराकाग़ज़ #अल्फाज_ए_कृष्णा 
#karma #collabwithकोराकाग़ज़ #kkr2021 #रमज़ान_कोराकाग़ज़

Insprational Qoute

विधा:-काल्पनिक कहानी विषय:-(पाप और पुण्य) शिरोमणी की नियुक्ति रक्षा विभाग में हो गई थी । तो सोमवार की सुबह वह अपना कार्यभार सम्भाल लेती है और दफ्तर में उपस्थित सभी प्रियजनों का साक्षात्कार दफ्तर की महोदया जी शिरोमणी से करवाती है सभी से साक्षात्कार के पश्चात वह सभी के व्यवहार का अंदाज़ा भी थोड़ा बहुत लगा लेती है। तो सबसे अज़ीम (प्रिय)जो व्यवहार लगा वह महोदया जी का लगा और महोदया जी शिरोमणी का लगाव भी हो जाता है। अब महोदया जी अपने पदानुसार सभी कार्य को अपनी निष्ठा से करती है।तो उनकी निष्ठा अन्य सभी कर्मचारियों को ज़्यादा पसन्द नही आती है। तो सभी कर्मचारी महोदया जी से उखड़े उखड़े रहते थे। फिर धीरे धीरे वो वक्त रहते सभी कर्मचारी शिरोमणी को महोदया जी के खिलाफ करने लग गए तो अब शिरोमणी के मन मे भी महोदया जी के लिए पहले वाली बात नही रही। अब महोदया जी जिसे भी काम के लिये कहती वहीं महोदया जी के सिर सवार रहने लगता अब महोदया जी की बात कोई भी न मानता और न ही सुनता था ।हर कोई उन से मुँह फेरने लगता परन्तु महोदया जी अपने काम को करवाने में अपनी निष्ठा न त्यागती और अपनी दैनिक दिनचर्या में वह सबसे अच्छा काम करती थी कि वह कुत्तों को रोजाना कभी दूध, कभी रोटी मतलब कुछ न कुछ जरूर देती थी। तो यह सब देख सभी कर्मचारी कहते कि इसे तो बस कुतो से ही प्यार है और इतना ज़ुल्म हम लोगों पर करती है भगवान इसे नरक के दर्शन देगा। बस इसी कुलष में रोज ही दफ्तर को युद्ध का अखाड़ा बनाये रखते थे। रोज रोज कोई न कोई महोदया जी की कमी निकाल कर चला जाता था क्योंकि सभी कर्मचारी महोदया जी के ख़िलाफ़ उन के भी कान भर देते थे ।अब सभी के समकक्ष महोदया जी एक अतिदुष्ट महिला की छवि के रूप में नजर आने लगी। फ़िर अचानक एक कोरोना नामक महामारी का संक्रमण हो जाता है इस महामारी के दौरान महोदया जी व शिरोमणी की मौत हो जाती है।तो दोनों की आत्मा को यमराज के साथ ले जाया जाता है। तो शिरोमणी की आत्मा को नरक के द्वार ले जाया जाता है और महोदया जी की आत्मा को स्वर्ग के द्वार ले जाया जाता है। इस पर शिरोमणी यमराज से पूछ ही लेती है। हे प्रभु!ऐसा घोर अन्याय वो भी आपके दरबार मे आख़िर ऐसा क्यो????आपने तो सब देख होगा कि महोदया जी कैसे हम सभी कर्मचारियों पर रोज़ ज़ुल्म ढहाती थी और हमारा सभी का जीना दुभर कर रखा था ।रोज रोज़ हमें सताया करती थी।तब भी आप महोदया जी को स्वर्ग के द्वार ले जा रहे हो???? यमराज:-हे बालिके ! आप ने बेशक़ से बहुत ही अच्छे कर्म किये हो परन्तु आप के मुख से निकले प्रत्येक शब्द आपके कर्मों का पाप और पुण्य का लेखा जोखा मेरे पास आता तो वह मात्र नरक के सिवा कहीं और न ले जाता है।और आप केवल पृथ्वीलोक के लोगों के सामने बाहरी रूप से अच्छे थे परन्तु मन कर्म व वचन से आप महोदया जी से भी अति दुष्ट थे। पाप और पुण्य का भाव इन्हीं तीन बातों से लगाया जाता है मन,कर्म व वचन से।

