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Poonam Suyal

ख़ुद को पहचान ही गई वो नैनों में ज्वाला थी उसके, आख़िर कब तक अपमान सहती वो देना ही पड़ा इक दिन जवाब, आख़िर कब तक चुप रहती वो दिल में उसके भी थी उमंगें,

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ख़ुद को पहचान गई वो 

(अनुशीर्षक में पढ़ें) ख़ुद को पहचान ही गई वो 

नैनों में ज्वाला थी उसके,
आख़िर कब तक अपमान सहती वो 
देना ही पड़ा इक दिन जवाब,
आख़िर कब तक चुप रहती वो 

दिल में उसके भी थी उमंगें,

Nitesh Prajapati

"रौद्र रस"

सजीव के मन का एक भाव होता है रौद्र रस,
जब ना हुई दिल की तब ये प्रकट होता है। 

खो देता है आपा मनुष्य अपने आप पर,
और क्रोध के आवेश मे कुछ अनिच्छिनिय कर डालता है। 

लेकिन आज के कलयुग में मनुष्य का भी कोई दोष नहीं, 
ये आदमी भी ऐसा ही हो गया है कि सामने से दिलाता है क्रोध भाव। 

चाहे बात हो कोई घर की या फिर हमारे वास्तविक जीवन की, 
अपनी इच्छा संतुष्टि के लिए लोग आ जाते हैं आवेग में।

झगड़ रहे हैं लोग आज जाति और धर्म के नाम पर, 
और नष्ट कर रहे हैं हमारे राष्ट्र की अमूल्य संपत्ति। 

-Nitesh Prajapati 
 रचना क्रमांक :-2

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भाग्य श्री बैरागी

2 "काव्य मिलन - रौद्र रस" 🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥 कर ले शत्रु, तू हार स्वीकार, या फिर रण में तू मुझे पुकार, बैठी हूॅं इस हृदय में कोप लिए, जा फिर बुरी दृष्टि से मुझे निहार। 🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥

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आ रण में करके नैत्र लाल,
तू माँग में भर लहू का गुलाल,
तेरी  पीड़ा  तू ही जाने नारी,
कर हर बुरी नज़र को हलाल।

🔥शेष🔥अनुशीर्षक🔥 में 🔥 पढ़ें🔥 2
 "काव्य मिलन - रौद्र रस"
🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥
कर ले शत्रु,  तू हार स्वीकार,
या फिर रण में तू मुझे पुकार,
बैठी हूॅं इस हृदय में कोप लिए,
जा फिर बुरी दृष्टि से मुझे निहार।
🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥

Divyanshu Pathak

सो गए सब धर्म के धोरी नहीं  कोई  धनी।
बात बिगड़ी इस क़दर और  ईर्ष्या है घनी।

बांटते हैं ज़हर देखो हो गये विषधर सभी!
आसरे की लीक पे है दुश्मनी सबसे ठनी।

तोड़दे अनुबंध सारे सच मुझे कहता रहा!
झूठ में डूबी लकीरें पृष्ठ पर  दिखने लगीं।

शब्द शर कर उठालो हाथ में अपने खड्ग!
गर्जना कर दूर कर जो वीरता कायर बनी।

बिकगए नाज़िम तो देखो चंद चाँदी के लिए!
पर यहाँ पंछी' की पाँखें तो अभी रण में तनी। #कोराकाग़ज़ #kkकाव्यमिलन  #काव्यमिलन_2  #विशेषप्रतियोगिता #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़काव्यमिलन #पाठकपुराण

नेहा उदय भान गुप्ता

काव्य मिलन —2 करते रहे अनुनय, विनय, प्रार्थना, रख कर धीरज राम। पर विचलित हुआ न दर्प जलधि, हुए कुपित फिर श्री राम। लाओ धनुष लखन, पौरुष है जागा दशरथ नन्दन राम का। क्षमा याचना व्यर्थ यहाँ, सहन शीलता नही किसी काम का।

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करते रहे अनुनय, विनय, प्रार्थना, रख कर धीरज राम। 
पर विचलित हुआ न दर्प जलधि, हुए कुपित फिर श्री राम।

लाओ धनुष लखन, पौरुष है जागा दशरथ नन्दन राम का। 
क्षमा याचना व्यर्थ यहाँ, सहन शीलता नही किसी काम का।

ना मिले अधिकार कभी, तो लड़कर मिट जाने को है होता। 
धधक उठेगी अब ज्वाला नीरनिधि से, क्यों अब तक सोता।

कोई फ़र्क नही इसे, तीन दिवस से हूँ मैं इससे पंथ माँगता। 
भूल गया ये ऋण हमारे पूर्वजों का, क्या सागर इसे नही जानता।

है क्षमता मुझमें इतनी की, पल भर में ही मैं तुझको सूखा दूँ। 
पर लिया तुमने परीक्षा मेरी, की नही तुझे अब कोई क्षमा दूँ।

दण्ड का अपराधी तू है, क्षण भर में ही तेरे गर्व को मैं चूर करूँ। 
करके ब्रम्हास्त्र का संधान, जल के स्थान पर बालू और रेत करूँ।

