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Shailesh Kashyap
वह एक लम्बी उम्र दूसरों के नाम कर देता है ...और अपनी ज़िन्दगी को जीता है ...वह मजदूर... हैप्पी मजदूर दिवस......😊😊😊🙏 #majdurसाहित्यकक्ष #majdoor
Monali Sharma
मेरी उम्र तो कोई न थी, मजदूर बनने की फिर भी गरीबी की मार ने, मजबूर बना दिया जिस उम्र में, मैं ज्ञान का बोझ न ढो पाया उस उम्र में, बड़े से बड़ा बोझ ढोना सिखा दिया यह प्रतियोगिता संख्या - 18 है साहित्य कक्ष में आप सभी कवि-कवियत्री का स्वागत 🙏🏻 है। चार(4) पंक्ति में रचना Collab करें 🅽🅾🆃🅴 - अगर कोई सारे नियम और शर्तों को ध्यान में रखकर Collab नहीं करता है। उसकी रचना को प्रतियोगिता से बाहर कर दिया जाएगा। #collabchallenge
यह प्रतियोगिता संख्या - 18 है साहित्य कक्ष में आप सभी कवि-कवियत्री का स्वागत 🙏🏻 है। चार(4) पंक्ति में रचना Collab करें 🅽🅾🆃🅴 - अगर कोई सारे नियम और शर्तों को ध्यान में रखकर Collab नहीं करता है। उसकी रचना को प्रतियोगिता से बाहर कर दिया जाएगा। #CollabChallenge
read moreAnil Prasad Sinha 'Madhukar'
जो मेहनत, नेकी, ईमानदारी, के लिए मशहूर होता है, जो मजबूर तो होता है परन्तु कभी नहीं मगरूर होता है, जो रोटी के लिए पसीने बहाता है, थककर चूर होता है, जिसके बिना जिन्दगी ना चले वो केवल मजदूर होता है। यह प्रतियोगिता संख्या - 18 है साहित्य कक्ष में आप सभी कवि-कवियत्री का स्वागत 🙏🏻 है। चार(4) पंक्ति में रचना Collab करें 🅽🅾🆃🅴 - अगर कोई सारे नियम और शर्तों को ध्यान में रखकर Collab नहीं करता है। उसकी रचना को प्रतियोगिता से बाहर कर दिया जाएगा। #collabchallenge
यह प्रतियोगिता संख्या - 18 है साहित्य कक्ष में आप सभी कवि-कवियत्री का स्वागत 🙏🏻 है। चार(4) पंक्ति में रचना Collab करें 🅽🅾🆃🅴 - अगर कोई सारे नियम और शर्तों को ध्यान में रखकर Collab नहीं करता है। उसकी रचना को प्रतियोगिता से बाहर कर दिया जाएगा। #CollabChallenge
read morePrathamesh Malaikar
वो एक मजदूर था मैंने भर पेट खाया और वो भुखा ही रह गया मैं चैन की निंद सोया और वो सर पे तरपाल खोजते रह गया मैंने बड़ी इमारतें कागज पर बनाईं और वो बोझ ढोते रह गया जहां ने मुझे सराहा पर वो अपना वजूद बनाते रह गया नाम मेरा होता गया पर वो गुमनाम ही रह गया जब आफ़त सर पर आयी तब मैं महफूज था पर वो अपनी हिफाजत ढूंढता रह गया और एक दिन वो चला गया और मैं अपने घर की खिड़की से उसे जातें देखता रह गया खुदगर्जी में डूबा मैं इतने बरसों से, कभी न सोचा की मेरा सारा काम आखिर करता कौन था जब ढोना पडा कपना बोझ खुदही से, तब याद आई उसकी जो मेरे लिए अपना सबकुछ दाव पर लगाता था अपनी नाकामी और बे ईल्मी से मैं मजबूर था आज भी दर दर की ठोकरें खाने वाला मेरा भाई, वो एक मजदूर था फर्जी शायर #majdoor #majdurसाहित्यकक्ष #hindipoetry #hindipoem #urdupoetry #hindishayari #urdushayari #hindiwriters
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