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मन कर्म और वचन रखना शुद्ध सदा,
इसी से ही तुम्हें प्राप्त होगा पुण्य अदा,
पाप ले जायेगें अनचाही सी राहों पर,
न आये अहम रहना ऐसी पनाहों पर।

विधा:-काल्पनिक कहानी
विषय:-(पाप और पुण्य)

सम्पूर्ण कहानी पढ़ने हेतु कृपया अनुशीर्षक में पढ़े🙏🙏🙏🙏 
विधा:-काल्पनिक कहानी
विषय:-(पाप और पुण्य)

शिरोमणी की नियुक्ति रक्षा विभाग में हो गई थी । तो सोमवार की सुबह वह अपना कार्यभार सम्भाल लेती है और दफ्तर में उपस्थित सभी प्रियजनों का साक्षात्कार दफ्तर की महोदया जी शिरोमणी से करवाती है सभी से साक्षात्कार के पश्चात वह सभी के व्यवहार का अंदाज़ा भी थोड़ा बहुत लगा लेती है। तो सबसे अज़ीम (प्रिय)जो व्यवहार लगा वह महोदया जी का लगा और महोदया जी शिरोमणी का लगाव भी हो जाता है। अब महोदया जी अपने पदानुसार सभी कार्य को अपनी निष्ठा से करती है।तो उनकी निष्ठा अन्य सभी कर्मचारियों को ज़्यादा पसन्द नही आती है। तो सभी कर्मचारी महोदया जी से उखड़े उखड़े रहते थे। फिर धीरे धीरे वो वक्त रहते सभी कर्मचारी शिरोमणी को महोदया जी के खिलाफ करने लग गए तो अब शिरोमणी के मन मे भी महोदया जी के लिए पहले वाली बात नही रही। अब महोदया जी जिसे भी काम के लिये कहती वहीं महोदया जी के सिर सवार रहने लगता अब महोदया जी की बात कोई भी न मानता और न ही सुनता था ।हर कोई उन से मुँह फेरने लगता परन्तु महोदया जी अपने काम को करवाने में अपनी निष्ठा न त्यागती और अपनी दैनिक दिनचर्या में वह सबसे अच्छा काम करती थी कि वह कुत्तों को रोजाना कभी दूध, कभी रोटी मतलब कुछ न कुछ  जरूर देती थी। तो यह सब देख सभी कर्मचारी कहते कि इसे तो बस कुतो से ही प्यार है और इतना ज़ुल्म हम लोगों पर करती है भगवान इसे नरक के दर्शन देगा। बस इसी कुलष में रोज ही दफ्तर को युद्ध का अखाड़ा बनाये रखते थे। रोज रोज कोई न कोई महोदया जी की कमी निकाल कर चला जाता था क्योंकि सभी कर्मचारी महोदया जी के ख़िलाफ़ उन के भी कान भर देते थे ।अब सभी के समकक्ष महोदया जी एक अतिदुष्ट महिला की छवि के रूप में नजर आने लगी।
फ़िर अचानक एक कोरोना नामक महामारी का संक्रमण हो जाता है इस महामारी के दौरान महोदया जी व शिरोमणी की मौत हो जाती है।तो दोनों की आत्मा को यमराज के साथ ले जाया जाता है। तो शिरोमणी की आत्मा को नरक के द्वार ले जाया जाता है और महोदया जी की  आत्मा को स्वर्ग के द्वार ले जाया जाता है। इस पर शिरोमणी यमराज से पूछ ही लेती है।
हे प्रभु!ऐसा घोर अन्याय  वो भी आपके दरबार मे आख़िर ऐसा क्यो????आपने तो सब देख होगा कि महोदया जी कैसे हम सभी कर्मचारियों पर रोज़ ज़ुल्म ढहाती थी और हमारा सभी का जीना दुभर कर रखा था ।रोज रोज़ हमें सताया करती थी।तब भी आप महोदया जी को स्वर्ग के द्वार ले जा रहे हो????
यमराज:-हे बालिके ! आप  ने बेशक़ से बहुत ही अच्छे कर्म किये हो परन्तु आप के मुख से निकले प्रत्येक शब्द आपके कर्मों का पाप और पुण्य का लेखा जोखा मेरे पास आता तो वह मात्र नरक के सिवा कहीं और न ले जाता है।और आप केवल पृथ्वीलोक के लोगों के सामने बाहरी रूप से अच्छे थे परन्तु मन कर्म व वचन से आप महोदया जी से भी अति दुष्ट थे। पाप और पुण्य का भाव इन्हीं तीन बातों से लगाया जाता है मन,कर्म व वचन से।