देखा अब तक संसार ने राम की कृपा, अब कोप भी देखेगा। 
लहरे उठ रही है अब तक जहाँ से, अब वहाँ से नाद उठेगा।। काव्य मिलन —2

करते रहे अनुनय, विनय, प्रार्थना, रख कर धीरज राम।
पर विचलित हुआ न दर्प जलधि, हुए कुपित फिर श्री राम।

लाओ धनुष लखन, पौरुष है जागा दशरथ नन्दन राम का।
क्षमा याचना व्यर्थ यहाँ, सहन शीलता नही किसी काम का।

DR. SANJU TRIPATHI

तेरे प्यार की चुनरिया

तेरे ही प्यार के रंगों की ओढ़ के चुनरिया पिया मैं तो तेरे ही रंगों में रंग गई,
कल तक थी तुझसे बिल्कुल अनजान, प्यार का बंधन करके तेरी हो गई।

तेरे नाम की लगाई है माथे पर बिंदिया तेरे ही नाम की हाथों में मेहंदी रचाई है,
लाल जोड़ा पहन के सजी हूँ आज मैं झिलमिल सितारों वाली चुनरी मंगाई है

तेरी दुल्हन बनी हूँ माँग में भरकर तेरे नाम का सिंदूर सोलह श्रृँगार पूरे किये हैं
बड़ी मन्नतों व दुआओं के बाद जिंदगी में यह वस्ल की चाहत की रात आई है।

तेरा साथ पाकर तो जिंदगी का हर मुश्किल सफर भी हँसते हँसते कट जाएगा,
तेरे प्यार की खुशियों की छाँव तले जिंदगी के सारे गम धीरे धीरे खिसक जाएंगे।

 श्रृंगार रस

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नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹

काव्य मिलन —2 करते रहे अनुनय, विनय, प्रार्थना, रख कर धीरज राम। पर विचलित हुआ न दर्प जलधि, हुए कुपित फिर श्री राम। लाओ धनुष लखन, पौरुष है जागा दशरथ नन्दन राम का। क्षमा याचना व्यर्थ यहाँ, सहन शीलता नही किसी काम का।

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करते रहे अनुनय, विनय, प्रार्थना, रख कर धीरज राम। 
पर विचलित हुआ न दर्प जलधि, हुए कुपित फिर श्री राम।

लाओ धनुष लखन, पौरुष है जागा दशरथ नन्दन राम का। 
क्षमा याचना व्यर्थ यहाँ, सहन शीलता नही किसी काम का।

ना मिले अधिकार कभी, तो लड़कर मिट जाने को है होता। 
धधक उठेगी अब ज्वाला नीरनिधि से, क्यों अब तक सोता।

कोई फ़र्क नही इसे, तीन दिवस से हूँ मैं इससे पंथ माँगता। 
भूल गया ये ऋण हमारे पूर्वजों का, क्या सागर इसे नही जानता।

है क्षमता मुझमें इतनी की, पल भर में ही मैं तुझको सूखा दूँ। 
पर लिया तुमने परीक्षा मेरी, की नही तुझे अब कोई क्षमा दूँ।

दण्ड का अपराधी तू है, क्षण भर में ही तेरे गर्व को मैं चूर करूँ। 
करके ब्रम्हास्त्र का संधान, जल के स्थान पर बालू और रेत करूँ।

देखा अब तक संसार ने राम की कृपा, अब कोप भी देखेगा। 
लहरे उठ रही है अब तक जहाँ से, अब वहाँ से नाद उठेगा।। काव्य मिलन —2

करते रहे अनुनय, विनय, प्रार्थना, रख कर धीरज राम।
पर विचलित हुआ न दर्प जलधि, हुए कुपित फिर श्री राम।

लाओ धनुष लखन, पौरुष है जागा दशरथ नन्दन राम का।
क्षमा याचना व्यर्थ यहाँ, सहन शीलता नही किसी काम का।

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काव्य मिलन दूसरा चरण 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 रौद्र रस 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 ज्वलित होता देश 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 आज के विषय हेतु हमने कुछ वक्त से जो बेरोजगारी

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ज्वलित होता देश 
ऐसा भी क्या युवाओं का अपना रौद्र रूपित 
व्यवहार अपने देश पर निकालना,
ज्वलित करना देश का इससे उनको कौन 
सा सुकून मिल जायेगा..?
जगह-जगह पर आंदोलित प्रदर्शन प्रदर्शित 
करके कौन सा भविष्य संवर जायेगा..?
चैन अमन शांति की सीख लेकर भी अपने
वतन का सौंदर्य को बिगाड़कर कौन सा 
महान कार्य कर जायेगा..?
हो क्या गया आज के युवाओं को रौद्र रूप 
में विलीन होकर कौन सी अपनी
नागरिकता का पालन है कर रहा..?
आता है मन में हमारे में अक्सर क्रोध आज 
का ये शिक्षित युवा के गहरे गर्त में क्यों
जा रहा..?करके अपमान अपने वतन का
बेरोजगारी को ढ़ाल बनाकर भड़ास अपनी
है निकाल रहा, काव्य मिलन 
दूसरा चरण
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 
रौद्र रस 
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
ज्वलित होता देश 
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
आज के विषय हेतु हमने कुछ वक्त से जो बेरोजगारी


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