jagruti vagh

  लघुकथा: 
      यमराज के यमदूतों द्वारा एक ही समय दो व्यक्तियों को यमलोक ले जाया गया । उनमें से एक थे अमीर और लोकप्रिय हस्ती लाला अमीचंद जो हमेशा बस पैसा कमाने की सोचते थे । जिन्होंने कभी जरूरतमंद की मदद नहीं की और , दुसरे इन्सान का नाम था चुनीलाल जो सरल स्वभाव के और गरीब थे, पर वो बिल्कुल कर्ण की तरह मदद करते थे । भले उनके घर में खाना सिमित हो पर राह चलते जरूरतमंद को बांटने से पीछे नहीं हटते थे । 
          
      दोनों को यमलोक की अदालत में ले जाया गया । जब चित्रगुप्त से न्यायधीश ने हिसाब पुछा तो उन्होंने चुनीलाल को सारी सजाओं से मुक्त कर दिया क्योंकि उन्होंने एक भी पाप नही किये थे । उनका पुण्य का घड़ा भर चुका था । और दुसरी तरफ अमीचंद को यमलोक के कारावास की सजा की गई क्योंकि उन्होंने अमीर बनने की लालच में धरती पर बहुत सारे बुरे कामों को अंजाम दिया था।

सार: आपके सारे पाप पुण्य का हिसाब किताब उनके पास जमा होता है । भले आप एक अच्छा काम नही कर पाये पर बुरा काम भी मत किजिए। #कोराकाग़ज़ 
#रमज़ान_कोराकाग़ज़ 
#kkपापऔरपुण्य 
#collabwithकोराकाग़ज़ 
#kkr2021

ashutosh anjan

आख़िरी दफ़ा जो तुझें देखा होता,
दिल  ना  ऐसे  कभी  तन्हा होता।

प्यासी  ना  मरती  मोहब्बत  मेरी ,
सावन तेरे नूर का जो बरसा होता।

पाप-पुण्य अच्छा-बुरा न देखा होता,
शायद कोई शख्स अपना हुआ होता।

दौर-ए-ज़वानी  का जिया  है हमनें,
उन्हें ना देखता तो कैसे पता होता।

मेरे  अल्फ़ाज़  आवारा  परिंदे होते,
गर ख़्यालों को पर लग गया होता। (ग़ज़ल- पाप और पुण्य)
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अभिलाष सोनी

पाप और पुण्य का फैसला करने वाले हम और आप कौन होते हैं। ये तो हमारे अपने कर्मों के फल पर आधारित समीक्षा प्रणाली है, जिसे उस नीली छतरी वाले ने हमारे कर्मों के लिए मापदंड निर्धारित किया है। इस प्रणाली में न सिर्फ आपके किये कर्मों का परिणाम आपको मिलता है अपितु आपके द्वारा प्राप्त किये गए परिणाम के आधार पर आपको, आपके आगामी जन्म हेतु नए कार्यभार एवं नई योनि ईश्वर द्वारा दी जाती है। जो इस प्रकृति एवं उस नीली छतरी वाले का प्रमुख न्याय चक्र भी है। इसलिए कहा जाता है कि आपके कर्मों का फल ऊपर वाला आपको अवश्य देगा। चाहे वो इस जन्म में हो या फिर आपके आगामी आने वाले जन्मों में हो। पाप और पुण्य #kkपापऔरपुण्य 16 अप्रैल 2021

Pic Credit :- Pinterest 

#collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #रमज़ान_कोराकाग़ज़ 
#kkr2021 #कोराकाग़ज़ #साहिल #मेरी_ख्वाहिश

Writer1

5/30 16.04.2021 पाप और ‌पुण्य ***************** परिभाषा: वैसे तो पाप और पुण्य की कोई परिभाषा नहीं है परंतु ग्रंथों और कर्मों से देखा जाए तो आप और हम में दोनों को परिभाषा में डाल दिया गया हैं। परोपकार करने से पुण्य और परपीडन से पाप मिलता है। पुण्य का पुरस्कार सुख है और पाप का दु:ख। मनुष्य भावनायुक्त प्राणी है। भावना के बिना वह कर्म नहीं कर सकता है। वह चाहे अच्छा कर्म करे या बुरा कर्म। हमारे शास्त्र मनुष्य से अपेक्षा करते हैं कि वे वासना और स्वार्थ से ऊपर उठकर कर्तव्य भावना से प्रेरित होकर कर्म क

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पाप और ‌पुण्य ( चिंतन)
*******************

अनुशीर्षक में पढ़ें
👇👇👇👇👇👇👇 5/30
16.04.2021

पाप और ‌पुण्य
*****************
परिभाषा: वैसे तो पाप और पुण्य की कोई परिभाषा नहीं है परंतु ग्रंथों और कर्मों से देखा जाए तो आप और हम में दोनों को परिभाषा में डाल दिया गया हैं। परोपकार करने से पुण्य और परपीडन से पाप मिलता है। पुण्य का पुरस्कार सुख है और पाप का दु:ख।
मनुष्य भावनायुक्त प्राणी है। भावना के बिना वह कर्म नहीं कर सकता है। वह चाहे अच्छा कर्म करे या बुरा कर्म। हमारे शास्त्र मनुष्य से अपेक्षा करते हैं कि वे वासना और स्वार्थ से ऊपर उठकर कर्तव्य भावना से प्रेरित होकर कर्म क

Aafia khan

ये कहानी है ऐक ऐसे शख्स की जिसे हम दहशत का दूसरा नाम कहे तो ग़लत ना होगा। लोगों को अज़िय्यतें देना, मानो जैसे उसका शौख हुआ करता था। खून-खराबा, मार-पीट ये सब उसकी दिनचर्या का हिस्सा था। वो कहते है ना हर किसी में कोई ना कोई अच्छाई छुपी होती है ठीक इसी तरह इस आदमी को जानवर से कुछ ज़्यादा ही लगाव था। एक शाम की बात है जब वो अपनी गाड़ी से अपने घर जा रहा था और उस रोज़ बारिश ऐसी की रुकने का नाम ना ले रही थी।रास्ते में जब उसकी गाड़ी एक सिग्नल पे रुकी कि तभी उसकी नज़र किसी दुक

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पाप और पुण्य
(लघुकथा)                ये कहानी है ऐक ऐसे शख्स की जिसे हम दहशत का दूसरा नाम कहे तो ग़लत ना होगा। लोगों को अज़िय्यतें देना, मानो जैसे उसका शौख हुआ करता था। खून-खराबा, मार-पीट ये सब उसकी दिनचर्या का हिस्सा था। वो कहते है ना हर किसी में कोई ना कोई अच्छाई छुपी होती है ठीक इसी तरह इस आदमी को जानवर से कुछ ज़्यादा ही लगाव था।
              एक शाम की बात है जब वो अपनी गाड़ी से अपने घर जा रहा था और उस रोज़ बारिश ऐसी की रुकने का नाम ना ले रही थी।रास्ते में जब उसकी गाड़ी एक सिग्नल पे रुकी कि तभी उसकी नज़र किसी दुक

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     पाप और पुण्य 
पुण्य सोचे पाप मुझ पर हावी हुआ जाये
पाप सोचे पुण्य मेरी दूरदर्शा कराये जाये 
एक दूजे को एक दूजा एक आँख न सुहाय।
पुण्य करे विचार इंसान को पाप से कैसे 
भटकाया जाये,पाप करे विचार इंसान को 
अपने वश में कैसे किया जाये,कर्म गया देख
सहम कुछ शब्द न बोल पाये,देख अपने फल 
की ओर मंद मंद घबराये,देखकर फल अपनी 
दशा झर-झर अश्रु बहाये,देख किस्मत फल 
की दशा सहम सी हो ख़ुद में सिमटती जाये,
दुखी हो जीवन डोर क्षण-क्षण ईश्वर से करे 
विचार कैसा खेल रचा रे प्रभु लेख तेरा समझ
न आये पुण्य दे सुख का साथ तो पाप कराये
अत्याचार कैसा ये दस्तूर बना रे इंसान की 
नैय्या पाप और पुण्य के गर्त में क्षण-क्षण डूबती
उभरती जाये। 


 5.पाप और पुण्य...16.04.2021
#collabwithकोराकाग़ज़ 
#रमज़ान_कोराकाग़ज़ 
#कोराकाग़ज़
#KKr2021
#kkपापऔरपुण्य 
#tarunasharma0004
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